हाईकोर्ट ने कहा कि साल 2006 में आदिवासी इलाकों की स्थिति को लेकर 13 निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन 16 साल बाद भी इन पर अमल होता नहीं दिख रहा है। प्रसंगवश हाईकोर्ट ने पालघर के मोखाडा इलाके में समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के चलते अपने जुड़वा बच्चों को गंवाने वाली गर्भवती महिला को लेकर छपी खबर का जिक्र करते हुए कहा कि आदिवासी इलाकों में होने वाली मौत घट क्यों नहीं रही है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा ने खंडपीठ के सामने कहा कि आदिवासी इलाकों में जितने डॉक्टरों को तैनात किया जाता है उसमें से 50 प्रतिशत डॉक्टर ड्यूटी पर आते ही नहीं हैं। इन इलाकों में बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस बीच उन्होंने मेलघाट इलाके में स्थित दो गांवों में दूषित पानी के चलते हुई बच्चों की मौत की जानकारी भी खंडपीठ को दी।
इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ता बीएस साने ने खंडपीठ के सामने कहा कि राज्य के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय न होने के चलते आदिवासी इलाकों में बच्चों की मौत हो रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाकों में बच्चों के डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। इसके चलते नंदुरबार व अन्य इलाकों में बच्चों की मौत हो रही है। गर्भवती महिलाओं के आहार के लिए एक योजना के तहत 33 रुपए दिए जाते है। यह राशि अपर्याप्त है।
हाईकोर्ट ने मांगी ड्यूटी पर न आने वाले डॉक्टरों की लिस्ट: इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हमारे सामने इसकी जानकारी पेश की जाए कि वे कौन से 50 प्रतिशत डॉक्टर है जो ड्यूटी नहीं ज्वाइन करते हैं। जब तक हमारे सामने डॉक्टर से जुडी जानकारी नहीं आएगी तब तक हम इस मामले में जांच व अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश नहीं दे सकते हैं। खंडपीठ ने कहा कि राज्य के महाधिवक्ता ने हमे जानकारी दी थी कि श्री दोरजे की रिपोर्ट के आधार पर अल्पकालिक या दीर्घकालिक कदम उठाए गए हैं। यह कदम कौन से हैं, इसकी जानकारी दी जाए। खंडपीठ ने कहा कि फिलहाल हमें बताया जाए कि तत्काल आदिवासी इलाके के लिए कौन सा आदेश जरुरी है। हम उसको लेकर आदेश जारी करेंगे। खंडपीठ ने अब 12 सितंबर को इस मामले की सुनवाई रखी है।
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