महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती महा विकास आघाडी सरकार के कार्यकाल में नगर विकास मंत्री रहे एकनाथ शिंदे द्वारा झुग्गी बस्तियों की जमीन निजी व्यक्तियों को आवंटित किये जाने के मुद्दे पर मंगलवार को विधान परिषद में विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच वाद-विवाद के बाद सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सदन में कहा कि उनकी सरकार महंगी जमीन किसी को सस्ती दर पर नहीं देती है। विधान परिषद में विपक्ष को नेता अंबादास दानवे इस मुद्दे पर बयान दे रहे थे, तब राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री चंद्रकांत पाटिल एवं गठबंधन सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी के कई सदस्यों ने इसका विरोध किया तथा परिषद की उपसभापति नीलम गोर्हे से आग्रह किया कि वह इस मुद्दे पर चर्चा के लिए दानवे को किसी अन्य दिन समय दें।
मंगलवार की सुबह विधान परिषद की कार्यवाही जैसे ही शुरू हुई, गोर्हे ने प्रश्नकाल शुरू करने को कहा, लेकिन दानवे ने शिंदे द्वारा आवंटित भूमि का मुद्दा उठाया। दानवे ने कहा, ‘‘नागपुर सुधार न्यास (एनआईटी) ने झुग्गियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए साढ़े चार एकड़ भूखंड आरक्षित किया था। हालांकि, पूर्व शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे (अब मुख्यमंत्री) ने इस भूखंड के टुकड़ों को 16 निजी व्यक्तियों को डेढ़ करोड़ रुपये में आवंटित कर दिये थे, जबकि भूमि का मौजूदा मूल्य 83 करोड़ रुपये है।’’ दानवे ने कहा, ‘‘यह बेहद गंभीर मामला है।
बांबे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने भूमि सौंपने पर पहले ही रोक लगा दी थी और मामला अब भी चल रहा है। उसके बावजूद, (महा विकास आघाड़ी सरकार में) शहरी विकास मंत्री के तौर पर शिंदे ने जमीन सौंपने का निर्णय लिया, जो अदालत के कार्य में गंभीर हस्तक्षेप है।’’ हालांकि, पाटिल ने दानवे के बयान का विरोध किया और कहा कि जब उपसभापति ने प्रश्नकाल शुरू करने की घोषणा की थी, तो नेता प्रतिपक्ष को यह मुद्दा बाद में उठाना चाहिए था। पाटिल की इस बात का शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के सदस्य अनिल परब ने विरोध करते हुए कहा कि दानवे ने ‘व्यवस्था का प्रश्न’ के तहत यह मुद्दा उठाया है और इसके लिए कोई प्रतिबंध नहीं है।
इसी बात को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच वाद-विवाद शुरू हो गया और उपसभापति को 15-15 मिनट के लिए दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। दो बार के स्थगन के बाद जब कार्यवाही फिर शुरू हुई तो फडणवीस ने इस मामले में टिप्पणी करनी शुरू की। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को अभी सदन में नहीं उठाना चाहिए था, क्योंकि अदालत ने इस पर कोई फैसला अभी तक नहीं सुनाया है। उपमुख्यमंत्री की इस टिप्पणी पर विपक्षी सदस्य खड़े हो गये और विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद गोर्हे ने सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी।
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