यह स्पष्ट करते हुए कि ऐसे मामले में अंतिम फैसला आमतौर पर लगभग 15 दिनों में आ सकता है, मामले के तथ्यों के साथ-साथ संविधान की दसवीं अनुसूची, राज्यपाल, नबाम रेबिया और कर्नाटक के. एस.आर.कानूनी विशेषज्ञों की राय है कि पीठ अपना फैसला सुनाने के लिए बोम्मई जैसे पिछले मामलों के फैसलों का अध्ययन करेगी| हालांकि जानकारों की माने तो राज्य की सरकार को लेकर कोर्ट द्वारा घड़ी की सुइयां वापस करने की कोई संभावना नहीं है|
इस बेंच में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ एम.आर.शाह, श्री. कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्याय पी.एस.नरसिम्हा शामिल हैं। शिवसेना की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, नीरज किशन कौल, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह ने बहस की| राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उद्धव ठाकरे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और ए. के. तिवारी जैसे वकीलों का एक मजबूत दल मैदान में उतरा।
क्या विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की सूचना भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधान के अनुसार है? क्या नबाम राबिया मामले में न्यायालय द्वारा विद्रोहियों की अयोग्यता का निर्णय कार्यवाही को जारी रखने पर रोक लगाता है? इस तरह के सवाल तर्क में उठाए गए हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि अंतर पक्षीय प्रश्नों की न्यायिक समीक्षा प्रस्तावित परिणामों का आधार होगी।
जानकारों के मुताबिक, कोर्ट निम्नलिखित मुद्दों पर भी विचार कर सकता है। सचेतक और विधायक दल के सदन के नेता को नियुक्त करने के लिए अध्यक्ष की शक्ति का विस्तार क्या है? दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के संबंध में क्या और कैसे बातचीत है? उनके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत याचिकाएं क्या उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय किसी सदस्य (यहां 16 बागी विधायक) को अध्यक्ष के निर्णय के अभाव में उसके कार्यों के आधार पर अयोग्य ठहरा सकता है?
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