24 C
Mumbai
Wednesday, December 31, 2025
होमन्यूज़ अपडेटदुर्लभ खनिजों के भंडार में भारत तीसरे स्थान पर, लेकिन वैश्विक उत्पादन...

दुर्लभ खनिजों के भंडार में भारत तीसरे स्थान पर, लेकिन वैश्विक उत्पादन में 1% से भी कम हिस्सेदारी

Google News Follow

Related

दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements–REEs) के भंडार के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है, लेकिन वैश्विक उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम बनी हुई है। एमिकस ग्रोथ की रिपोर्ट में संसाधनों की उपलब्धता और वास्तविक उत्पादन के बीच गहरे अंतर को रेखांकित किया गया है, जिसे रणनीतिक खनिजों, स्वच्छ ऊर्जा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक गंभीर चुनौती माना जा रहा है।

17 महत्वपूर्ण खनिज का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन टर्बाइनों, मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, रक्षा प्रणालियों और मिसाइलों, स्थायी मैग्नेट तथा बैटरियों में किया जाता है। ऐसे 17 खनिजों को दुर्लभ खनीज कहा जाता है, नाम के अनुसार ये खनिज वास्तव में दुर्लभ नहीं हैं, लेकिन इनका खनन करना और प्रौद्योगिकी तकनीकी रूप से जटिल और महंगा होता है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास लगभग 69 लाख टन दुर्लभ ऑक्साइड (REO) का भंडार है, जो दुनिया में तीसरा स्थान पर आने वाले भंडार है। तुलना में चीन के पास करीब 4.4 करोड़ टन और ब्राज़ील के पास लगभग 2.1 करोड़ टन का भंडार है। ऑस्ट्रेलिया, रूस, वियतनाम और अमेरिका भी इस सूची में प्रमुख देश हैं। कुल मिलाकर भारत के पास वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी भंडार का लगभग 6–7 प्रतिशत हिस्सा है।

भारी भंडार के बावजूद भारत का उत्पादन बेहद सीमित है। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने लगभग 2,900 टन दुर्लभ खनिजों का उत्पादन किया, जिससे वह वैश्विक स्तर पर सातवें स्थान पर रहा। वहीं चीन 2.7 लाख टन उत्पादन के साथ हमेशा की तरह शीर्ष पर है। अमेरिका (45,000 टन) और म्यांमार (31,000 टन) भी भारत से कहीं आगे हैं। यह आंकड़े दिखाते हैं कि भारत की वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम है।

भारत के अधिकांश दुर्लभ खनीज मोनोजाइट तटीय रेत में पाए जाते हैं, जो मुख्य रूप से पूर्वी और दक्षिणी तटों पर स्थित हैं। मोनाजाइट में थोरियम भी होता है, जो एक रेडियोएक्टिव तत्व है। इसी कारण इसका खनन और प्रसंस्करण तकनीकी रूप से जटिल होने के साथ-साथ कड़े नियंत्रण भी लागू होते है।

एमिकस रिपोर्ट में कई प्रमुख बाधाओं की ओर इशारा किया गया है। भारत में दुर्लभ पृथ्वी खनन लंबे समय तक कड़े नियमों के तहत रहा और इसका संचालन मुख्य रूप से इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) के पास था। लंबे समय तक REEs को रणनीतिक संसाधन की बजाय एक उप-उत्पाद के रूप में देखा गया। इसके अलावा, सबसे बड़ी चुनौती प्रौद्योगिकी और रिफाइनिंग क्षमता की कमी रही है। वैश्विक स्तर पर लगभग 90 प्रतिशत रिफाइनिंग क्षमता चीन के पास है, जिससे चीन को वैल्यू चेन पर नियंत्रण मिला हुआ है। भारत में ऐसी अवसंरचना बेहद सीमित है।

विशाखापत्तनम में जापान से जुड़ा एक संयुक्त उपक्रम भारत की इस क्षेत्र में वापसी का संकेत ले आया है, लेकिन उसका पैमाना अभी छोटा है और वैश्विक बाजार पर असर डालने के लिए पर्याप्त नहीं। रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि भारत की असली चुनौती संसाधनों की नहीं, बल्कि उनके प्रभावी और समयबद्ध क्रियान्वयन की है। यदि नियामकीय सुधार, प्रौद्योगिकी क्षमता में निवेश और वैल्यू-चेन एकीकरण पर ध्यान दिया जाए, तो भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत कर सकता है।

यह भी पढ़ें:

भांडुप BEST बस हादसा: स्टेशन रोड पर रिवर्स करते समय बस ने कुचले गए राहगीर; 4 की मौत, 9 घायल

पुतिन के आवास पर यूक्रेनी ड्रोन से हमले, ट्रंप हुए नाराज़

कृष्णा-गोदावरी गैस विवाद: भारत सरकार का रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और BP से 30 अरब डॉलर से अधिक मुआवजे का दावा

National Stock Exchange

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Star Housing Finance Limited

हमें फॉलो करें

151,538फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
285,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें