प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एटॉमिक एनर्जी बिल, 2025 को मंज़ूरी दे दी है, जिसे SHANTI (Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India) नाम दिया गया है। यह क़ानून भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा गेम चेंजर बिल माना जा रहा है। इसके ज़रिये छह दशकों से अधिक समय से चले आ रहे परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के एकाधिकार को तोड़ते हुए निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए दरवाज़े खोले जाएंगे।
सरकार का कहना है कि भारत के पास परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एंड-टू-एंड क्षमताएँ मौजूद हैं। यह विधेयक आगामी सप्ताह संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार या मंगलवार को पेश किए जाने की संभावना है। कानून बनने के बाद SHANTI कई मौजूदा कानूनों को एकीकृत करेगा, नियामक खामियों को दूर करेगा और परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिए एक एकीकृत कानूनी ढांचा प्रदान करेगा।
क्यों अहम है यह सुधार
भारत ने 2047 तक 100 गीगावॉट (GW) परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य तय किया है, जो वर्तमान स्तर से लगभग ग्यारह गुना अधिक है। फिलहाल देश में 25 परमाणु रिएक्टर संचालित हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 8,880 मेगावॉट है, जबकि 17 रिएक्टर निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। सरकार का रोडमैप 2032 तक 22,000 मेगावॉट और 2047 तक 100 GW क्षमता तक पहुँचने का है। यह लक्ष्य 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन और विकसित भारत के दृष्टिकोण से जोड़ा गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कोयला और गैस आधारित थर्मल संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की स्थिति में बेस-लोड बिजली की ज़रूरत परमाणु ऊर्जा से ही पूरी की जा सकेगी। इतने बड़े विस्तार के लिए भारी पूंजी निवेश, उन्नत तकनीक और तेज़ परियोजना समय-सीमा की आवश्यकता होगी, जो केवल सरकारी संसाधनों से संभव नहीं है। SHANTI बिल का उद्देश्य निजी निवेश खोलना, नवाचार को बढ़ावा देना और परमाणु ऊर्जा को भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति का केंद्रीय स्तंभ बनाना है।
प्रधानमंत्री का संकेत
27 नवंबर 2025 को स्काईरूट एयरोस्पेस परिसर के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “हम परमाणु क्षेत्र को भी खोलने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हम इस क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र की मज़बूत भूमिका की नींव रख रहे हैं। यह सुधार हमारी ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व को नई ताकत देगा।” भारत 1998 में परमाणु हथियार हासिल कर चुका एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है।
SHANTI के तहत क्या बदलेगा
- निजी क्षेत्र की एंट्री: पहली बार निजी कंपनियों को परमाणु खनिजों की खोज, ईंधन निर्माण, उपकरण निर्माण और संभावित रूप से संयंत्र संचालन के कुछ पहलुओं में भागीदारी की अनुमति मिलेगी।
- आधुनिक कानूनी ढांचा: एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 के पुराने प्रावधानों को बदलकर लाइसेंसिंग, सुरक्षा और अनुपालन के लिए एक सुव्यवस्थित ढांचा बनाया जाएगा।
- नियामक मज़बूती: पारदर्शिता और वैश्विक मानकों के पालन के लिए एक स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना की संभावना है।
- दायित्व सुधार: न्यूक्लियर डैमेज के लिए सिविल लायबिलिटी एक्ट में संशोधन कर ऑपरेटर और सप्लायर की जिम्मेदारियाँ स्पष्ट की जाएंगी, बीमा-समर्थित सीमाएँ तय होंगी और सरकारी बैकस्टॉप उपलब्ध होगा, जो निजी व विदेशी निवेश के लिए अहम है।
वित्त मंत्री का बड़ा जोर
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हालिया बजट भाषण में ‘विकसित भारत के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन’ की घोषणा करते हुए कहा था कि विकास में बाधा बने कानूनों में संशोधन ज़रूरी है। उन्होंने कहा, “2047 तक कम से कम 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा का विकास हमारी ऊर्जा संक्रमण कोशिशों के लिए अनिवार्य है। इस लक्ष्य के लिए निजी क्षेत्र के साथ सक्रिय साझेदारी हेतु एटॉमिक एनर्जी एक्ट और न्यूक्लियर डैमेज के लिए सिविल लायबिलिटी एक्ट में संशोधन किए जाएंगे।”
उन्होंने स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) के अनुसंधान एवं विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की भी घोषणा की, और 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी SMR चालू करने का लक्ष्य रखा। ये रिएक्टर औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन और ग्रिड लचीलापन बढ़ाने में अहम माने जा रहे हैं।
NPCIL (न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) 100 GW लक्ष्य का कम से कम 50 प्रतिशत योगदान देने की योजना बना रही है, जबकि शेष क्षमता निजी क्षेत्र और आयातित रिएक्टरों से आएगी। NPCIL के सीएमडी भुवन चंद्र पाठक ने संकेत दिया है कि निगम हर साल कम से कम एक रिएक्टर चालू करेगा। हालांकि, पूंजी लागत, सुरक्षा निगरानी, ईंधन सुरक्षा, दायित्व स्पष्टता और सार्वजनिक सहभागिता जैसी चुनौतियाँ बनी रहेंगी।
क्यों गेम-चेंजर है SHANTI:
SHANTI बिल को गेम-चेंजर इसलिए माना जा रहा है क्योंकि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाएगा, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटेगी और देश का ऊर्जा मिश्रण अधिक स्थिर और भरोसेमंद बनेगा। इसके साथ ही यह भारत की डीकार्बोनाइजेशन रणनीति में परमाणु ऊर्जा की केंद्रीय भूमिका को और सुदृढ़ करेगा, जो 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, इस सुधार से इंजीनियरिंग, निर्माण और अत्याधुनिक तकनीक के क्षेत्रों में बहु-अरब डॉलर के आर्थिक अवसर खुलेंगे, जिससे घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ वैश्विक निवेश भी आकर्षित होगा।
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