कन्नड़ फिल्म अभिनेता दर्शन थूगुदीप की जमानत रद्द करने की मांग पर दायर याचिका पर सुनवाई अब गुरुवार( 24 जुलाई) को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनवाई तब स्थगित की जब आरोपी अभिनेता के वकील ने बताया कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो इस मामले में बहस करने वाले थे, किसी अन्य केस में व्यस्त हैं।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने सुनवाई को स्थगित करते हुए स्पष्ट किया कि यह मामला केवल गिरफ्तारी के औचित्य पर नहीं, बल्कि जमानत के फैसले की वैधता और सबूतों की कानूनी जांच पर केंद्रित रहेगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा दर्शन को दी गई जमानत पर सख्त सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा— “हम हाई कोर्ट के विवेक से सहमत नहीं हैं, जिसने इतनी गंभीरता वाले मामले में इस प्रकार से जमानत दे दी।”
कर्नाटक सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा और अनिल सी. अदालत में उपस्थित हुए। सरकार ने दर्शन समेत अन्य आरोपियों की जमानत रद्द करने की अपील की है। यह मामला 11 जून 2024 का है, जब अभिनेता दर्शन, उनकी करीबी सहयोगी पवित्रा गौड़ा, और 15 अन्य लोगों को चित्रदुर्गा निवासी उनके एक प्रशंसक रेणुका स्वामी के अपहरण और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस जांच के अनुसार, रेणुका ने सोशल मीडिया पर पवित्रा को लेकर आपत्तिजनक और कथित तौर पर अश्लील संदेश भेजे थे। रेणुका दरअसल दर्शन की पत्नी विजयलक्ष्मी के पक्ष में थे और दर्शन-पवित्रा के कथित रिश्ते का विरोध कर रहे थे। सोशल मीडिया पर विजयलक्ष्मी और पवित्रा के बीच चल रही बहस के कारण प्रशंसकों में दो गुट बन गए थे। पवित्रा की आलोचना करने के चलते रेणुका की कथित रूप से बेरहमी से हत्या कर दी गई।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने 28 फरवरी 2025 को दर्शन को देशभर में यात्रा करने की अनुमति दी थी। इससे पहले उन्हें केवल बेंगलुरु तक सीमित रहने की शर्त पर जमानत मिली थी। वर्तमान में दर्शन अपनी आगामी फिल्म ‘डेविल’ की शूटिंग के लिए थाईलैंड में हैं।
अब 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा दर्शन को दी गई जमानत न्यायोचित थी या नहीं। यह सुनवाई इसलिए भी अहम है क्योंकि मामला न केवल एक गंभीर अपराध से जुड़ा है, बल्कि इसमें कानून व्यवस्था, सामाजिक प्रभाव और सोशल मीडिया के दुरुपयोग जैसे कई आयाम शामिल हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करता है, तो दर्शन समेत अन्य आरोपियों को दोबारा हिरासत में लिया जा सकता है। वहीं अगर जमानत बरकरार रहती है, तो यह न्याय व्यवस्था की विवेकपूर्ण परीक्षा के तौर पर देखा जाएगा।
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