बॉलीवुड की कई ऐसी फ़िल्में हैं, जिसमें केवल किरदार बदले हैं, लेकिन कहानी की थीम एक ही रही है। जिसमें दो भाई होते है वे या तो कुंभ के मेले में गुम होते हैं या कोई बदमाश उठाकर ले जाता है। फिर बाद में एक ऐसी पहचान होती है जिससे वे अंत में मिलते हैं। यह फिल्म का सुखान्त होता है। दर्शक खुश होता है कि भगवान ने दोनों भाइयों को मिला दिया। ऐसी ही पटकथा आजकल राजनीति में भी देखने को मिल रही है। कांग्रेस ऐसी पटकथा पर खूब काम कर रही है। वैसे कांग्रेस खुद को ओल्ड इज गोल्ड कहती है। इसलिए उसे यह कॉपी पेस्ट का मौक़ा मिलना चाहिये
लेकिन कांग्रेस की पटकथा कमजोर और घिसीपिटी होती है। जिसका हश्र बहुत बुरा होता है। कांग्रेस की सबसे बड़ी नाकामी यह कि उसकी लिखी पटकथा का अंत होता ही नहीं है। सभी किरदार उलझते चले जाते हैं और अंत बहुत बुरा होता है। गौरतलब है कि ऐसी फ़िल्में 80 और नब्बे के दशक में खूब बनी और चलीं भी। चलने की वजह जो भी रही है, लेकिन इन फिल्मों में एक बात कॉमन रही है। इन फिल्मों में भक्ति भाव और भारत की संस्कृति को दिखाया गया।लेकिन कांग्रेस की पटकथा ये सब नहीं होता है।
बहरहाल, अब आते हैं असली मुद्दे पर, तो चार दिन से जारी उठापटक के बाद कर्नाटक को सीएम मिल ही गया है। कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम बनाने का ऐलान किया है तो डीके शिवकुमार उप मुख्यमंत्री होंगे। 20 तारीख को शपथ ग्रहण समारोह होगा। यह मोटा मोटा कांग्रेस की कारगुजारी है, जिसे जानने का सबको हक़ है। वैसे सभी जानते थे कि आखिर अंत में क्या होने वाला है। कांग्रेस ने चार दिन तक इस मुद्दे को उलझाकर इसलिए रखा कि वह जब जनता में जाए तो यह बताने के लिए हो कि आपके लिए बहुत पापड़ बेले और हम अब सबकुछ ठीक कर देंगे। इस दौरान जनता के हक की बातें की और जो वादे किये गए हैं उनको पूरा करने के लिए हम मंथन करते रहे। क्या कांग्रेस जनता को मुर्ख समझती है। जो ऐसी बातें जनता तक पहुंचाती है। तो दोस्तों कांग्रेस ने ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार ऐसा कर चुकी है।
तो पहले यह जान लेते हैं कि कांग्रेस के इस निर्णय से कर्नाटक का भविष्य क्या है ? कांग्रेस के इस निर्णय से सिर्फ जनता को छला गया है। हमेशा दोनों नेताओं में विवाद होते रहेंगे। सबसे बड़ी बात यह कि कांग्रेस ने अभी तक जनता को गुमराह और उसे केवल पतन के ही रास्ते पर ढकेलती आई है। जिसका नतीजा है कि भारत कांग्रेस के कार्यकाल में रसातल में मिल गया था।
बहरहाल, कांग्रेस की पुरानी पटकथा पर फिर लौटते हैं। तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि कर्नाटक में कांग्रेस ने सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। यह सभी का सवाल हो सकता है, तो मै अपनी पिछली वीडियो “गांधी परिवार पर DK को नहीं भरोसा? कांग्रेस यहां उलझी!” में इन बिंदुओं पर बात की है। आप हमारी वीडियो को हमारे यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं। जिसमें मैंने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाये जाने का कारण बताया है। जिसमें एक मुख्य वजह आगामी 2024 का लोकसभा चुनाव भी है।
कहा जा रहा है कि डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की कवायद केवल स्वयं के लिए है। लेकिन, कांग्रेस आलाकमान इससे 2024 के लोकसभा चुनाव के नजरिये से देख रहा है। यही वजह रही है कि चार दिन तक दिल्ली में जो कांग्रेस ने बंद कमरे में मंथन किया। वह दोनों नेताओं को यह समझाने के लिए था कि आगामी लोकसभा चुनाव में बहुत ही कम समय बचा है और बहुत ही मुश्किल से कर्नाटक में जीत हासिल हुई है। इसलिए लगे हाथ लोकसभा चुनाव को भी साध लिया जाए।
बताया रहा है कि कर्नाटक के 20 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। इसको देखते हुए कांग्रेस खुद के लिए एक मौक़ा मानकर चल रही है। लेकिन क्या कांग्रेस इस योजना में कामयाब होगी? यह बड़ा सवाल है क्योंकि अभी तक का कर्णाटक का जो ट्रेंड रहा है वह विधानसभा और लोकसभा चुनाव का अलग है। राजनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस संबंध में कांग्रेस को सलाह देते हुए कहा है कि 2012 में यूपी में हुए विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन दो साल बाद बीजेपी ने लोकसभा की 80 सीटों में से तिहत्तर सीटों पर कब्जा कर लिया था।
