पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा किये जाने के बाद से “इंडिया” गठबंधन अचानक सा अदृश्य हो गया। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर “इंडिया” गठबंधन में चल क्या रहा है ? क्या 28 दलों के गठबंधन में दरार आ गई है या गठबंधन की चाल धीमी हो गई है। यह बात सभी लोगों के जेहन में उठ रही है। लेकिन, इस संबंध में गठबंधन से जुड़ा कोई नेता नहीं बोल रहा है। तो दोस्तों आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर इंडिया गठबंधन में क्या चल रहा है। गठबंधन में इतनी ख़ामोशी क्यों है ?
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में इसी माह विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है। इन पांचों राज्यों का परिणाम 3 दिसंबर को एक साथ आएगा। पांचों राज्यों का चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। लेकिन, “इंडिया” गठबंधन पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद से गायब हो गया। गठबंधन की जितनी सक्रियता पहले देखी जा रही थी अब वह सक्रियता नहीं है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर इसकी वजह क्या है ?क्या गठबंधन में दरार आ गई है? क्या “इंडिया” गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बिखर जाएगा? ऐसे सवाल सभी के दिमाग में उठ रहे है।
हालांकि, सवालों का जवाब भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, गठबंधन के नेताओं की निष्क्रियता इस ओर इशारा कर रहे हैं कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। वैसे 28 दल अलग अलग विचारों के हैं, तो उनके अपने स्वार्थ भी है और राजनीति मजबूरियां भी हैं, जिसे सुलझाना और खत्म करना गठबंधन के लिए ढेरी खीर है। वैसे, गठबंधन के वजूद को नकारना बेवकूफ़ी होगी।
माना जा रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से एक बार फिर “इंडिया” गठबंधन सक्रिय हो जाएगा। भले यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा न करे, लेकिन यह गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव तक सक्रिय रहेगा। बाद में चाहे यूपीए की तरह अदृश्य हो जाए या फिर नाम बदलकर सामने आये। बहरहाल, इस गठबंधन में शामिल होने वाली पार्टियों में कांग्रेस ही एक मात्र राजनीति दल है जो वर्तमान पूरी तरह सक्रिय है। जबकि, बाकी दल न के बराबर दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण साफ़ है। अगर कांग्रेस सक्रिय है तो पांच राज्यों में चुनाव के कारण।
दरअसल, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हिंदी भाषी राज्य हैं और मध्य प्रदेश को छोड़ दें तो कांग्रेस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार है। जिसे बचाने की कांग्रेस भरपूर कोशिश में लगी हुई है। इसके अलावा भी तीन अन्य राज्यों पर भी कांग्रेस विशेष ध्यान दे रही है। यही वजह है कि कांग्रेस के बड़े नेता पांचों राज्यों में चुनाव प्रचार में जोर शोर से जुटे हैं। लेकिन, अन्य गठबंधन के दल सक्रिय नहीं है। क्योंकि इन दलों का इन राज्यों में कोई आधार नहीं है।
इन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस ही चुनाव में जुटी हुई है। अन्य दल केवल अपने अपने राज्यों में ही प्रभाव रखते है। इसमें गठबंधन आम आदमी पार्टी भी शामिल है। लेकिन संजय सिंह की शराब नीति घोटाले में गिरफ्तारी के बाद से वह ठंडी पड़ती दिख रही है। इससे पहले आप पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कई रैली कर चुकी है। कहा जा सकता है कि इन राज्यों में आप पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में जुटी हुई थी, लेकिन अब उसके तेवर ढीले पड़ते नजर आ रहे हैं।
अगर गठबंधन के दलों की बात करें तो कम से कम नौ दल ऐसे हैं जो केवल अपने राज्यों में मजबूत हैं। कहा जा सकता है कि इनकी सबसे बड़ी मजबूरी भी है। जैसे टीएमसी बंगाल से बाहर सीट नहीं जीत सकती है। उसी तरह बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी का जनाधार केवल राज्य में ही है। समाजवादी पार्टी का भी यही हाल है। यूपी से बाहर सपा को कोई भी पूछने वाला नहीं है। उद्धव ठाकरे गुट का भी महाराष्ट्र के अलावा और राज्यों में कोई जनाधार नहीं है। एनसीपी भी इन्ही पार्टियों के नक़्शे कदम पर है। आप पंजाब और दिल्ली में ही दावा थोक सकती है। लेकिन अन्य राज्यों में वह उतना सक्रिय नहीं है। जितना होना चाहिए।
अब बात मुख्य मुद्दे पर करते हैं, कहा जा रहा है कि कांग्रेस पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पूरी ताकत झोंक देना चाहती है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस पांचों राज्यों में करो और या मरो वाली नीति पर चल रही है। दरअसल, वर्तमान में इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का मुद्दा सबसे बड़ा है। इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल अपना नफा नुकसान को देखकर ही सीट बंटवारे पर हामी भरना चाहते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने फिलहाल गठबंधन से कोसो दूरी बना ली है। कहने का मतलब यह कि कांग्रेस पांच राज्यों के परिणाम के बाद ही सीट बंटवारे पर बात करना चाहती है। कांग्रेस का मानना है कि अगर वह इन राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतती है तो गठबंधन में सीट बंटवारे के दौरान ज्यादा सीटों की डिमांड कर सकती है।
सबसे बड़ी बात यह कि सपा भी मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ना चाहती थी ,लेकिन कांग्रेस के साथ सपा का गठजोड़ नहीं हो पाया है। अब तक कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 144 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें है, अभी छियासी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा बाकी है। सपा कोंग्रस में बात नहीं बनने की वजह से सपा ने मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यूपी में भी कांग्रेस और सपा में तकरार बढ़ती नजर आ रही है। यही हाल आप पार्टी का भी है। आप मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने डीएम पर चुनाव लड़ रही है। इसी तरह से वेस्ट बंगाल में अभी सीट पर पर पेंच फंसा हुआ है।
गठबंधन में सीट बंटवारा बड़ा मुद्दा है, जिसकी वजह से गठबंधन में दरार बन रही है। जानकारों का कहना है कि गठबंधन को नकारा नहीं जा सकता है पर निजी स्वार्थ की वजह से राजनीति दलों में एकता नहीं बन रही है। हालांकि, गठबंधन में कांग्रेस ही एक मात्र पार्टी है जो सभी राज्यों में सक्रिय है या निर्जीव अवस्था में है। यही वजह है कि सभी दल दुविधा में है कि उनका भविष्य क्या होगा ? अगर आज वे कांग्रेस का समर्थन करते हैं तो आगे जाकर उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वैसे गठबंधन की धीमी चाल की वजह कांग्रेस है और गठबंधन में दरार भी कांग्रेस की वजह से ही आ रही है।