भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घर वापसी कार्यक्रम की सराहना की| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि अगर संघ ने परिवर्तन का काम नहीं किया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग देशद्रोही हो गया होता| वह देवी अहिल्या पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे। यह पुरस्कार श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव और वीएचपीटीई नेता चंपत राय को प्रदान किया गया।
भागवत ने अपने भाषण में कहा, ”डॉ. प्रणव कुमार मुखर्जी राष्ट्रपति थे| वह पहली बार था जब मैं उनसे मिलने गया था| घर वापसी को लेकर संसद में जमकर हंगामा हुआ, लेकिन उन्होंने कहा कि आप कुछ लोगों को वापस लाए और फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस की| आप उसे कैसे करते हैं? ऐसा करने से वाद-विवाद होता है।
उन्होंने कहा यही तो राजनीति है| आज अगर मैं कांग्रेस पार्टी में होता, राष्ट्रपति नहीं होते तो संसद में भी यही करता, लेकिन आप लोगों ने जो किया है,(यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया होता) तो भारत के 30 प्रतिशत आदिवासी देशद्रोही हो गए होते।
“यदि आप ईमानदारी से धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं तो कोई समस्या नहीं है। हर धर्म एक समान है| प्रत्येक धर्म एक ही स्थान की ओर ले जाता है। हर किसी को अपना धर्म चुनने का अधिकार है, लेकिन अगर यह बलपूर्वक किया जाता है, तो इसका मतलब आध्यात्मिक प्रगति नहीं है”, मोहन भागवत ने दावा किया कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने यह भी कहा था।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी से जब इंडियन एक्सप्रेस ने संपर्क किया तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। आदिवासियों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण संघ परिवार के प्रमुख मुद्दों में से एक है। इसके खिलाफ वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन दशकों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं| संघ से जुड़े कई संगठन पिछले कुछ वर्षों से आदिवासी बहुल इलाकों में धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए अभियान चला रहे हैं|
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