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Saturday, February 8, 2025
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रागा का वही ‘बोरिंग’ राग!

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लगता है, महाराष्ट्र के लोगों ने राहुल गांधी के पीठ पर जो डंडे मारे वो अब जाकर दर्द देने लगें है। चलो नेता प्रतिपक्ष को कम से कम ये तो याद आया की उन्हें महाराष्ट्र में करारी हार मिली है। अब जाकर उन्होंने अपने बिछड़े भाइयों को एकत्रित कर एक प्रेस कॉन्फरेंस से यह दिखाने की कोशिश की ‘के हम साथ साथ है।’ यह बात अलग है की उन्होंने इस बार भी वही राग अलापा है, जिसका हम सब को पहले से अंदाजा था।

राहुल गांधी ने आज अपने ही समान आईक्यू वाले के दोस्तों को इकठ्ठा कर एक प्रेस कॉन्फरेंस की। उबाठा के नेता संजय राउत और शरद पवार गुट की सुप्रिया सुले के साथ की इस प्रेस कॉन्फरेंस में राहुल गांधी ने दावा किया की महाराष्ट्र में जितनी जनसंख्या है, उससे अधिक लोगों ने मतदाता के तौर पर पंजीकरण किया है। साथ ही राहुल गांधी ने ये दावा भी किया की 2019 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच 32 लाख लोगों ने बतौर मतदाता पंजीकरण कराया, लेकीन 2024 के लोकसभा चुनाव और 2024 के विधानसभा चुनाव के महज पांच महीनों के भीतर 39 लाख लोगों ने मतदाता पंजीकरण करवाया। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में पांच महीनों के भीतर मतदाता संख्या में इतनी लक्षणीय वृद्धी अतिसंदेहजनक है। और साथ ही में राहुल गांधी ने कहा है की चुनाव आयोग उनके सवालों के जवाब नहीं दे रही है। 

हमारा कहना है कि आखिर चुनाव आयोग इनके बेतुके दावों का जवाब क्यों दे जिसका न कोई सिर है, न कोई पैर!

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा दिए गए आंकड़े भरोसे के लायक ही नहीं है। आज भी चुनाव आयोग अपने आकंड़ो पर अड़िग है। चुनाव आयोग ने जों आंकडे दिए है उससे पता चलता है कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच 40.81 लाख मतदाता जुड़े, जबकि 2019 से 2024 के बीच 1.22 करोड़ मतदाता जुड़े थे। राहुल गांधी का बेतुका दावा, की 2019 से 24 के बीच केवल 32 लाख जुड़े है। यह दावा भी इसीलिए किया जा रहा है की लोगों के मन में संदेह पैदा हो।

लोग सोचें की पांच महीनों के भीतर इतनी संख्या कैसे बढ़ी, असलियत में पिछले पांच साल में सव्वा करोड़ मतदाता बढे थे और 2024 में लोकसभा से विधानसभा के बीच 40.81 लाख मतदाता बढे, जिनमें 18 से 19 वर्ष के 8 लाख लोग है और इन्हीं में 20-29 वर्ष आयु वर्ग के 17,74,514। यह जो सारे आंकड़ें हम आपको दे रहें है वो इंडियन एक्सप्रेस ने चुनाव आयोग से प्राप्त किए है। कमाल है इंडियन एक्सप्रेस का चुनाव आयोग संग जुगाड़ दीखता है, राहुल गाँधी को आयोग आंकड़े नहीं बता रहा लेकीन एक न्यूज़ एजेंसी को आंकड़ें बांटे जा रहे है। और अगर चुनाव आयोग इन्हें डिटेल दे भी दे, तो कागज नहीं दिखाएंगे भी तो इन्हीं का नारा है, फिर इन्हें लोगों से कागज मांगने का अधिकार किसने दिया। 

