सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इंकार कर दिया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि उन्हें शादी करने का मौलिक अधिकार है और उन्हें अपना साथी चुनने का भी अधिकार है। लेकिन उनके संबंधों को कानूनी मान्यता देने का आदेश सरकार को नहीं दिया जा सकता है। इतना ही नहीं पांच जजों की बेंच ने इस मामले बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें बच्चा लेने का भी अधिकार नहीं दिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मामले का फैसला पढ़ते हुए कहा कि वह विशेष मैरिज एक्ट की धारा 4 की नए तरह से परिभाषित कर समलैंगिक शादी को मान्यता देने के पख में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा करना कोर्ट के लिए सही नहीं होगा। अगर इसमें कोई बदलाव ही करना है तो वह काम संसद का है। इस पर वही निर्णय ले सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि आपस में संबंध बनाना या समलैंगिक जोड़ों का साथ रहना उनका अधिकार है। उनको भी सम्मानपूर्व जीवन जीने का अधिकार है। इसलिए सरकार को उन्हें कानूनी अधिकार देने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कोर्ट ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए कहा जा सकता है। कोर्ट ने यह माना है कि यह अधिकार क्षेत्र सरकार और संसद का है। बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस हिमा कोहली, एस रविंद्र भट और पी एस नरसिम्हा की पीठ ने 11 मई को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं ने स्पेशल मैरिज एक्ट की नए तरीके से व्याख्या कर अंतर्जातीय और अंतरधार्मिककी ही तरह समलैंगिंक शादी को मान्यता देने की मांग की गई थी।
ये भी पढ़ें
‘गडकरी का व्यक्तित्व राज कपूर जैसा, एक छोटा सा सपना…’, क्या बोले फडणवीस?
इजराइल-हमास युद्ध: ये ‘सैपर्स इंजीनियर्स’ इजरायल के लिए युद्ध का रुख मोड़ देंगे, जानिए कौन हैं ये?
दिल्ली शराब घोटाला: अगर AAP को बनाया आरोपी तो पार्टी का क्या होगा?