भारत की नई शिक्षा नीति के तहत एनसीईआरटी (NCERT) के किताबों में होते बदलावों से कई बार राजनीतिक बहस छिड़ चुकी है। दरम्यान विभाजन के साथ कांग्रेस की भूमिका को जोड़ने के बाद नए राजनीतिक विवाद भी सामने आने वाले है। एनसीईआरटी (NCERT) ने इस साल ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ (Partition Horrors Remembrance Day) पर स्कूली छात्रों के लिए एक विशेष शैक्षिक मॉड्यूल जारी किया है। इसमें इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ मोहम्मद अली जिन्ना पर नहीं, बल्कि कांग्रेस और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन पर भी डाली गई है।
मॉड्यूल में कहा गया है, “15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ। लेकिन यह किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं था। इसके लिए तीन तत्व ज़िम्मेदार थे। पहले, जिन्ना, जिसने विभाजन की मांग की दूसरी, कांग्रेस, जिसने इसे स्वीकार किया; और तीसरे, माउंटबेटन, जिन्होंने इसे लागू किया।”
कांग्रेस प्रस्थापित किए पुराने विमर्शों के कारण यह व्याख्या अब तक प्रचलित राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अलग है, जहाँ मुख्य रूप से जिन्ना की मांग और ब्रिटिश नीति को ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है। कांग्रेस की भूमिका को इस तरह प्रत्यक्ष रूप से शामिल करने से कोंग्रेसी गलियारों से अकादमिक हलकों ने तीखी प्रतिक्रिया देना शुरू किया है।
मॉड्यूल में विभाजन के दीर्घकालिक प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि विभाजन ने जम्मू-कश्मीर को एक बड़े सुरक्षा संकट में बदल दिया, जिसे आज भी कुछ विदेशी ताकतें भारत पर भू-राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करती हैं।
कांग्रेस के हिस्से की ज़िम्मेदारी का ज़िक्र होने के कारण इस सामग्री पर विवाद तेज़ हो गया है। पार्टी के नेताओं ने इसे इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश बताया, वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि एनसीईआरटी ने पहली बार विभाजन के पीछे के तीनों प्रमुख कारकों को स्पष्ट रूप से चिन्हित किया है।
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