जम्मू-कश्मीर के कटरा में नव स्थापित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस (SMVDIME) की पहली MBBS प्रवेश सूची जारी होने के बाद एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यह संस्थान पूरी तरह श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (SMVDSB) द्वारा संचालित और हिंदू-सिख श्रद्धालुओं के दान से बनाया गया है। लेकिन इस मेडिकल कॉलेज की प्रवेश सूची में चयनित छात्रों में केवल कुल 8 हिंदू छात्रों को चयनित किया गया है, धार्मिक प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल हिंदू संगठन सवाल उठा रहें हैं।
जानकारी के अनुसार, 2025-26 सत्र के लिए श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में जारी 50 सीटों में से 42 छात्र मुस्लिम, 7 छात्र हिंदू और 1 छात्र केशधारी हिंदू (सिख) समुदाय से हैं। यही अनुपात विवाद का मुख्य कारण बना है, क्योंकि मंदिर बोर्ड का ₹500 करोड़ का पूरा खर्च वर्षों से माता वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वाले हिंदू भक्तों द्वारा दिए गए चढ़ावे और दान से एकत्र हुआ है।
कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक नेताओं ने कहा है कि यह परिणाम श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है। उनका कहना है कि जहाँ योग्यता (Merit) अवश्य सर्वोपरि होनी चाहिए, वहीं धार्मिक संस्थान की भावना और उसके निर्माण की पृष्ठभूमि को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
भाजपा नेता डॉ. परनीश महाजन ने कड़ी आलोचना की और जम्मू-कश्मीर व्यावसायिक प्रवेश परीक्षा बोर्ड (JKBOPEE) द्वारा संचालित प्रवेश प्रक्रिया की खुली समीक्षा की मांग की। उनके शब्दों में, “हम मेरिट के पक्षधर हैं। लेकिन जब एक संस्थान पूरी तरह भक्तों के दान से बना हो, तो चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और भावनात्मक संतुलन भी होना आवश्यक है।” उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों ने श्रद्धालुओं में वेदना पैदा की है और प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा किया है।
उन्होंने उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार और JKBOPEE से सीट आवंटन तय करने के मानदंडों की समीक्षा करने का आग्रह किया। उनके अनुसार, आस्था से जुड़ी संस्थाओं में न्याय और खुलापन बेहद ज़रूरी है, खासकर जब वे पूरी तरह से किसी खास धार्मिक समुदाय के दान से बनी और वित्तपोषित हों।
कई हिंदू संगठनों ने चिंता व्यक्त की है कि एक हिंदू-प्रशासित और हिंदू-वित्तपोषित धार्मिक संस्थान ने हिंदू छात्रों को बहुत सीमित स्थान दिया है। जम्मू राष्ट्रीय बजरंग दल के अध्यक्ष राकेश बजरंगी ने कहा कि, “हिंदू मंदिरों में चढ़ा हिंदुओं का पैसा हिंदुओं की भलाई में लगना चाहिए। हम यह नहीं कह रहे कि किसी समुदाय को हटाओ, लेकिन इतनी असमानता क्यों?” उन्होंने LG मनोज सिन्हा से हस्तक्षेप की मांग की और चेतावनी दी कि, “जरूरत पड़ने पर बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।”
भारत का संविधान केवल धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता। लेकिन यहाँ विवाद आरक्षण का नहीं, संस्थान की पहचान और भावनात्मक अधिकारिता का है। संस्थान चाहता तो सेंटरल पूल सिस्टम के माध्यम से विभिन्न राज्यों व समुदायों का संतुलित प्रतिनिधित्व शामिल कर सकता था। इसके बजाय सीटें JKBOPEE के माध्यम से भरी गईं, जिससे यह एकतरफा परिणाम सामने आया।
कश्मीर में हिंदू जनसंख्या के नरसंहार, विस्थापन और वर्षों तक हिंदुओं पर अत्याचार की की स्मृतियां आज भी ताज़ा है।समुदाय के नेता जनता का विश्वास बहाल करने के लिए पारदर्शिता और संतुलन की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि योग्यता को हमेशा प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन आस्था से प्रेरित संस्थाओं को उन लोगों को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने उन्हें बनाने में मदद की।
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