मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित तकिया मस्जिद के ध्वस्तीकरण के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को खारिज कर दिया। यह याचिका उन 13 निवासियों द्वारा दायर की गई थी जो मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि मस्जिद लगभग 200 वर्ष पुरानी है और इसे वर्ष 1985 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया था। उनका तर्क था कि मस्जिद को अवैध और मनमाने ढंग से तोड़ा गया, जबकि यह अभी भी नियमित रूप से उपयोग में थी।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता पीठ ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि जिस भूमि पर मस्जिद स्थित थी, वह महाकाल लोक परिसर के विस्तार के लिए कानूनी रूप से अधिग्रहित की गई थी। यह पुनर्विकास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के आसपास के क्षेत्र को पुनर्संरचना और पर्यटन सुविधाओं के विस्तार के लिए किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि भूमि अधिग्रहण और मस्जिद के ध्वस्तीकरण ने Places of Worship Act, 1991, Waqf Act, 1995 और Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि मुआवजा सही ढंग से नहीं दिया गया और गलत व्यक्तियों को भुगतान दिखाकर अधिग्रहण को वैध साबित करने की कोशिश की गई।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हाईकोर्ट द्वारा दी गई दलीलें तार्किक और विधिसंगत हैं। अदालत ने कहा, “यदि मुआवजे को लेकर कोई विवाद है, तो कानून के तहत उपलब्ध उपायों का उपयोग किया जा सकता है। इस मामले में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।” अदालत ने यह भी माना कि धार्मिक अधिकार का अभ्यास किसी विशिष्ट स्थान के अस्तित्व पर निर्भर नहीं होता। इससे पहले याचिका को हाईकोर्ट की एकल पीठ और फिर डिवीजन बेंच, दोनों ने खारिज कर दिया था।
इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि महाकाल लोक परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण और ढांचागत कार्रवाई को सर्वोच्च न्यायालय ने विधिसंगत माना है, और मस्जिद के पूर्व उपयोगकर्ताओं के लिए मुआवजे के दावे की राह अब केवल सिविल अथवा वैधानिक उपायों के माध्यम से ही खुलेगी।
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