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Sunday, November 24, 2024
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बांग्लादेश: प्रधानमंत्री मोदी का भेंट दिया मुकुट चोरी, भारतीय उच्चायोग ने जताई नाराजी !

यह सोने और चांदी का मुकुट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2021 में अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान जेशोरेश्वरी देवी को अर्पित किया था।

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खबर सामने आई हैं कि बांग्लादेश के सतखिरा में जेशोरेश्वरी मंदिर से देवी काली का मुकुट चोरी हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह ताज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेश किया था। घटना गुरुवार दोपहर की है जब पुजारी पूजा कर बाहर गये थे। चोरों ने पुजारी के मंदिर से बाहर जाने और सफाई कर्मचारियों के अंदर आने का समय ले लिया। नवरात्र के दौरान यह घटना होने से हड़कंप मच गया है।

सुबह की पूजा के बाद दोपहर में मंदिर के पुजारी के जाने के कुछ देर बाद ही चांदी और सोने से जड़ा हुआ मुकुट चोरी हो गया। सफाई कर्मचारियों को बाद में पता चला कि मूर्ति के सिर पर लगा मुकुट गायब था। यह सोने और चांदी का मुकुट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2021 में अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान जेशोरेश्वरी देवी को अर्पित किया था।

पुजारी दिलीप मुखर्जी ने बताया कि पूरे दिन पूजा करने के बाद वे लोग दोपहर करीब दो बजे मंदिर से निकले। कुछ देर बाद सफाई कर्मचारी सफाई करने आए। जब उन्होंने देवी की ओर देखा तो देखा कि उनके सिर का मुकुट गायब हो चूका था। मुकुट चांदी का बना था और उस पर सोना चढ़ाया गया था। इंस्पेक्टर तैजुल इस्लाम ने इस घटना की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि मंदिर में सीसीटीवी कैमरे हैं और आरोपियों का पता लगाने के लिए सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है।

दौरान बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट कर इस मामलें में नाराजगी जताई है, उच्चायोग ने लिखा,” 2021 में अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान जेशोरेश्वरी काली मंदिर (सतखिरा) को पीएम मोदी द्वारा उपहार में दिए गए मुकुट की चोरी की रिपोर्ट हमनें देखी है। हम गहरी चिंता व्यक्त करते हैं और बांग्लादेश सरकार से चोरी की जांच करने, मुकुट बरामद करने और दोषियों पर कारवाई करने का आग्रह करते हैं।”

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जेशोरेश्वरी मंदिर हिंदू धर्म के शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के अंत में अनाड़ी नामक एक ब्राह्मण ने करवाया था। उन्होंने जशोरेश्वरी पीठ के लिए 100 दरवाजों वाला एक मंदिर बनवाया। बाद में 13वीं शताब्दी में लक्ष्मण सेन ने इसका जीर्णोद्धार कराया और अंततः 16वीं शताब्दी में राजा प्रतापदित्य ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के हाथ और तलवे गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि यहां जशोरेश्वरी की गंध है और भगवान शंकर चंद्रमा के रूप में वहां प्रकट होते हैं।

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