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Saturday, November 23, 2024
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अमेठी में सपा का खेल, कांग्रेस से नहीं कोई मेल

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव 5 मार्च को एक दिवसीय अमेठी दौरे पर पहुंचे थे। जहां वो प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की बेटी की शादी में शामिल हुए। इसी बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक ऐसा बयान दिया है जो यूपी की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। कभी कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी में पहुंचे अखिलेश यादव ने एक बड़ा एलान कर दिया है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ रहे अमेठी क्षेत्र से अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार उतारने के संकेत दे दिए हैं। हालांकि इससे पहले सपा अभी तक अमेठी लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी उतारने से परहेज करती रही है, लेकिन इस बार अखिलेश के इस बयान से चर्चा तेज है कि अमेठी से सपा भी उम्मीदवार उतार सकती है।

अमेठी दौरे पर गए अखिलेश ने ट्वीट कर लिखा, ”अमेठी में गरीब महिलाओं की दुर्दशा देखकर मन बहुत दुखी हुआ। यहां हमेशा वीआईपी जीते और हारे हैं, फिर भी यहां ऐसा हाल है तो बाकी प्रदेश का क्या कहना। अगली बार अमेठी बड़े लोगों को नहीं बड़े दिलवाले लोगों को चुनेगा। सपा अमेठी की दरिद्रता को मिटाने का संकल्प उठाती है।” अखिलेश के इस ट्वीट ने साफ संकेत दे दिए हैं कि इस लोकसभा चुनाव में सपा अमेठी से भी उम्मीदवार मैदान में उतार सकती है।

बता दें कि अमेठी लोकसभा क्षेत्र कई सालों से नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है। हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को हाराकर कांग्रेस के इस किले को ध्वस्त किया था। अमेठी से कांग्रेस के सबसे पहले उम्मीदवार विद्या धर बाजपेयी थे, इसके बाद इस सीट पर संजय गांधी और राजीव गांधी का भी जादू चला। फिर साल 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने भी जीत दर्ज की और फिर साल 2004 से 2014 तक इस सीट से राहुल गांधी भी सांसद रहे।

वहीं बात यदि लोकसभा चुनाव की कि जाए तो जनपद अमेठी की लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी दो बार अपना प्रत्याशी उतार चुकी है और दोनों बार उसको हार का सामना करना पड़ा है। पहली बार सपा ने 1998 के लोकसभा चुनाव में शिवप्रसाद कश्यप को अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा था। लेकिन वो चुनाव नहीं जीत सके। वहीं 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भी सपा ने कुमारु जजमा फौजी को अपनी पार्टी से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन सोनिया गांधी के द्वारा उनको भी हार का सामना करना पड़ा था। एक ओर जहां कॉंग्रेस के खाते में 67 फीसदी वोट आए तो वहीं सपा उम्मीदवार को 2.67% वोट मिले थे। साल 2017 में अखिलेश और राहुल ने ‘यूपी के लड़के’ नारे के साथ गठबंधन किया। हालांकि इसे चुनावी सफलता नहीं मिली और राज्य में बीजेपी की सरकार बनी। 311 सीटों पर लड़नेवाली सपा केवल 47 सीट ही जीत पाई। जबकि 114 सीटों पर उतरी कॉंग्रेस के खाते में महज 7 सीटें ही आई।

सवाल यह है कि सपा अमेठी से चुनाव क्यों लड़ना चाहती है- दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के अमेठी से हार जाने के बाद सारे सियासी समीकरण बदल गए हैं। स्मृति ईरानी बीजेपी से सांसद हैं और केंद्र में मंत्री है। राहुल की हार के बाद से गांधी परिवार का अमेठी से मोहभंग हो गया है। पिछले पांच सालों में राहुल गांधी गिन कर दो तीन बार ही अमेठी गए है। ऐसे में कांग्रेस अमेठी में लगातार कमजोर होती जा रही है तो सपा को अपनी जड़ें जमाने में कामयाबी मिल रही है। अमेठी की सियासत में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे खिसकती जा रही है और सपा बढ़ रही है। अमेठी लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। 2022 के चुनाव में अमेठी और गौरीगंज से सपा अपने दो विधायक बनाने में कामयाब रही थी जबकि सलोन सीट पर बहुत ही मामूली वोटों से हार गई थी।

वहीं बात यदि गठबंधन की करें तो सपा पहले ही साफ कर चुकी है कि वह कॉंग्रेस या बहुजन समाज पार्टी के साथ 2024 के चुनाव में नहीं उतरेगी। अखिलेश यादव ने आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर कहा कि समाजवादी पार्टी अपनी गठबंधन पार्टी के साथ सभी लोकसभा सीटों से चुनाव लडेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा की जिस पार्टी के साथ हमारा अभी गठबंधन है, उनके साथ ही समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ने जा रही है। फिलहाल सपा राष्ट्रीय लोकदल के साथ है।

