लखनऊ। “तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार” जैसे नारों के जरिये ब्राह्मण समुदाय का तिरस्कार कर चुकी बीएसपी को दूसरी बार इस समुदाय पर डोरे डालते देखा जा रहा है,2007 में बसपा ने नारा दिया था – “ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जायेगा”। ब्राह्मण समुदाय के वोट मायावती को मिले और सूबे में बसपा की सरकार बनी, अब फिर बसपा के दिल में इस समुदाय के लिए प्रेम उमड़ पड़ा है।
अखिलेश यादव ने परशुराम की मूर्ति लगाने के नाम पर ब्राह्मण समुदाय को रिझाने की कोशिश की,अब मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलन का ऐलान किया है, सतीश चन्द्र मिश्रा जिले-जिले सम्मेलन करेंगे, बीजेपी फिलहाल अलग से कुछ नहीं बोल रही है, वो चुपचाप अपने काम कर रही है, ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को पार्टी में लाया गया। केन्द्र में एक ब्राह्मण को मंत्री भी बनाया गया, सूबे की टॉप ब्यूरोक्रेसी की कमान इसी समुदाय के अफसरों के हाथों में है, तो आखिर ऐसा क्या है कि ब्राह्मण समुदाय के प्रति पार्टियां चुनाव से पहले ऐसी लालसा दिखा रही हैं।
6-10 फीसदी के बीच प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी मानी जाती है, इतनी संख्या वाली तो बहुत जातियां हैं, फिर ब्राह्मण समुदाय को लेकर इतनी हलचल क्यों होती है, कारण दूसरे हैं,ब्राह्मण समुदाय एकमत से वोट करता है,अब 22 फीसदी कोर वोट वाली बसपा को 10 फीसदी और वोट मिल जाये तो उसकी राह आसान हो जायेगी, मायावती को लगता है कि ऐसा करके वो 2007 का इतिहास दोहरा पायेंगी, अखिलेश यादव के पास भी लगभग 22 फीसदी का कोर वोट है, उन्हें भी मायावती की तरह ही इस समुदाय के वोटों में अपनी जीत नजर आती रही है। पिछड़ों और दलितों को गोलबन्द करने वाली बीजेपी हर हाल में ब्राह्मणों को खुश रखा है, यही वजह कि योगी मंत्रिमण्डल में 9 मंत्री ब्राह्मण समुदाय से हैं, मोदी मंत्रिमण्डल में यूपी से दो मंत्री ब्राह्मण समुदाय से हैं, रीता जोशी, सत्यदेव पचौरी और अर्चना पांडेय पहले मंत्रिमण्डल में रह चुके हैं। वैसे तो यूपी में ब्राह्मणों का झुकाव पूरी तरह से भाजपा की ओऱ है। और आगे भी रहेगा।