27 C
Mumbai
Sunday, November 24, 2024
होमब्लॉगशिवसेना के आपदा में NCP को अवसर?    

शिवसेना के आपदा में NCP को अवसर?    

Google News Follow

Related

आज उद्धव ठाकरे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्तमान में उद्धव गुट की जो स्थिति बनी है उसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है बल्कि खुद उद्धव ठाकरे हैं। इसके बारे में कई बार कहा और सुना जा चुका है। बावजूद इसके समय समय पर उद्धव ठाकरे की नाकामी और उनकी महत्वाकांक्षा पर भी बात होती रहेगी। मै अपने कई वीडियो में कह चुका हूं कि अगर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद की लालसा नहीं होती तो आज यह हालात नहीं बनते।

लेकिन, कहा जाता है कि संजय राउत के बहकावे में आकर उद्धव ठाकरे ने इस आपदा को खुद दावत दी है। लेकिन जिस शिवसेना को बाला साहेब ठाकरे ने बोया और उसे खून पसीने से सींचा उसे उद्धव ठाकरे ने गंवाने में समय नहीं लगाया। उस शिवसेना को एक झटके में तार तार करने में उद्धव ठाकरे के चापलूस करीबियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बहरहाल, उद्धव ठाकरे पर आये इस आपदा में एनसीपी को अपना फायदा दिख रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आज एनसीपी के मुखिया शरद पवार इसे अवसर के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या शिवसेना के आपदा में एनसीपी इस अवसर का फायदा उठाएगी। लोगों का कहना है कि तीर कमान गंवा चुकी शिवसेना के संकट से एनसीपी की उम्मीदें ज्यादा बढ़ गई हैं। जिसका फ़ायदा उठाने की एनसीपी कोशिश भी कर रही है। एनसीपी के कार्यकर्ता अजित पवार को मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार बताने लगे हैं। बड़े बड़े उनके नाम के शहर में पोस्टर लग रहे हैं। एनसीपी कार्यकर्ताओं के ये इरादे बता रहे हैं कि कैसे राज्य में मची उथल पुथल का फ़ायदा उठाना चाहते हैं।

एक समय था कि एनसीपी अपने अस्तित्व को लेकर ही संकित थी, लेकिन आज उसके हौसले बुलंद हैं। उसके कार्यकर्ता अजित पवार को मुख्यमंत्री के रूप में देखने को आतुर है तो पार्टी अपने विस्तार पर जोर दे रही है। इतना ही 2022 में शिवसेना में फूट होने की वजह से एनसीपी का कद भी बढ़ा है। शिवसेना में फूट के बाद उसके नेता शरद पवार की प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक नजर आये।

कई मौके पर तो शरद पवार ने शिवसेना की उम्मीद से परे जाकर बात कही। जैसे जब शिंदे गुट गुवाहाटी में था तो उन्होंने कहा था कि यह शिवसेना का आंतरिक मामला है। लेकिन जैसे जैसे हालात बिगड़ते गए वैसे वैसे शरद पवार के भी सुर बदलते गए। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि उद्धव ठाकरे को संगठन पर ध्यान देना चाहिए था। यह प्रतिक्रिया उस नेता की थी जिन्होंने शिवसेना के साथ जाकर सरकार बनाई थी। महीने भर की भागदौड़ के बाद महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी थी। लेकिन शरद पवार ने शिवसेना में पड़ी फूट को सुलझाने के बजाय उलझाते चले गए।

समय का खेल देखिये कि जब शिवसेना में फूट नहीं हुई थी तो महाविकास अघाड़ी सरकार में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे। लेकिन जब शिवसेना में फूट पड़ी तो विधायक कम हो गए। इसके बाद विपक्ष के नेता की भूमिका में भी बढ़ा बदलाव हुआ और यह पद एनसीपी के नेता अजित पवार को मिल गया। आज अजित पवार मौक़ा पर चौका मारने की फिराक में हैं। सड़क से लेकर संसद तक रोज बीजेपी और शिंदे गुट पर हमला कर रहे हैं। एनसीपी नेता को पता है कि कई दशक से राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली शिवसेना का अस्तित्व खतरे में है तो फ़ायदा उठा लो नहीं तो वह भी मौक़ा नहीं मिलने वाला है।

