‘त्रिशूलं समन्वयस्य बलम्’ यानी त्रिशूल समन्वय की शक्ति का प्रतीक है। अब यही समन्वय व शक्ति भारतीय सेनाएं दिखा रही हैं। भारतीय सशस्त्र सेनाओं यानी नौसेना, वायुसेना व थलसेना के वीर जवान ‘एक्सरसाइज त्रिशूल’ का संचालन कर रहे हैं।
यह एक प्रमुख त्रि-सेवा अभियान है जो भारतीय थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच संयुक्तता और इंटरऑपरेबिलिटी को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। भारतीय नौसेना के नेतृत्व में थलसेना और भारतीय वायुसेना के साथ यह त्रि-सेवा संयुक्त सैन्य अभ्यास अब तक के सबसे महत्वपूर्ण युद्धाभ्यासों में शामिल है। इस व्यापक अभ्यास के दौरान तीनों सेनाएं विभिन्न भू-भागों जैसे कि मरुस्थल, तटीय क्षेत्रों और समुद्री क्षेत्रों में एकीकृत अभियानों का प्रदर्शन कर रही हैं।
इससे तीनों सेनाओं की सिनर्जी और इंटीग्रेटेड ऑपरेशंस की वास्तविक क्षमता को परखा जाएगा। दरअसल, अभ्यास ‘त्रिशूल’ भारतीय सशस्त्र सेनाओं की उस अटूट भावना का प्रतीक है जो देश की सीमाओं की रक्षा के लिए संयुक्त शक्ति और समन्वित प्रयासों पर आधारित है।
यह अभ्यास तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक तालमेल, संसाधनों के साझा उपयोग और मिशन स्तर पर एकीकृत योजना निर्माण को सशक्त करने का काम करेगा।
अभ्यास का मूल भाव ‘जय’ है। यहां जय का अर्थ है संयुक्तता, आत्मनिर्भरता व नवाचार। ‘त्रिशूल’ अभ्यास भारत की सामूहिक सैन्य शक्ति, आत्मनिर्भरता और नवाचार की भावना का जीवंत उदाहरण है। यह एकता में निहित शक्ति का सशक्त प्रतीक है, जो राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता की अटूट रक्षा का संकल्प दोहराता है।
इस अभ्यास का संचालन मुख्यालय पश्चिमी नौसेना कमान द्वारा तीनों सेनाओं के घनिष्ठ समन्वय से किया जा रहा है। यह अभ्यास गुजरात और राजस्थान के क्रीक व मरुस्थलीय क्षेत्रों में हो रहा है।
बड़े पैमाने पर स्थलीय अभियानों के साथ-साथ उत्तरी अरब सागर में व्यापक समुद्री और उभयचर अभियान भी इसमें सम्मिलित हैं। इस अभ्यास में थलसेना की साउदर्न कमान, नौसेना की वेस्टर्न कमान, और वायुसेना की साउथ वेस्टर्न एयर कमांड मुख्य भूमिका निभा रही हैं।
इसके साथ ही भारतीय तटरक्षक बल, सीमा सुरक्षा बल तथा अन्य केंद्रीय एजेंसियां भी बड़ी संख्या में शामिल हो रही हैं, जिससे अंतर-एजेंसी समन्वय और संयुक्त संचालन क्षमता को और सुदृढ़ किया जाएगा।
अभ्यास का प्रमुख उद्देश्य तीनों सेनाओं के संचालन प्रक्रियाओं का सत्यापन एवं समन्वय करना है। यहां मल्टी डोमेन वातावरण में प्रभावी संयुक्त अभियान संचालित करने का अभ्यास किया जा रहा है। इसके तहत तीनों सेनाओं के प्लेटफॉर्म और बुनियादी ढांचे के बीच इंटरऑपरेबिलिटी को बढ़ाने पर फोकस किया जाएगा। यह नेटवर्क एकीकरण को भी मजबूत करेगा। विभिन्न डोमेन जैसे स्थल, वायु, समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर में तीनों सेनाओं के बीच संयुक्तता को सुदृढ़ करेगा।
नौसेना के मुताबिक इस अभ्यास में बड़े पैमाने पर नौसेना के युद्धपोत, वायुसेना के लड़ाकू एवं सहायता विमान, और थलसेना-नौसेना के उभयचर अभियानों का प्रदर्शन किया जाएगा।
इन अभियानों में नौसेना के लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक आईएनएस जलाश्वा और लैंडिंग क्राफ्ट यूटिलिटी पोत शामिल होंगे। साथ ही, अभ्यास में संयुक्त खुफिया निगरानी और टोही, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तथा साइबर युद्ध की रणनीतियों का भी परीक्षण किया जाएगा। वायुसेना के तटीय अड्डों के साथ मिलकर नौसेना के विमानवाहक पोत अभियानों का भी अभ्यास किया जाएगा।
‘त्रिशूल-2025’ के माध्यम से तीनों सेनाएं आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांतों को मूर्त रूप देंगी। इसमें स्वदेशी प्रणालियों और तकनीकों का प्रभावी उपयोग किया जाएगा। इसके साथ ही आधुनिक और भावी युद्ध के उभरते खतरों एवं स्वरूपों को ध्यान में रखते हुए संचालन प्रक्रियाओं के रिफाइनमेंट पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा।
त्रिशूल-2025, भारतीय सशस्त्र सेनाओं के संपूर्ण एकीकृत संचालन के संकल्प को रेखांकित करेगा, जिससे संयुक्त युद्धक तत्परता और राष्ट्रीय सुरक्षा की तैयारी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकेगा।