साथ ही उन्होंने कांग्रेस को 2013 में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव को भी याद दिलाया। जिसमें कांग्रेस बहुमत हासिल की थी, मगर अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी 28 लोकसभा सीटों में से 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी तरह 2018 में हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 25 में से 25 सींटें जीती थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों में से नौ पर बीजेपी जीती थी। इसी तरह मध्य प्रदेश में 29 लोकसभा सीटों में से 28 पर अपना परचम लहराया था जबकि कांग्रेस एक सीट पर जीत दर्ज की थी।
यह रही लोकसभा चुनाव की बात, जो कांग्रेस के पक्ष में जाते हुए दिखाई नहीं दे रहे है। लेकिन इसी लोकसभा चुनाव का डर दिखाकर राज्य का नेतृत्व में बदलाव करती रही है। जब 2018 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुआ था। उस समय कांग्रेस ने निन्यानबे सीटों पर जीत दर्ज की थी। राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सींटें है। जहां बहुमत के लिए 100 सीटों की जरुरत होती है। लेकिन उस समय एक माह तक राजस्थान का मुख्यमंत्री घोषित नहीं हो पाया था। जिस तरह 2024 लोकसभा चुनाव का डर दिखाकर सचिन पायलट को दरकिनार का अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था जिससे पायलट के समर्थक नाराज हो गए थे.
2018 में भी कांग्रेस ने सचिन पायलट को उनके काम का प्रतिफल नहीं दिया और उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया था जिससे सचिन पायलट खुश नहीं थे। उस समय भी कांग्रेस सचिन पायलट, अशोक गहलोत और राहुल गांधी की हंसती मुस्कुराती तस्वीर जारी की थी। जैसा गुरुवार को कांग्रेस ने डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया, केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला का नाश्ता करते हुए फोटो शेयर किया गया है। लेकिन सवाल यह कि क्या डीके शिवकुमार का सिद्धारमैया से दिल मिला ? राजस्थान में आज भी सचिन पायलट बगावती रुख अपनाए हुए हैं। खबरें यहां तक है कि शायद वे अपनी पार्टी बना सकते हैं।
इसी तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस ने नए नवेले ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया बल्कि अपने सबसे करीबी कमलनाथ को राज्य की कमान सौंपी थी। गांधी परिवार ने इस समय भी सिंधिया और कमलनाथ को साधने की कोशिश की थी। उस समय भी राहुल गांधी के साथ दोनों नेता मुस्कराते हुए फोटो खिंचवाए थे और शेयर किये थे। कुछ समय बाद सिंधिया ने बगावत कर दी थी और मध्य प्रदेश कांग्रेस की सरकार गिर गई। सिंधिया अब बीजेपी में केंद्रीय मंत्री हैं। अभी तक देखा गया है कि कांग्रेस मेहनत करने वाले नेताओं को मौक़ा नहीं देती है।
इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में भी ऐसे ही हालत हुए हैं। यहां भी मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे एक भूपेश बघेल और दूसरा टीएस सिंहदेव। लेकिन कांग्रेस ने यहां भी वही किया जो पायलट और सिंधिया के साथ किया। इन नेताओं का भी विवाद सुलझाने का दावा किया गया और वैसी ही राहुल गांधी के साथ भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की तस्वीर साझा की गई। लेकिन दोनों नेताओं में कभी आपसी सहमति नहीं बनी। आज भी सिंहदेव सीएम बघेल के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। तो क्या इतिहास एक बार फिर दोहराएगा? क्या यह मान लिया जाए की डीके और सिद्धारमैया में कोई मतभेद नहीं है। क्या एक बार फिर कांग्रेस पुरानी गलती कर कर है। यह तो आने वाला समय बताएगा।
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