बनारसी पान अपने लजीज स्वाद के लिए मशहूर है, जिसे खास सामग्री से अनोखे तरीके से बनाया जाता है। वैसे तो देश के हर इलाके में पान का बीड़ा बनाने का तरीका अलग अलग है। पान का बीड़ा बांधने की यही खासियत बनारसी पान को देश के अन्य इलाकों के पान से अलग करता है। तभी तो बनारसी पान का जिक्र कई फिल्मों में भी हुआ है। वहीं वाराणसी के मशहूर बनारसी पान को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग मिला है। बनारसी पान के साथ, वाराणसी के तीन अन्य उत्पादों बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भांटा (बैंगन) और आदमचीनी चावल को भी जीआई टैग मिला है। इसके साथ ही बनारस का लंगड़ा आम अब ब्रिटेन, कनाडा, UAE, अमेरिका और जापान जैसे देशों में भी जाएगा।
जीआई का मतलब भौगोलिक संकेत। जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है, वह उसकी विशेषता बताता है। आसान शब्दों में कहें तो जीआई टैग बताता है कि किसी उत्पाद विशेष कहां पैदा होती है या कहां बनाया जाता है। अब तक उत्तर प्रदेश के कुल 45 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। इसमें अकेले 22 प्रोडक्ट्स बनारस के ही है।
जीआई विशेषज्ञ रजनीकांत ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के जीआई उत्पादों को बनाने में कारीगरों सहित कुल 20 लाख लोग शामिल हैं, जिनमें वाराणसी के लोग भी शामिल हैं। इन उत्पादों का सालाना कारोबार 25,500 करोड़ रुपये आंका गया है। उन्होंने यह उम्मीद जताई है कि अगले महीने के अंत तक बाकी नौ उत्पादों को भी देश की बौद्धिक संपदा में शामिल कर लिया जाएगा। इनमें बनारस का लाल पेड़ा, चिरईगांव गूसबेरी, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडाई और बनारस लाल भरवा मिर्च आदि शामिल है।
बता दें कि भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को मिला है। उसे साल 2004 में यह टैग मिला था। उसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।
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