कहा जाता है कि बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है। शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के नेता संजय राउत की हालत बंद घड़ी से भी ज्यादा खराब है। किए गए दावों में से कोई भी सच नहीं हुआ। फिर भी उनका हर दिन नए-नए दावे करना बंद नहीं हो रहा है। राउत ने ताजा बयान दिया है कि ‘बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का दिल अपमान से जल रहा है।’ यह बेहतर होगा कि वे अभी फडणवीस को अलग रखें और राजन साल्वी के बारे में सोचें। राजन साल्वी ने बारसू में रिफाइनरी का समर्थन किया है।
क्या है रत्नागिरी रिफाइनरी प्रोजेक्ट? – ‘रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड’ एशिया के सबसे बड़े रिफाइनरी प्रोजेक्ट में से एक है। देश की तीन प्रमुख तेल कंपनियां – इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम इस रिफाइनरी का हिस्सा होंगे। इस प्रोजेक्ट का ऐलान 2015 में ही किया गया था। तब इसके लिए सबसे पहले रत्नागिरी के नानार गांव को चुना गया था। तब शिवसेना इस प्रोजेक्ट के खिलाफ थी, पार्टी ने स्थानीय लोगों के विरोध का हवाला दिया था। इसके बाद इस प्रोजेक्ट के लिए बारसू-सोलगांव का इलाका फाइनल किया गया।
राऊत के अंदर समझने की क्षमता नहीं है। उद्धव ठाकरे में भी नहीं। अगर होता तो पार्टी के 40 विधायक ऐसे ही नहीं चले जाते। इनमें क्षमता की कमी है। राउत बातूनी हैं, ठाकरे केजरीवाल बन गए हैं। कहा जाता है कि अरविंद केजरीवाल गिरगिट से ज्यादा रंग बदलने में माहिर हैं। लेकिन शिवसेना उद्धव बालासहेब ठाकरे पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दिखा दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं।
उद्धव ठाकरे ने रिफाइनरी मामले में रंग बदलने की अपनी क्षमता साबित की है। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के विकास विरोधी चेहरा हैं। शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के नेता रिफाइनरी के मुद्दे पर शिंदे-फडणवीस सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के अनिल परब, विनायक राउत, भास्कर जाधव शामिल हैं। ये नेता मातोश्री के करीबी हैं। इसलिए साफ है कि यह उद्धव ठाकरे के आदेश के बिना नहीं हुआ है। विधानसभा क्षेत्र के विधायक साल्वी ने ट्वीट कर धमाका किया है। धमाका क्योंकि उन्होंने ठाकरे समूह के अन्य नेताओं से बिल्कुल अलग रुख अपनाया है। उन्होंने बेरोजगारी के मुद्दे पर परियोजना का समर्थन किया है। साल्वी के इस तरह से रिफाइनरी को लेकर समर्थन की अपील ने पार्टी में मतभेदों के बारे में अटकलें बढ़ रही हैं। वहीं, अपने ही गुट के राजन सालवी के विरोध के कारण अब उद्धव गुट में नई रार मचने के आसार दिख रहे हैं।
हरे, प्रकृति से भरपूर कोंकण में सामाजिक स्थिति क्या है?सैकड़ों घर बंद हैं। यहाँ के बच्चे रोजगार के लिए बाहर निकल गए हैं। कोई मुंबई-पुणे में तो कोई कोल्हापुर में। घर के सामने खलिहान खाली पड़े हैं। खेती के एक छोटे से टुकड़े को भी श्रम से जोतना पड़ता है। कुछ लोगों का दावा है कि ‘कोंकण स्वर्ग है इसलिए यहां रिफाइनरियों (तेल शुद्धिकरण प्रक्रिया) जैसे उद्योगों की कोई जरूरत नहीं है’। फिर उन्हें इस सवाल का भी जवाब देना चाहिए कि 10-15 हजार की सैलरी वाली नौकरी करने के लिए युवा इतनी बड़ी तादाद में इस जन्नत को छोड़कर बाहर कमाने के लिए क्यों जाते हैं। कोंकण में बाकी उद्योग और यहां का दूध भी कोल्हापुर से आता है। कोंकण में लुभावनी सुंदरता, किले, नदियाँ, पहाड़ियाँ, सुंदर समुद्र तट, खाड़ियाँ हैं। लेकिन पैसे नहीं। चंद पैसों के लिए यहां के युवा सैकड़ों मील का सफर तय कर लेते हैं।
