कैग रिपोर्ट से ‘आप’ की केजरीवाल सरकार की पोल खुलती दिखाई दे रही है| रिपोर्ट ने बताया गया कि दिल्ली सरकार को 2021-22 की आबकारी नीति से 2002.68 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। इसकी वजह नीतिगत कमजोरी के साथ नियमों का उल्लंघन और खराब क्रियान्वयन रहा है।
वहीं, शराब लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में भी नियमों को तोड़ा गया। इतना ही नहीं, तत्कालीन दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने नीति तैयार करने के लिए बनी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को भी नजरअंदाज किया। मंगलवार दिल्ली विधानसभा में पेश की नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
दूसरी ओर सरेंडर कर दिए गए लाइसेंस का फिर से टेंडर न करने से 890.15 करोड़ का घाटा हुआ। कोरोना के नाम पर लाइसेंस फीस माफ करने के तत्कालीन सरकार के फैसले से 144 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। सुरक्षा जमा राशि भी सही तरीके से नहीं ली गई। इससे सरकारी राजस्व को 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, 19 जोनल लाइसेंस धारकों ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिया था। आबकारी विभाग ने इसका फिर से टेंडर जारी नहीं किया। इस वजह से इन जोन से मिलने वाली लाइसेंस फीस के रूप में सरकार को 890.15 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
तत्कालीन शराब मंत्री मनीष सिसोदिया ने फिर भी यह छूट लाइसेंस धारकों को दे दी। इस वजह से दिल्ली सरकार को 144.50 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा था। इसी तरह कोविड-19 के कारण 28 दिसंबर 2021 से 4 जनवरी 2022 तक शराब की दुकानें बंद रही थीं। लाइसेंस धारकों ने लाइसेंस फीस में छूट की मांग की। आबकारी और वित्त विभाग ने इस छूट का विरोध किया क्योंकि टेंडर दस्तावेजों में इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी ही नहीं।
सीएजी रिपोर्ट में कई अन्य अनियमितताएं का भी उजागर हुआ है, जिसमें नीतिगत फैसलों में दिल्ली कैबिनेट और उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई। निजी कंपनियों को थोक शराब कारोबार सौंपने का फैसला ले लिया गया था। गलत तरीके से जमा की गई सुरक्षा राशि की वजह से 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। लॉटरी सिस्टम की जगह एकमुश्त बोली प्रक्रिया लागू की गई, जिससे कुछ कंपनियों को 54 दुकानें खोलने की अनुमति मिल गई थी।
दूसरी ओर सीएजी रिपोर्ट में कहा गया कि थोक विक्रेताओं के मार्जिन को 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया। इससे शराब की क्वालिटी व राजस्व गिर गया। ”आप” सरकार ने खुदरा शराब लाइसेंस बिना उचित जांच के दे दी, आपराधिक रिकॉर्ड का ध्यान नहीं रखा गया। शराब जोन चलाने के लिए 100 करोड़ से ज्यादा का शुरुआती निवेश लगता है, वित्तीय पात्रता मानदंड नहीं रखा गया।
इसके साथ ही ”आप” सरकार ने अपनी खुद की एक्सपर्ट कमेटी की 2021-22 की एक्साइज पॉलिसी पर फैसला लिया, सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया। पारदर्शिता का अभाव रहा। एकल आवेदक को 54 शराब की दुकानों को संचालित करने की अनुमति दे दी गई| बता दें कि नई नीति के तहत 32 रिटेल जोन बनना था, जिसमें 849 वेंड्स शामिल थे, लेकिन केवल 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस मिला। ”आप” की नीति निर्माताओं को एक ही थोक विक्रेता के साथ टाई-अप करने के लिए मजबूर किया।
मजे की बात यह है कि ‘आप’ की मिलीभगत से शराब के दाम कृत्रिम रूप से बढ़ाया गया। निरीक्षण टीमों ने जोन 23 के 4 दुकानों को वाणिज्यिक क्षेत्रों से गलत तरीके से जोड़ा| आबकारी विभाग ने एल-1 लाइसेंसधारियों को महंगी शराब के लिए सलाह दी। एक्स-डिस्टिलरी कीमत तय करने से कीमत में हेराफेरी का दरवाजा खुल गया।
एफआईआर विश्लेषण से पता चला कि कुछ खास इलाकों में बार-बार तस्करी हो रही थी, फिर भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। खराब डेटा प्रबंधन और अवैध शराब व्यापार को बढ़ावा मिला। आधुनिक डेटा एनालिटिक्स और एआई का उपयोग करने के बजाय, आप की उत्पाद नीति पुरानी और अप्रभावी ट्रैकिंग विधियों पर निर्भर थी।
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