संजय राउत ने राज्य के उन डॉक्टरों और नर्सों को लेकर विवादित बयान दिया जो कोविड के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना राज्य में दिन-रात काम कर रहे हैं थे। वहीं अब इसकी आलोचना हो रही है। राउत के बयान पर मेडिकल एसोसिएशन ने भी रोष जताया है। संजय राउत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि राज्य में डॉक्टर और नर्स कोविड के शुरुआती दौर में अपनी जिम्मेदारियों से भागे, वहीं संजय राउत के इस बयान पर प्रतिक्रिया आई।
राउत के बयान की राज्य के डॉक्टरों और उनके संगठनों ने निंदा की है। कोरोना के दौरान देवदूत बने डॉक्टर और नर्स। उन्होंने अपने परिवार की परवाह किए बिना कई लोगों को बचाया। लेकिन इन्हीं डॉक्टरों के बारे में बात करते हुए संजय राउत ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और उनका अपमान किया।
हालांकि स्वयं का बचाव करते हुए आज उन्होंने कहा कि उनके बयान को गलत लिया गया है कोरोना काल के दौरान कई डॉक्टर और नर्स उपस्थित नहीं थे। डॉक्टरों की संख्या काम थी, वो मिल नहीं रहे थे। हालांकि इस तरह की सफाई का अब कोई फायदा नहीं है। क्यूंकी अपने कोरोनाकाल के योद्धाओं को लेकर जो बयान दिया वो बेहद शर्मनाक है।
कोरोना के दौरान डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दिन-रात मरीजों का इलाज किया। चौबीसों घंटे काम किया। कई डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हुए मर गए।हालांकि संजय राउत ने उनकी सेवा को सलाम करने की बजाय उन्हें बदनाम करने का काम किया है। संजय राउत बयान देते हैं कि डॉक्टर और नर्स जिम्मेदारी से भाग गए। तो मरीजों का इलाज किसने किया? जब संजय राउत यह बयान देते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ठोस फैसले लिए, इसलिए हम कोरोना पर जीत पाए नहीं तो मीठी नदी में लाशें तैरती नजर आतीं, इस तरह का बयान देने के बावजूद आपने डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ का अपमान किया।
इस कोरोना काल में जहां ये सभी फरिश्ते दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, तो वहीं मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे अपने घर से भी नहीं निकले। इसलिए इस बात की आलोचना की गई कि महाराष्ट्र ने कभी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं देखा जो घर बैठे राज्य के मामलों को चलाता हो।
वही कोरोना काल में संजय राउत का एक बयान खूब चर्चा में रहा था। जिसपर राउत का खूब मजाक उड़ाया गया था। उन्होंने कहा कि डॉक्टर होने का क्या फायदा? दरअसल डॉक्टर से ज्यादा कंपाउंडर जानता है। मैं कभी डॉक्टर से दवा नहीं लेता। कंपाउंडर से दवाई लेता है। क्यूंकी वे ज्यादा जानते हैं। उन डब्ल्यूएचओ वालों की मत सुनो। उनकी वजह से ही कोरोना वायरस बढ़ा है।’
दरअसल कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए दौड़ते हुए राउत की तस्वीर हमने कभी नहीं देखी। राउत कभी अस्पताल नहीं गए और मरीजों की मदद करते नहीं दिखे। वहीं कई समाजसेवी थे, जो सीधे तौर पे मरीजों की मदद कर रहे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी सड़कों पर उतर आया और लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन उद्धव ठाकरे ने घर बैठकर स्टीम लेने की सलाह दी।
जिम्मेदारी परिवार पर डाल दी गई। दुर्भाग्य से उस दौरान महाराष्ट्र कोरोना से होने वाली मौतों और मरीजों की संख्या में पहले नंबर पर था। तो इसका जिम्मेदार कौन था? क्या हम यह कहें कि उद्धव ठाकरे द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण ऐसा हुआ? बताइए ऐसा कौन सा फैसला लिया गया कि महाराष्ट्र मौत के मामले में नंबर वन हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री तो घर से बाहर भी नहीं निकले, फिर फैसला कैसे लिया।
