लियोनेल मेसी के बहुचर्चित GOAT टूर के तहत कोलकाता आगमन से भारतीय फुटबॉल प्रशंसकों को ऐतिहासिक पल की उम्मीद थी, लेकिन जो सामने आया उसने आयोजन की असल सच्चाई को उजागर कर दिया। दुनिया के सबसे बड़े फुटबॉल सितारों में शुमार मेसी की मौजूदगी भी बंगाल की अव्यवस्था को नहीं छुपा सकी। कोलकाता में मेस्सी के टूर में उत्साह से ज़्यादा VIP कल्चर को प्राथमिकता दी गई, जिसकी कीमत फैंस ने चुकाई।
भारतीय प्रशंसकों ने वर्षों तक चैंपियंस लीग, ला लीगा और वर्ल्ड कप के दौरान रात-रात भर जागकर मेसी को टीवी स्क्रीन पर देखा है। बहुत कम लोगों ने कभी सोचा था कि वे उन्हें भारत की धरती पर अपनी आँखों से देख पाएँगे। जब कोलकाता में GOAT टूर की घोषणा हुई, तो यह मौका इस तरह दिखाया गया की पहला और आखरी होगा। टिकटों की कीमत भी उसी स्तर पर रखी गई। कई लोगों की एक महीने की कमाई खर्च कर टिकट ख़रीदे। लोगों ने बचत की, उधार लिया ताकि वे विश्व के सबसे बेहतरीन फुटबॉल खिलाडी को देख सकें।
आयोजन की शाम फैंस के दीदार के लिए आए मेस्सी कार्यक्रम के केंद्र में नहीं थे। मेसी के नाम पर साल्ट लेक स्टेडियम में हज़ारों लोग जुटे थे, वह कुछ ही मिनटों के लिए मैदान पर आए, चारों ओर से घिरे रहे और जल्द ही बाहर ले जाए गए। मैदान पर अव्यवस्थित भीड़, अधिकारी, आमंत्रित मेहमान और फोटोग्राफर, सब कुछ ऐसा था मानो आयोजन प्रशंसकों के लिए नहीं, बल्कि खास लोगों की मौजूदगी दिखाने के लिए रचा गया हो।
कुछ कोलकाता में हुआ, वह स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं रहा। कुछ ही घंटों में अराजकता के वीडियो सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो गए। गुस्साए फैंस, टूटी कुर्सियाँ, मैदान में घुसते लोग और हालात संभालने के लिए जूझती सुरक्षा व्यवस्था, ये दृश्य भारत की आयोजन क्षमता पर सवाल बन गए। मेसी की मौजूदगी मुश्किल से 20–22 मिनट की रही, लेकिन उसका असर और आलोचना लंबे समय तक चलने वाली है।
आयोजन की विफलता में VIP संस्कृति की भूमिका सबसे ज़्यादा उभरकर सामने आई। वीडियो फुटेज में साफ दिखा कि मेसी मैदान पर उतरते ही अधिकारियों और मेहमानों से घिर गए। स्टैंड्स में बैठे हजारों दर्शकों को उस खिलाड़ी की झलक भी ठीक से नहीं मिल पाई, जिसके लिए उन्होंने भारी कीमत चुकाई थी। मैदान पर मौजूद कुछ लोगों को बिना किसी रोक-टोक के नज़दीक पहुँच मिलती रही, जबकि आम दर्शक हाशिए पर धकेल दिए गए।
इस घटनाक्रम में सबसे बड़े पीड़ित ‘फैंस’ ही थे। कई लोग दूसरे राज्यों और यहां तक कि पड़ोसी देशों से आए थे। कुछ ने निजी कार्यक्रम शादी या हनीमून तक टाल दिए थे। बदले में उन्हें भ्रम, अव्यवस्था और अंत में निराशा मिली। मेसी के मैदान छोड़ते ही निराश फँस का गुस्सा फूट पड़ा, कुर्सियाँ उखाड़ दी गईं और हर उस चीज़ पर हमला किया गया जो फैंस के गुस्से को शांत कर पाटा। इसे सिर्फ़ तोड़फोड़ कह देना सच्चाई को नज़रअंदाज़ करना होगा; यह उन समर्थकों की प्रतिक्रिया थी जो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।
आयोजन, समन्वय और भीड़ प्रबंधन, तीनों मोर्चों पर सरकार और आयोजक विफल रहे। मैदान पर पुलिस विभाग की कमान नहीं दिखी। कई सुरक्षा एजेंसियों की मौजूदगी के बावजूद निर्देश अस्पष्ट थे, सुरक्षा एजेंसियों के बीच संतुलन की कमी थी। न तो प्रवेश पर नियंत्रण था और न ही कोई ठोस आपात योजना। हालात बिगड़ने पर उन्हें संभालने के लिए कोई निर्णायक हस्तक्षेप नहीं दिखा।
GOAT टूर का कोलकाता पड़ाव भारतीय फुटबॉल के जुनून को दिखाने का मौका था, लेकिन वह एक चेतावनी बनकर रह गया। जब तक फैंस को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, ऐसे आयोजन बार-बार खुद को ही नुकसान पहुँचाते रहेंगे।
मेसी आए, हाथ हिलाया और चले गए, लेकिन पीछे जो निराशा छूट गई, वह लंबे समय तक याद रखी जाएगी।
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