महाकुंभ के प्रति यह अटूट आस्था हमारी आध्यात्मिक दृष्टि का प्रतीक है, जिसे पीढ़ियों से भक्तों ने संजोया है। सोमवार को श्री पंचायती बड़ा अखाड़ा उदासीन की धर्म ध्वजा संन्यास की अर्वाचीन परंपरा की साक्षी बनी। पहली बार इस अखाड़े में भस्म शृंगार के बाद गाजा-बाजा और शंख ध्वनि के बीच सौ से अधिक युवाओं का पंच संस्कार किया गया। पंचदेवों की मौजूदगी में इन युवाओं को पंच पुत्र बनाया गया।
आध्यात्मिक दृष्टि से, त्रिवेणी संगम पर स्नान करना पुण्य अर्जित करने और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने का साधन माना जाता है। उन्होंने 36 साल पहले की घटना का जिक्र किया जब वृद्ध शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती उम्र के कारण महाकुंभ में शामिल नहीं हो सके थे। उस समय त्रिवेणी से गंगा जल को एक विशेष विमान से कांची लाया गया था ताकि वे प्रतीकात्मक रूप से स्नान कर सकें। उन्होंने कहा कि गंगा और महाकुंभ के प्रति यह अटूट आस्था हमारी आध्यात्मिक दृष्टि का प्रतीक है, जिसे पीढ़ियों से भक्तों ने संजोया है।
उन्होंने हर 12 साल में आयोजित होने वाले इस आध्यात्मिक आयोजन पर त्रिवेणी संगम पर बड़ी संख्या में लोगों के आने पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि गंगा का महत्व वेदों, पुराणों और हजारों वर्षों की सनातन परंपरा में गहराई से निहित है। अब यह युवा संन्यासी कठिन अनुशासन का पालन करते हुए देश भर में अलग-अलग मठों में कोतवाल, कोठारी, भंडारी, कारोबारी के अलावा महंत, मुखिया जैसे पदों को संभालेंगे। पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण की छावनी में ईष्टदेव भगवान चंद्रदेव की मौजूदगी में सुबह ही पंच पुत्र संस्कार आरंभ हो गया।
पश्चिम पद्धति के बाड़े में युवा टोली के पटेल ज्ञान मुनि ने धूने पर सभी युवा संन्यासियों को भस्म शृंगार कराया। इसके बाद नरसिंहा वाद्ययंत्र के साथ शंख ध्वनि गूंजने लगी। आकाश मुनि, प्रद्वैतानंद मुनि मंत्रोच्चार करने लगे। इस रस्म में गुरुमाताएं भी शामिल हुईं।
छत्तीसगढ़ से आईं गीता मुनि और डॉ. विभा मुनि ने भी पंचदेवों की उपासना प्रदान की और मंत्रोच्चार किया। पंचदेवों में विष्णु, शिव, माता भगवती, गणेश और सूर्य की उपासना की गई। अखाड़े के ईष्टदेव शिव स्वरूप श्रीचंद्र जी के भक्ति, ज्ञान, वैराग्य के सिद्धांत पर चलने का संकल्प दिलाया गया। इस कठिन साधना के लिए युवाओं के चयन की प्रक्रिया क्या होती है? इस सवाल पर मुखिया महंत दुर्गा दास कहते हैं कि गुरु जिसे स्वीकार कर ले, वही शिष्य बनता है। उदासीन संप्रदाय में तंग तोड़ के बाद पंच पुत्र बनाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।
दीक्षा लेने के बाद यह शिष्य अपने गुरु की सेवा में लग जाते हैं। पांच साल से लेकर 10 साल, 12 साल या 24 साल में जब भी गुरु को अपने शिष्य में जब संत बनने के संपूर्ण लक्षण दिखने लगते हैं, तब उन्हें दीक्षा देकर अपने साथ अखाड़े में जोड़ लिया जाता है। महाकुंभ में ही निर्वाण संत के रूप में पंच पुत्र बनाने की परंपरा है। इसमें 24 साल से कम उम्र के बाल और युवा शामिल होते हैं।
बता दें कि महाकुंभ की छावनी में पंच परमेश्वर के द्वारा पंच पुत्रों को सनातन धर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण की शपथ कराई गई। यह पंच पुत्र रात को संगम किनारे आकाश के नीचे निर्वस्त्र रहेंगे। महाकुंभ में अखंड भस्मी लगाकर तपस्या करेंगे। महाकुंभ के बाद भी वह तपस्या करते रहेंगे।
कांची के शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने भक्तों से अपील की है कि वे महाकुंभ में अधिक से अधिक संख्या में आकर आयोजन का हिस्सा बनें और मां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाएं। लेकिन, उसकी पवित्रता और शुद्धता से समझौता न करें। ऋषि-मुनियों और साधुओं के साथ-साथ भगवान आदि शंकराचार्य ने भी गंगा में स्नान किया और इसके किनारे ध्यान लगाया। शंकराचार्य ने कहा कि गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि भारत की पवित्र भूमि पर एक तीर्थ स्थल है।
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