संजय राउत का कहना है कि डॉक्टर और नर्स अपनी जिम्मेदारी से भाग गए थे। तो सवाल यह उठता है कि क्या संजय राउत डॉक्टर का काम कर रहे थे? इसके विपरीत तत्कालीन विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे असल में मैदान में उतरे थे। देवेंद्र फडणवीस को भी इस दौरान दो बार कोरोना वायरस हुआ। कोरोना के बाद उन्होंने निजी अस्पताल के बजाय सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। उन्हें सरकारी अस्पताल, वहां के डॉक्टरों पर भरोसा था। लेकिन जब महाविकास अघाड़ी के नेताओं को कोरोना वायरस हुआ तो उस वक्त वे एक निजी अस्पताल पहुंचे। वे किसी सरकारी अस्पताल के भरोसे नहीं रहे। उनके इलाज के भारी भरकम बिल सरकारी खजाने पर लादे गए। इसका मतलब यह है कि आपके नेताओं को आपके तत्कालीन मुख्यमंत्री के फैसले पर कोई भरोसा नहीं था।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से नागरिकों से डॉक्टरों को प्रोत्साहित करने और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए थाली बजाने और मोमबत्ती जलाने की अपील की। उसके बाद भी महाविकास अघाड़ी के नेता आलोचना करते नजर आए। उस आवाहन का मजाक उड़ाया गया था। लेकिन जनता ने पीएम मोदी की अपील पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया दी। डॉक्टर, नर्स, पुलिस का हौसला बढ़ाने के लिए जनता ने ताली बजाकर दिखाया कि हम भी आपके साथ हैं। लेकिन महाविकास अघाड़ी ऐसा नहीं कर सका।
कोरोना की विभीषिका यानी डर को दूर करने और नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए चौबीसों घंटे संघर्ष कर रहे कोरोना योद्धाओं के सम्मान में पुष्पवर्षा की गई। हालांकि इसकी भी आलोचना हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते थे कि ताली बजाने और दीया जलाने से मरीज ठीक नहीं होंगे। लेकिन मोदी जानते थे कि डॉक्टरों की कृपा से मरीज अवश्य ठीक हो जाते हैं।
एक डॉक्टर भी इंसान होता है। महाविकास अघाड़ी के अधिकांश नेता इस बात को भूल गए होंगे। महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने उनकी अपील का इस भावना के साथ विरोध किया कि मोदी ने अपील की है इसलिए हमें उनका विरोध करना चाहिए लेकिन वह कार्रवाई लोगों के खिलाफ, कोरोना योद्धाओं के खिलाफ जा रही थी।
संजय राउत ने कहा उस समय कोरोना महामारी की भविष्यवाणी नहीं की गई थी। इसलिए मैं अस्पताल नहीं जा सका। लेकिन इंसानियत के नाते उन्हें हिम्मत देना जरूरी था। यह जानकर मोदी ने थाली बजाकर उनके काम की सराहना की थी और उनके काम को सलाम किया था। पूरा देश उनके पीछे खड़ा था। लेकिन यह बात महाविकास अघाड़ी के नेताओं के आखों में चुभ रहा था। संजय राउत का ये ताजा बयान उसी गैरजिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है।
संजय राउत ने आगे कहा कि अगर कोरोना काल में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री नहीं होते तो उत्तर प्रदेश में भी गंगा में लाशों की तरह ही मीठी नदी में तैरती लाशें दिखतीं। यह एक उदाहरण है कि हम किस स्तर की राजनीति में जा रहे हैं। शवों को गंगा नदी में छोड़ना या उसके किनारे दफनाना सदियों पुरानी परंपरा है लेकिन वह भी महाविकास अघाड़ी ने गंदी राजनीति के लिए इस्तेमाल की। राउत के सिर में राजनीति की वह लकीर अब भी है। उन्होंने अपने नेता के मार्गदर्शन के लिए डॉक्टर, नर्स जैसे कोरोना योद्धाओं के काम को गौण मानने का पाप किया है।
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