कहते हैं कि अगर विधि पूर्वक श्राद्ध किया जाए तो पितृ अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है। इस वर्ष श्राद्ध का समापन 6 अक्टूबर को अमावस्या के दिन होगा। इस दिन सर्व पितृ अमावस्या होती है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस दिन किसी का भी श्राद्ध किया जा सकता है। यहां तक कि अगर आप अपने पित्रों की तिथि भूल गए हैं तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन इनका श्राद्ध किया जा सकता है।
श्राद्ध के दिन सुबह स्नान के बाद भोजन की तैयारी कर भोजन को पांच भागों में विभाजित करके ब्राह्मण भोज कराएं। श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोज से पहले पंचबली भोग लगाना जरूरी होता है। अन्यथा श्राद्ध को पूरा नहीं माना जाता। पंचबली भोग में गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देव आते हैं। इन्हें भोग लगाने के बाद ही ब्राह्मण भोग लगाया जाता है। उसके बाद ही खुद भोजन ग्रहण करें। श्राद्ध करने वाले के पास धन, वस्त्र एवं अन्न का अभाव हो तो उसे गाय को भोजन कराना चाहिए। ऐसा करके भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति किए जााने की मान्यता है।
माना जाता है कि इस प्रकार का श्राद्ध-कर्म एक लाख गुना फल प्रदान करता है। यदि आपके पास गाय को भोजन कराने के लिए भी धन नहीं है तो भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। आप एक खुले स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथ ऊपर उठाएं और पित्रो से कहें कि हे मेरे सभी पितृगण मेरे पास श्राद्ध के निमित्त न धन है न धान्य है, आपके लिए मात्र श्रद्धा है। अतः मैं आपको श्रद्धा-वचनों से तृप्त करना चाहता हूं। आप सब कृपया तृप्त हो जाएं।