वहीं करीब 10 साल बाद कोलकाता में फिर सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक 18 मार्च से होगी। जिस बंगाल में सपा की कोई जमीन नहीं है वहां भविष्य की रणनीति तय करने की कवायद मुलायम की रवायत और ममता बनर्जी से दोस्ती और गाढ़ा करने की कोशिश मानी जा रही है। मुलायम ने कोलकाता में पांच बार पार्टी की कार्यसमिति बुलाई थी। वहीं साल 2022 में ममता सपा के प्रचार के लिए यूपी आई थीं। सपा की आगामी बैठक में भी ममता बनर्जी के आने की चर्चा है। पार्टी और अपने कद के राष्ट्रीय विस्तार की कवायद में अखिलेश इस दोस्ती को और मजबूत करने में लगे हैं।

वहीं बीते महीने कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने पार्टी प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल का जिक्र करते रायपुर में पार्टी के 85वें महाधिवेशन में कहा था कि रायपुर में पार्टी के 85वें पूर्ण अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा था, 2004 और 2009 में हमारी जीत के साथ-साथ डॉ. मनमोहन सिंह के सक्षम नेतृत्व ने मुझे व्यक्तिगत संतुष्टि दी, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मेरी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हुई। उनकी इस टिप्पणी को राजनीति से संन्यास लेने के रूप में समझा गया।

लेकिन इन सभी अटकलों के बीच कॉंग्रेस की तरफ से कहा गया कि सोनिया गाँधी सन्यास नहीं ले रही है। भले ही सोनिया गाँधी कॉंग्रेस पार्टी में मार्गदर्शक के तौर पर बनी रहे। लेकिन कयास यह भी लगाया जा रहा है कि वह अब रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ेगी। हो सकता है कि उनकी जगह पर बेटी प्रियंका गाँधी को रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिले। हालांकि सपा पार्टी ने पूर्व कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की सीट रायबरेली को लेकर कोई फैसला नहीं किया है। बता दें कि सपा ने साल 2004 में रायबरेली में सोनिया गाँधी के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन उन्हें कॉंग्रेस के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद सपा ने कभी भी रायबरेली सीट से अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।
वहीं अमेठी लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण को देखें तो दलित और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। अमेठी में करीब 17 लाख मतदाता हैं, जिनमें 34 फीसदी ओबीसी, 20 फीसदी मुसलमान, 26 फीसदी दलित और 8 फीसदी ब्राह्मण और 12 फीसदी में ठाकुर और अन्य वोटर्स हैं दलित मतदाताओं में सबसे बड़ी आबादी पासी समुदाय की है, जो करीब 4 लाख के करीब तो मुस्लिम भी साढ़े तीन लाख हैं। ओबीसी में यादव मतदाता ढाई लाख के करीब हैं तो डेढ़ लाख मौर्य समुदाय और एक लाख कुर्मी वोटर हैं। बीजेपी के साथ सवर्ण वोटर पूरी तरह से एकजुट है, तो वहीं ओबीसी-दलित-मुस्लिम वोटों पर अखिलेश यादव की नजर है।

यहाँ एक बात तो स्पष्ट है कि जहां एक तरफ अमेठी का चुनाव बीजेपी बनाम कॉंग्रेस था, तो वहीं अब अखिलेश के दिए गए बयान के बाद उम्मीद है कि अमेठी का चुनाव त्रिकोणिय होगा जिसमें बीजेपी, कॉंग्रेस के अलावा सपा भी चुनाव लड़ेगा। आजादी के बाद के विकास का हवाला देकर स्मृति ईरानी पिछले चुनाव में राहुल गांधी को मात देने में सफल रही थीं, लेकिन इस बार उनके पांच साल के कामकाज को भी कसौटी पर कसा जाएगा।

वहीं साल 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से अगला चुनाव लड़ेंगे कि नहीं यह भी तस्वीर साफ नहीं है और कांग्रेस से कोई दूसरा कैंडिडेट उतरेगा तो फिर वह कौन होगा। ऐसे में सपा अपने जातीय समीकरण के बहाने अमेठी में जीत का परचम फहराना चाहती है। एक तरफ विदेश दौरे पर गए राहुल गांधी 2024 में मोदी को हराने का ऐलान कर चुके हैं और यहां देश में अखिलेश उनको ही हराने का इंतजाम कर रहे हैं। ऐसे में विपक्ष की एकता का मोदी के खिलाफ कितना असर होगा यह तो भविष्य में ही पता चलेगा।

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