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अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने बनाई अपनी राष्ट्रीय छवि

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2 जुलाई 2023 से पहले कहा जाता था कि एनसीपी नेता अजित पवार केवल के महाराष्ट्र के नेता है। वे राष्ट्रीय राजनीति के लिए नहीं बने है, लेकिन, क्या अब ऐसा कहा जा सकता है। शायद नहीं, क्योंकि, एक माह के अंदर अजित पवार में गजब का आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है। इसी तरह, 30 जून 2022 से पहले एकनाथ शिंदे को मात्र शिवसेना नेता के रूप में जाना जाता था। उनकी पहचान केवल महाराष्ट्र या शिवसेना के नेता के रूप में होती थी, लेकिन,आज ऐसा नहीं है, एकनाथ शिंदे की पहचान राष्ट्रीय नेता के रूप में बन गई है।

लगभग एक साल बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का तेवर देखते बनता है। आज जिस तेवर के साथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने विरोधियों को पछाड़ रहे हैं, और हमला बोलते है, वह देखने और सुनने लायक है। आज हर कोई उनकी प्रतिभा का कायल है। दो दिन पहले ही उद्धव गुट के खोके पर जो जवाब दिया। शायद उससे ठाकरे गुट उबर नहीं पायेगा। बहरहाल आज हमारा मुद्दा यह नहीं है कि, उप मुख्यमंत्री अजित पवार या मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने विरोधियों को कैसे धोया। बल्कि हमारा मुद्दा है यह कि इन नेताओं की आज आवाज महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इनकी आवाज पूरा देश सुन रहा है।

यह तब हुआ जब ये नेता बीजेपी के साथ जाकर राज्य और देश के लिए काम कर रहे हैं।  पहले हम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की बात करते हैं। बीते साल जून माह में शिवसेना के साथ बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के उन नेताओं में शामिल हो गए, जो देश और समाज को प्राथमिकता देते हैं। 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले एकनाथ शिंदे आज देश के उन मुख्यमंत्रियों में शामिल हो गए हैं, जो अपनी बातों को हिंदी में कहते हैं, जिसकी वजह से उनकी बातों को कोट किया जाता है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि एकनाथ शिंदे को हिंदी भाषा में बोलने से उन्हें कोट किया जा रहा है।

हमारा कहना है कि अपनी बातों को मुख्यमंत्री शिंदे सही तरीके से उचित मंच पर पहुंचाने में कामयाब हुए है। उन्होंने मराठी मानुष की पहचान से बाहर निकलकर, राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में अपनी अलग पहचान बनाए है। अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के ही नेता नहीं है, बल्कि वे राष्ट्रीय स्तर के नेता बन चुके हैं। बीजेपी के साथ आने के बाद एकनाथ शिंदे को कई मंचों पर बोलने का मौक़ा मिला है। जिससे उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ है। जिसका उपयोग वे राज्य के विकास और  देश के प्रगति में कर रहे हैं।

उसी तरह से, एनसीपी नेता अजित पवार भी है। राजनीति जानकार कहते थे कि अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति में ज्यादा रुचि लेते हैं। उनकी तुलना शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले से की जाती थी, कहा जाता था कि सुप्रिया सुले ने दिल्ली की राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहती है।  होना भी चाहिए ,क्योंकि वे शुरुआत से ही राष्ट्रीय राजनीति करने का मौक़ा मिला। सुप्रिया सुले को पहली बार 2006 में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था। वे तीन साल तक राज्यसभा की सदस्य रही है। उसके बाद उन्होंने 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ा,तब से 2014, 2019 में भी बारामती से लोकसभा सदस्य हैं।

वहीं, अजित पवार की राजनीति शुरुआत जमीनी स्तर से ही हुई है। वे सरकारी चीनी बोर्ड के मेंबर रह चुके हैं। इसके अलावा पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष भी रहे हैं। वे बारामती से सांसद भी चुने गए थे। बाद में उन्होंने बारामती की लोकसभा सीट शरद पवार के लिए छोड़ दी थी। इसके बाद कहा जाने लगा था कि अजित पवार को दिल्ली की राजनीति रास नहीं आई।  इसलिए उन्होंने राज्य की राजनीति में रम गए, लेकिन जिस तरह से अजित पवार ने अपने समर्थकों के साथ पहली बैठक की और जो भाषण दिया। उसकी सभी ने तारीफ़ की। वर्तमान में  अजित पवार बीजेपी के बड़े नेताओ के साथ मंच शेयर कर अपना कद बड़ा रहे हैं। हाल ही पुणे में उन्होंने पीएम मोदी के साथ मंच शेयर किया था। कहा जा सकता है अजित पवार राज्य  और राष्ट्रीय राजनीति में एक नया मुकाम बना सकते हैं। भी वे अपनी बातें हिंदी में कहने लगे हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण है बीजेपी के साथ आने वाले नेताओं को बड़े मंचों पर मौक़ा दिया  जाता है। इन नेताओं को दिल्ली में बुलाया जाता है। इससे इन नेताओं के आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। महाराष्ट्र के ही नहीं, कई और राज्यों के नेताओं को भी बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर उभरने का मौक़ा दिया। कांग्रेस के ऐसे कई नेता है जो बीजेपी में शामिल हुए और उनकी आज पहचान राष्ट्रीय स्तर पर है। जिसमें सबसे बड़ा नाम असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा का है। इसके अलावा भी पूर्वोत्तर के कई नेता भी शामिल है। कहा जा सकता है कि इन नेताओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा मिला। हाल ही में पीएम मोदी ने एनडीए के सांसदों की बैठक ली थी और उन्हें जीत के गुर दिए थे। यह  लाभ उन नेताओ को जो बीजेपी के साथ आये हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी नेताओं में अनुशासन है। जिसका असर सब जगह देखने को मिलता है।

 

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