भले कांग्रेस और एनसीपी कह रही हैं कि आगामी चुनाव में तीनों पार्टी एक साथ मिलकर राज्य में चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अब क्या उद्धव ठाकरे के पास पहले वाला जन सैलाब है। क्या उद्धव गुट  अपने बिखरे वोटरों को संभाल पायेगा। इन बातों से सहमति जताना मुश्किल है, क्योकि कुछ दिनों में शिंदे गुट और बीजेपी ने महाराष्ट्र की जनता के लिए अच्छा काम किये हैं उसे नकारा  नहीं जा सकता है। यह भी कह सकते हैं कि चुनाव आयोग के फैसले से उद्धव गुट के विस्तार पर बड़ा असर देखने को मिल सकता है।

लेकिन, एनसीपी इस मामले में बहुत आगे बढ़ चुकी है। कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे पार्टी की फूट से उबरे नहीं थे कि अब शिवसेना नाम और सिंबल छीन जाने के बाद से उनके संगठन पर और असर पड़ेगा। वहीं शिंदे गुट अपना विस्तार बड़े आराम से कर रहा है। एनसीपी की बात करें तो आज वह संगठन को मजबूत करने और कार्यक्रमों को करने में सबसे आगे है। पार्टी लगातार युवाओं से सम्पर्क कर रही है। बताया जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने एनसीपी से जुड़े युवाओं को कुछ समय देने की अपील की है। जिससे यह साफ़ होता है कि राज्य में एनसीपी अब शिवसेना में उपजे संकट को अपने लाभ के तौर पर भुनाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, जयंत पाटिल के भी समर्थक उन्हें भावी मुख्यमंत्री बता रहे है।

शरद पवार भी राज्य में दौरा कर रहे हैं। पुणे में होने वाले उप चुनाव के लिए लगातार संपर्क कर रहे है। बताया जा रहा है कि एनसीपी के नेता रोहित पवार भी नई पीढ़ी में अपनी पैठ बनाने में लगे हुए हैं। कहा जा रहा है कि एनसीपी मौके की नजाकत को भांपते हुए अपने हाथ पैर चला रही है। हालांकि, एनसीपी नेताओं को पता है कि बीजेपी और शिंदे गुट से पार पाना आसान नहीं होगा लेकिन पार्टी नंबर गेम में आगे रहना चाहती है। वहीं, कांग्रेस आंतरिक कलह से जूझ रही है। नाना पटोले पर प्रदेश के ही नेता सवाल उठा रहे हैं। हाल ही ने कांग्रेस नेता बाला साहेब थोराट ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था उन्होंने नाना पटोले के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर चुके हैं।

बता दें कि महाविकास अघाड़ी की तीनों पार्टियां आपस में ही प्रतिस्पर्धा करती नजर आ रही है। जबकि एक समय ऐसा था कि एनसीपी तीसरे नंबर पर थी,लेकिन आज एनसीपी नंबर दो और एक के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रही है। 1999 में हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 26  प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे और अनठावन सीटें जीती थी। जबकि 75 सीटों के साथ कांग्रेस पहले स्थान पर थी। वहीं, शिवसेना उनहत्तर सीट जीतकर दूसरे स्थान पर थी। अगर बीजेपी की बात करें तो छप्पन सीटों के साथ चौथे नंबर पर थी।

लेकिन, आज पुरानी स्थिति में बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज बीजेपी पहले स्थान पर है,जबकि  कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है। जबकि शिवसेना और एनसीपी आज भी अपनी पुरानी स्थिति में हैं। शिवसेना 56 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है और एनसीपी 54 सीटों के साथ तीसरे पायदान पर है। सबसे बड़ी बात यह है कि 1999 के आसपास भी शिवसेना का वोट शेयर 18 प्रतिशत था जो आज भी है। वह पुराने आंकड़े को पार नहीं कर पाई है। कहा जा रहा है अब इसी 18 प्रतिशत वोट पर एनसीपी की नजर है। तो देखना होगा कि क्या एनसीपी शिवसेना के आपदा को अवसर में बदल पाती है या बीजेपी और शिंदे गुट उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देंगे।

 ये भी पढ़ें 

क्या कंगना की बद्दुआ सच हुई?

शिवाजी के अपमान पर नहीं बोलेंगे राउत?  

राहुल गांधी का कश्मीर में ‘राजनीतिक टूर’

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,295फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
194,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें