भारत के आध्यात्म गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को मनाई जा रही है। इस दिन को देश में राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसकी वजह है, विवेकानंद का आदर्श जीवन, जो हर युवा के लिए प्रेरणा है। उनके विचार युवाओं के लिए बहुत बड़ा प्रेरणा स्रोत हैं। स्वामी विवेकानंद आज भी देश के लाखों युवओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है।
कोलकाता में जन्म लेने वाले विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र नाथ था। वहीं महज 25 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने सांसारिक मोहमाया को त्यागकर सन्यास ले लिया और ज्ञान की तलाश में चल पड़े। स्वामी विवेकानंद ने 19वीं शताब्दी के अंत में विश्व मंच पर हिंदू धर्म को एक मजबूत पहचान दिलाई थी। 11 सितंबर 1893 में अमेरिका में विश्व धर्म महासभा का आयोजन हुआ। इस आयोजन में स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए थे। यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में ये कहकर की कि ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’। विवेकानंद जी के भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रहीं। जो भारत के इतिहास में एक गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गई।
विवेकानंद जी अक्सर साधारण भिक्षु रूपी वस्त्र पहनते थे। इसी वस्त्र को धारण कर वे विदेश में घूम रहे थे। उनके इसी वस्त्र ने एक विदेशी का ध्यान खींच लिया। उस विदेशी ने चिढ़ाते हुए विवेकानंद जी की पगड़ी तक खींच ली। विदेशी की इस हरकत के बाद उन्होंने अंग्रेजी में ऐसा करने का कारण पूछा तो वह विदेशी आश्चर्य में पड़ गया। उस विदेश को ये समझ नहीं आया कि उन्हें इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे आती है। फिर उसने विवेकानंद जी से पूछा कि क्या आप शिक्षित हैं? तब स्वामी विवेकानंद जी ने विनम्रता से कहा ‘हां मैं पढ़ा लिखा हूं और सज्जन व्यक्ति हूं।’ तब विदेशी ने कहा कि आपके कपड़े देखकर तो नहीं लगता कि आप सज्जन व्यक्ति हैं। इस बात पर स्वामी विवेकानंद ने जवाब देते हुए कहा कि आपके देश में एक दर्जी व्यक्ति को सज्जन बनाता है, लेकिन मेरे देश में व्यक्ति का व्यवहार उसे सज्जन बनाता है। ऐसा जवाब सुनकर उस विदेशी को शर्मिंदगी महसूस हुई और उसे अपनी गलती का आभास हुआ।
स्वामी जी की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 1985 से हुई। सरकार ने यह फैसला 1984 में लिया था। स्वामी विवेकानंद के भाषण, उनकी शिक्षाएं, उद्धरण युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। साल 1900 में स्वामी विवेकानंद यूरोप से भारत आए तो बेलूर अपने शिष्यों के साथ समय बिताने चले गए। यह उनके जीवन का आखिरी भ्रमण था। इसके दो साल बाद 4 जुलाई 1902 को उनकी मृत्यु हो गई।
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