मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सुब्रहमन्य षष्ठी तिथि बुधवार को है। इस दिन भगवान स्कंद (कार्तिकेय) के निमित्त व्रत रखने और पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। द्रिक पंचांग के अनुसार, बुधवार (25 नवंबर) के दिन सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त नहीं है और राहुकाल का समय दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से शुरू होकर 1 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
सुब्रह्मण्य षष्ठी का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि इस तिथि को ही भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक दैत्य का वध किया था, जिसके बाद से देवों ने इस तिथि को उत्सव के रूप में मनाया था। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
संतान सुख से वंचित और कुंवारी कन्याओं को ये व्रत जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं की जल्द ही शादी होती है।
इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म, स्नान आदि करें। इसके बाद वे साफ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल की सफाई करें और आसन बिछाएं, फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत संकल्प लें।
इसके बाद कार्तिकेय भगवान को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है। इस वजह से इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी के साथ चंपा षष्ठी भी कहते हैं। भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद “ऊं स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।
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