जब जब्त हो गया था कांग्रेस की दो बैलों को जोड़ी
1967 के पांचवें आम चुनाव में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली। कांग्रेस 520 में 283 सीटें जीत पाई। ये उसका अब तक सबसे खराब प्रदर्शन था। इंदिरा प्रधानमंत्री तो बनी रहीं लेकिन कांग्रेस में अंर्तकलह शुरू हो गई। आखिरकार 1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया। मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे। पार्टी में विभाजन के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई। दोनों गुटों न पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘दो बैलों की जोड़ी’ पर कब्जे की कोशिश की पर विवाद के चलते चुनाव आयोग ने इस चुनाव चिन्ह को फ्रिज कर दोनों गुटों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह दे दिया। कांग्रेस (आर) को जहां ‘गाय व बछड़ा’ चुनाव चिन्ह मिला वहीं कांग्रेस (ओ-ओरिजिनल) को बतौर चुनाव चिन्ह चरखा दिया गया। 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद चुनाव आयोग ने ‘गाय के बछड़े’ के चिन्ह को भी जब्त कर लिया और नया चुनाव चिन्ह मिला हाथ का पंजा।
चुनाव आयोग पहुंचा था सपा की ‘सायकिल’ का मामला
वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव के बीच पैदा हुए विवाद में सपा के चुनाव चिन्ह का विवाद चुनाव आयोग पहुंचा था। दोनों गुटों ने सायकिल चुनाव चिन्ह पर दावा करते हुए अपने-अपने दस्तावेज जमा कराए थे। चुनाव आयोग ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सपा को अखिलेश के हाथों में सौंप दिया था। फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग पूरे दिन इस मुद्दे पर मंथन करते हुए चुनाव चिन्ह सायकिल को फ्रिज करने पर भी विचार किया था पर ऐसा इस लिए नहीं किया जा सका क्योंकि सपा में टूट नहीं हुई थी।
क्या कहता है कानून
इस बारे में संविधान विशेषज्ञ व राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्री हरि अणे कहते हैं कि ‘चुनाव चिन्ह किसी व्यक्ति को नहीं एक पार्टी को आवंटित किया जाता हैं। चूंकि शिवसेना एक पंजीकृत पार्टी है। इसलिए चुनाव आयोग ने शिवसेना को ‘धनुषबाण’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया है। चुनाव चिन्ह को लेकर चुनाव आयोग को पहले सभी संबंधित पक्षों को सुनना पड़ेगा। क्योंकि यदि शिंदे धनुष बाण पर दावा करेंगे तो शिवसेना पक्ष प्रमुख ठाकरे की ओर से इसका विरोध किया जाएगा। ऐसी स्थिति में आयोग सभी पक्षों को सुनने के बाद ही अपना आदेश देगा।
महाराष्ट्र : विधानसभा अध्यक्ष पर भाजपा के राहुल नार्वेकर की जीत