दशकों से नक्सलवाद से त्रस्त गढ़चिरौली ज़िले में आखिरकार शांति का एक नया अध्याय शुरू हो गया है। 6 करोड़ रुपये के इनामी शीर्ष माओवादी नेता मल्लोजुला वेंगुपाल राव उर्फ भूपति (सोनू) ने सोमवार (14 अक्टूबर) को गढ़चिरौली के पुलिस अधीक्षक के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस घटना को माओवादी आंदोलन के इतिहास में सबसे बड़े सामूहिक आत्मसमर्पण के रूप में दर्ज किया जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा पर नक्सल विरोधी अभियान तेज़ हो गए थे। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस अभियान के सफल परिणाम ने गढ़चिरौली ज़िले में नक्सल आंदोलन को लगभग समाप्त कर दिया है। भाकपा (माओवादी) पोलिट ब्यूरो के सदस्य भूपति ने सितंबर में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर हथियार डालने की चेतावनी दी थी। इसके बाद, छत्तीसगढ़ समेत विभिन्न राज्यों के बड़ी संख्या में माओवादी कार्यकर्ताओं ने उनका समर्थन किया और अंततः एक साथ आत्मसमर्पण करने का फैसला किया।
गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में लंबे समय से चल रहे नक्सल विरोधी अभियानों में इसे एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे समन्वित अभियानों से माओवादी संगठनों का नेटवर्क कमज़ोर हुआ है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, इस आत्मसमर्पण से बचे हुए नक्सल कार्यकर्ताओं को भी मुख्यधारा में शामिल होने का प्रोत्साहन मिलेगा।
कई वर्षों से माओवादी आंदोलन का केंद्र रहे गढ़चिरौली में आज का आत्मसमर्पण भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो रहा है।
इस बीच, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले में 8 अक्टूबर को 16 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिनमें नौ लोग ऐसे थे जिन पर कुल 48 लाख रुपये का इनाम था। इस समूह में सात महिला सदस्य भी शामिल थीं। उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने अपने हथियार डाल दिए और घोषणा की, “माओवादी विचारधारा खोखली और अमानवीय है।” उन्होंने कहा कि शीर्ष माओवादी नेता आदिवासियों की रक्षा का वादा तो करते हैं, लेकिन असल में उनका शोषण करते हैं।
इन सभी घटनाक्रमों से यह स्पष्ट है कि भारत में वामपंथी उग्रवादी आंदोलन को करारा झटका लगा है और सुरक्षा बलों के रणनीतिक प्रयासों से नक्सलवाद का अंत अब दूर नहीं है।
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