सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (28 अगस्त) को गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली को 2007 में मुंबई के शिवसेना कॉर्पोरेटर कमलाकर जामसंडेकर हत्याकांड मामले में जमानत दे दी। अदालत ने गवली की उम्र और लंबे समय से चली आ रही कैद को देखते हुए यह राहत दी। गवली (76) पर महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA), 1999 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
जस्टिस एम.एम. सुंदरैश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने गवली की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि उनकी अपील 17 साल और तीन महीने से लंबित है। इस दौरान गवली लगातार जेल में रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अंतिम सुनवाई फरवरी 2026 के लिए तय की है।
इससे पहले जून 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का वह आदेश रोक दिया था, जिसमें गवली को समयपूर्व रिहाई की अनुमति दी गई थी। गवली ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा उनकी समयपूर्व रिहाई की अर्जी खारिज करना मनमाना और अनुचित है। हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट में गवली की रिहाई का कड़ा विरोध किया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया और चार सप्ताह के भीतर आदेश लागू करने का निर्देश दिया। लेकिन सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कार्यान्वयन के लिए अतिरिक्त समय मांगा। इसके बाद हाईकोर्ट ने एक और मौका देते हुए चार हफ्ते का समय दिया, साथ ही साफ किया कि आगे कोई और विस्तार नहीं दिया जाएगा।
अरुण गवली को 2006 में शिवसेना कॉर्पोरेटर कमलाकर जामसांडेकर की हत्या मामले में गिरफ्तार किया गया था। अगस्त 2012 में मुंबई की सेशंस कोर्ट ने गवली को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गवली के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है, लेकिन मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। फरवरी 2026 में होने वाली अंतिम सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।
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