कितने हैरत की बात है कि बरसाती पानी आकर पेयजल में मिल जाता है और फिर यही जल नल के जरिए हरेक घर पहुँच रहा है। यह हालत बीहड़ में बसे किसी गाँव-देहात की नहीं, बल्कि देश की आर्थिक-वाणिज्यिक राजधानी मुंबई की है। किसी छोटे-मोटे राज्य जितने बजट और और मिनी भारत की तरह आबादी वाली मुंबई में तमाम टैक्स अदा करने वाले नागरिकों के लिए यह अशुद्ध पेयजल बीमारियों के घर से कम नहीं, वह भी तब जब कोरोना जैसी अब तक की सबसे दुर्गंध महामारी पांव पसारे बैठी हो। यह सरकार की लापरवाही नहीं तो और क्या है ? जल शुद्धिकरण इकाइयां मौजूद हैं, वहाँ संबंधित कर्मचारियों-अधिकारियों का स्टाफ है। यह भी नहीं कि ऐसा किसी सियासी चाल के चलते हो रहा हो और जिस मुंबई मनपा पर यह सारा दारोमदार है, उसका राज्य सरकार से कोई सपोर्टिंग कम्युनिकेशन न हो। मुंबई जिस महाराष्ट्र प्रदेश की राजधानी है, वहां और मुंबई मनपा में सत्ता की कमान शिवसेना के हाथ है तथा कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस उसके साथ हैं, जिन्हें केंद्र, राज्य और मनपा के कामकाज का बरसों का अनुभव है। मामला बिलकुल ताजातरीन है। मूसलाधार बारिश हुई और भांडुप जलशुद्धिकरण परिसर में जल-जमाव हो गया। महज परिसर में ही नहीं, यह बरसाती पानी नागरिकों को पीने के लिए सप्लाई किए जाने वाले पेयजल में भी जा मिला और जलवाहिनी के जरिए यही पानी नल से इस महानगर के घरों में पहुँच गया।
शिवसेना शासित मनपा की लापरवाही
बीते 50 बरसों में पेयजल को लेकर इतनी गंभीर सरकारी लापरवाही का मामला पहली बार सामने आया है, जब पंपिंग स्टेशन में इस तरह की घटना हुई। लिहाजा, विपक्ष बरस पड़ा इस मामले को लेकर मनपा पर। मनपा में भाजपा नगरसेवक दल नेता प्रभाकर शिंदे ने यह प्रकरण मनपा के लिए गैरजिम्मेदाराना बताते हुए पूरे मामले की विस्तृत जांच किए जाने की मांग की है। प्रभाकर शिंदे का कहना है कि अब तक इतनी तूफानी बारिश हुई, पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस घटना के बाद महानगर के कई उपनगरीय इलाकों में दो दिन जलापूर्ति बंद थी। फिर मनपा प्रशासन ने नागरिकों से पानी उबालकर पीने की अपील करनी शुरु कर दी। मनपाओं की कैटिगरी में एशिया महाद्वीप में सबसे अव्वल मुंबई मनपा के लिए क्या यह सब शोभनीय है ?
जल शुद्धिकरण इकाई में ही बारिश का जल-जमाव
उन्होंने कहा है कि वर्ष 2005 के मानसून में 26 जुलाई को हुई भीषण बारिश में भी वहां जल-जमाव नहीं हुआ था। ताजा मसला तब घटित हुआ, जब मुंबई को जलापूर्ति करने वाले जलाशयों में शुभार विहार तालाब लबालब भरकर बह रहा था। दरअसल, यह बरसाती पानी कुदरती तरीके से विहार तालाब में इकट्ठा होता है, फिर वह इस पेयजल शुद्धिकरणत केंद्र में कैसे भर गया ? मेरे हिसाब से ऐसा जल-प्रवाह स्रोत के बाधित होने से हुआ होगा, जिससे सरकारी तंत्र बेखबर रहा। अगर समय रहते इसी सरकारी तंत्र ने इस संबंध में ध्यान दिया होता, तो मुंबईवासियों को दो दिन पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती अथवा पानी उबालकर पीने की मजबूरी नहीं आती। इसलिए बेहद जरूरी है कि इस समूचे मामले की गहन जांच हो,क्योंकि यह जनजीवन से जुड़ा अत्यंत अहम मसला है।
नागरिकों को बताओ असलियत
प्रभाकर शिंदे का कहना है कि मामले की गहन जांच इसलिए जरूरी है, ताकि असलियत आम जनता के सामने आ सके और उसे यह भी पता चले कि भविष्य में फिर कभी ऐसा न होने देने की सतर्कता के लिहाज से मुंबई मनपा प्रशासन क्या कदम उठाने वाला है। सो, इस बाबत जांच रपट मिलने के लिए मैंने प्रशासन को पत्र भी लिखा है।
वाॅटर टैंकर-मिनरल वाॅटर पर निर्भर रहे लोग
उल्लेखनीय है कि पंपिग स्टेशन में पानी भर जाने से सतर्कता के तौर पर वहाँ की विद्युत आपूर्ति बंद कर दी गई थी, जिससे मुंबई के अनेक इलाकों में जलापूर्ति ठप रही। खासकर, जलशुद्धिकरण इकाई में ही बारिश का पानी भर जाने से महानगर समेत पश्चिम उपनगरीय इलाकों में इस दरमियान जलापूर्ति बंद रही। लिहाजा, लोगों को भर बरसात में मजबूरन टैंकर के पानी पर आश्रित होना पड़ा। दक्षिणी मुंबई समेत कई इलाकों में लोगों को शुद्ध पेयजल के अभाव में बोतलबंद पानी खरीद कर अपनी प्यास बुझानी पड़ी और बाद में जलापूर्ति शुरु होने के उपरांत नल से मटमैला पानी मिल रहा होने के कारण मनपा प्रशासन को नागरिकों से यह पानी उबाल कर पीने की अपील की गई।