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Friday, December 5, 2025
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भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और बदलता वैश्विक परिदृश्य!

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान की ओर झुकाव ने दो दशकों से मज़बूत होती भारत-अमेरिका साझेदारी को चुनौती दी है। लेकिन इस घटनाक्रम ने भारत को कमज़ोर करने के बजाय उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को और सुदृढ़ किया है। नई दिल्ली अब रूस के साथ रिश्तों को और गहरा कर रही है, चीन से व्यावहारिक संवाद साध रही है और वैश्विक दक्षिण (Global South) का नेतृत्व करते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का प्रदर्शन कर रही है।

हाल के महीनों ने दिखा दिया है कि भू-राजनीतिक परिदृश्य कितनी तेजी से बदल सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की सैन्य पराजय और भारत-पाक तनाव तो अपेक्षित था, लेकिन असली झटका अमेरिका से आया। वॉशिंगटन ने एक बार फिर पाकिस्तान को गले लगाते हुए भारत पर शुल्क लगाए और बयानबाज़ी की, जिसने पिछले 25 वर्षों की मेहनत से बनी साझेदारी की नींव हिला दी। ट्रंप, जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को आतंक का केंद्र बताया था, अब पाकिस्तानी आर्मी चीफ़ असीम मुनीर को रेड कार्पेट स्वागत दे रहे हैं और झूठा श्रेय ले रहे हैं कि भारत-पाक संघर्षविराम उनकी पहल से हुआ। इसके साथ ही उनके परिवार की कंपनी का पाकिस्तान से 17,000 करोड़ रुपये का क्रिप्टोकरेंसी समझौता अमेरिकी नीतियों की स्वार्थपरकता पर और सवाल खड़े करता है।

भारत ने अमेरिकी दबाव के सामने झुकने के बजाय रूस के साथ रिश्तों को और गहरा किया है। एनएसए अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु की बैठकें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की बातचीत, तथा विदेश मंत्री एस. जयशंकर की रूस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत-रूस साझेदारी अब भी मजबूत है। इसी दौरान, भारत ने चीन से भी संवाद बनाए रखा है, जैसा कि शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन से पहले वांग यी की दिल्ली यात्रा से स्पष्ट हुआ।

भारत की विदेश नीति अब “मल्टी-अलाइनमेंट” (Multi-alignment) की दिशा में और मुखर है—एक संबंध को मजबूत करना बिना दूसरे को कमज़ोर किए। मोदी सरकार ने अफ्रीकी संघ को G20 की सदस्यता दिलाकर यह साबित कर दिया है कि भारत की स्वतंत्र आवाज़ वैश्विक मंचों पर सम्मानित है। अमेरिका जहां अवसरवादी और मुनाफ़ा-केन्द्रित कूटनीति में फंसा हुआ दिख रहा है, वहीं भारत “ग्लोबल साउथ” का भरोसेमंद नेता बनकर उभर रहा है।

मोदी बार-बार ज़ोर देते हैं कि मज़बूत विदेश नीति की जड़ें मज़बूत घरेलू आधार में होती हैं। “आत्मनिर्भर भारत” केवल नारा नहीं बल्कि भविष्य की रणनीतिक स्वायत्तता की कुंजी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, जैव-इंजीनियरिंग और उन्नत तकनीकों में आत्मनिर्भरता भारत को वह ताक़त देगी कि दुनिया खुद भारत के साथ साझेदारी करने को मजबूर होगी।

ट्रंप का पाकिस्तान की ओर झुकाव और भारत के खिलाफ लगाए गए अनुचित शुल्क यह दिखाते हैं कि अमेरिका अब भरोसेमंद साझेदार नहीं रहा। लेकिन भारत न तो असहाय है और न ही किसी एक शक्ति पर निर्भर। आज का भारत वैश्विक शक्ति-संतुलन को प्रभावित करने वाला “सभ्यतागत राष्ट्र” है। चुनौती यह नहीं कि भारत दुनिया के बदलते हालात में कैसे ढलेगा—बल्कि यह है कि दुनिया एक मज़बूत और आत्मनिर्भर भारत के साथ कैसे तालमेल बैठाएगी।

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