राहुल गाँधी ने कामठी विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा, की यहां 35हजार मतदाता बड़े जिनके कारण कामठी में कांग्रेस हारती हुई दिखती है। राहुल गांधी से हमें सेफोलॉजीकल डेटा की पढाई और इसीसे जवाब ढूंढने की कोई अपेक्षा नहीं है। लेकिन राहुल गांधी को कम से कम लॉजिकल बातें तो करनी चाहिए तब जाकर लोग उन्हें गंभीरता से लेंगे। कब तक बच्चों जैसी बाते करेंगे। अगर किसी विधानसभा संघ में जनसंख्या 35हजार से रातोंरात बढ़ेगी तो शासन प्रशासन तुरंत अलर्ट होगा, और कामठी विधानसभा तो एससी सीट है, जहां 2004 से सिर्फ भाजपा की तूती बोलती है। साथ ही लोकसभा में कामठी के लोकप्रिय उम्मीदवार चंद्रशेखर बावनकूले लड़ ही नहीं रहे थे, लेकीन विधानसभा में लड़ रहे थे। अब आप सोचो भाजपा जैसी पॉपुलर और प्रिडॉमिनन्ट पार्टी का  प्रदेश अध्यक्ष चुनाव लड़ रहा है एक एससी सीट से, जिसपर वो बरसों से जीतता आया है, क्या उसे वहां जितने के लिए बाहर से 35 हजार लोग लाने की जरुरत होगी।

रोज सुबह राहुल गांधी के तर्क से कॉम्पिटिशन करने वाले संजय राऊत ने कहा की ये मतदाता लोग घूमते रहते है, ये अब दिल्ली जाएंगे, फिर बिहार जाएंगे वगैरा-वगैरा! अगर मान भी लें भाजपा 40 लाख मतदाता महाराष्ट्र में बाहर से जुगाड़ कर लायी। तो पांच महीने के हिसाब से कमसे कम 30-40 हजार रुपए तो एक वोटर पर खर्च होंगे। कीजिए गणित 40 लाख गुना 30 हजार, इसका मतलब आमदनी अठ्ठन्नी खर्चा रुपैय्या वाला मामला हो जाएगा।

 दोस्तों 40 लाख की यह जो संख्या बताई जा रही है, ये भारतीय सैन्य शक्ती के आसपास की संख्या है, इसे पांच महीनों में महाराष्ट्र में मोबिलाइज करना, महाराष्ट्र में बसाना, इनके वोटर आईडी पंजीकृत करना, ये कोई बजट के हलवे में जाती ढूंढने जैसी आसान काम नहीं है। पहले तो उस रचना के बारे में सोचिए जो 40 लाख लोगों को कहीं और से महाराष्ट्र में ले आएगी और वोट भी डलवाएगी। हम तो यह मानते है की अगर सच में भाजपा और अन्य एनडीए पार्टी में इतनी शक्ती है की इतनी बड़ी संख्या में वोटर वो देशभर से ला सकते है फिर तो देश ऐसी ही पार्टी को चलाना चाहिए जो सक्षम हो। 

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दरअसल बात यही है की राहुल गाँधी जैसे जैसे अपने चुनाव हारने की सेंचुरी के करीब पहुंच रहें है वैसे उनके सहयोगी दलों में उनकी वैल्यू कम हो रही है। दिल्ली में वो लगातार तीसरी मर्तबा भारी बहुमत से हारने जा रहें है। साथ ही कांग्रेस में भी राहुल गांधी की अक्षमता के सुर उठने लगे है। दरम्यान महाराष्ट्र में लोकल बॉडीज के चुनाव होने है, उनमें भी मतदाताओं को चेहरा दिखाना है। ऐसे में राहुल गांधी महाराष्ट्र हो चुकी हार, दिल्ली में होने वाली हार को अपनाने के बजाए फेस सेविंग करना उनके लिए जरूरी हो चुका है, राहुल गांधी को पता है कि उनके दावों से चुनाव आयोग पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर इस तरह के तर्क और कॉन्स्पीरसी थ्योरी देने से उनके बचे कुछे नेता और मतदाता उनसे किनारा न करे यही उनकी कोशिश है।

यह भी देखें:

https://youtu.be/wThnZtg7RwI

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