घर से प्यार करने वाले नेता उद्धव ठाकरे, बाहर कम ही निकलते हैं, इसलिए उनके पास कोंकण की स्थिति के बारे में कुछ भी नहीं पता है। लेकिन कोंकण से राजन साल्वी जनप्रतिनिधि हैं। उनके निर्वाचन क्षेत्र में कई घर ऐसे हैं जहां काम के लिए युवा बाहर चले गए और अपना घर छोड़ चुके हैं।
हालांकि रिफाइनरियों में इस तस्वीर को बदलने की ताकत है। नानार में रिफाइनरी परियोजना बड़ी थी। यह तीन लाख करोड़ रुपये के निवेश वाला प्रोजेक्ट था। तुलनात्मक रूप से बारसू गाँव परियोजना छोटे आकार की है, जिसमें लगभग एक लाख करोड़ का निवेश है। लेकिन इस परियोजना में निश्चित रूप से कोंकण को समृद्ध करने की क्षमता है। बड़ी संख्या में रोजगार का निर्माण होगा। इससे बढ़नेवाली बेरोजगारी की संख्या में भी कमी आएगी।
ठाकरे ने स्थानीय निवासियों को ढाल बनाकर इस परियोजना का विरोध करना शुरू कर दिया है। क्योंकि उन्हें महाराष्ट्र के हितों से कोई लेना देना नहीं है। उनकी मानसिकता ‘मैं और मेरे परिवार’ के आगे का नहीं है। लेकिन राजन साल्वी की आवाज भूमिपुत्र की आवाज है। यह एक विधायक की आवाज है जो जानता है कि कोंकण में बेरोजगारी की समस्या कितनी गंभीर हो गई है।
हालांकि ठाकरे को विरोधी स्वर सुनने की आदत नहीं है। इसलिए या तो राजन साल्वी को चुप करा दिया जाएगा या फिर उनकी बातों को सिरे से नकार दिया जाएगा। इस बात की भी संभावना है कि वे अपनी व्यक्त की गई राय को बदलने के लिए साल्वी को मनाने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि राउत जैसे नेता उन पर कीचड़ भी उछालेंगे।
ठाकरे का रिफाइनरी का विरोध पूर्णरूप से राजनीतिक है। इस मौके पर वे बीजेपी और एकनाथ शिंदे के साथ हिसाब चुकता करने की कोशिश कर रहे है। ठाकरे ही थे जिन्होंने किसी समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बारसू गाँव की जगह का सुझाव दिया था। लेकिन जब बात पलटी की आती है तो देश का कोई भी राजनेता ठाकरे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता।
वहीं रिफाइनरी निर्माण को लेकर कोंकण के लोगों की मानसिकता का पता चलेगा। यानी जो लोग आम-काजू की चिंताओं की वजह से रिफाइनरी का विरोध कर रहे हैं, उन्हें गुजरात की रिलायंस रिफाइनरी के बारे में जानना चाहिए। इस रिफाइनरी के परिसर में हजारों आम के पेड़ हैं। यहां आम का रिकॉर्ड उत्पादन होता है।
दुनिया में ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जो तथाकथित पर्यावरणविदों के उस प्रचार को झुठलाते हैं कि प्रकृति नष्ट हो जाएगी। अमेरिका विश्व महाशक्ति है। इस देश में कुल 135 बड़ी रिफाइनरियां हैं और इनका विस्तार 30 राज्यों में फैला हुआ है। एक समय कोंकण कैलिफोर्निया बनाने का नारा बहुत लोकप्रिय था। वर्तमान में कैलिफोर्निया में 15 सक्रिय रिफाइनरियां हैं। प्रौद्योगिकी की कृपा से आज रिफाइनरियों के कारण होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करना संभव है। ठाकरे जैसे नेता कभी भी ऐसा सत्य नहीं बताएंगे। क्योंकि उन्हें हर जगह राजनीति ही करनी है। इसलिए कोंकण के लोगों को ऐसे नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है।
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