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Monday, December 8, 2025
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वसई-विरार निर्माण घोटाला:  275 करोड़ की रिश्वतखोरी आई सामने !

धन का बड़ा हिस्सा विदेश भेजा गया, और कुछ लेन-देन यूरो व अमेरिकी डॉलर में हुए।

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वसई-विरार के बड़े निर्माण घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। जांच में सामने आया है कि गिरफ्तार पूर्व नगर आयुक्त अनिल पवार और नगर नियोजन के उप निदेशक वाईएस रेड्डी ने शहर भर में 5.5 करोड़ वर्ग फुट से अधिक अवैध निर्माण को मंजूरी देकर 275 करोड़ रुपये से ज्यादा की रिश्वत ली। ईडी का कहना है कि रिश्वत की रकम प्रति वर्ग फुट तय थी, जिसमें अनिल पवार 25 रुपये और रेड्डी ने 10 रुपये वसूले। कनिष्ठ अधिकारियों ने भी इस रकम में हिस्सा बांटा और लेन-देन को “ए, बी, सी” जैसे कोड शब्दों में दर्ज किया गया।

ईडी के अनुसार, रिश्वत की अधिकांश रकम स्थानीय आर्किटेक्ट्स और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के जरिए अधिकारियों तक पहुंचाई जाती थी। जांच में यह भी शक जताया गया है कि धन का बड़ा हिस्सा विदेश भेजा गया, और कुछ लेन-देन यूरो व अमेरिकी डॉलर में हुए। विशेष लोक अभियोजक कविता पाटिल ने अदालत को बताया कि यह रकम हवाला और आंगड़िया नेटवर्क से बाहर भेजी गई और फिर रिश्तेदारों के खातों में वैध आय दिखाकर वापस लाई गई।

इस मामले में 13 अगस्त को पवार, रेड्डी और बिल्डरों सीताराम गुप्ता व अरुण गुप्ता को गिरफ्तार किया गया। चारों को विशेष पीएमएलए अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत (3 सितंबर तक) में भेज दिया है। ईडी ने वसई-विरार, मुंबई, पुणे और नासिक में 12 ठिकानों पर छापेमारी कर भारी मात्रा में नकदी, सोना, आभूषण और फर्जी कंपनियों के दस्तावेज बरामद किए। नासिक में पवार के रिश्तेदार के घर से 1.33 करोड़ रुपये नकद और संपत्ति के कागजात जब्त किए गए, जबकि रेड्डी के ठिकानों से 8.6 करोड़ रुपये नकद, 23.25 करोड़ रुपये मूल्य का सोना-आभूषण और फर्जी कंपनियों का रिकॉर्ड मिला।

ईडी ने इस घोटाले को नगर निगम अधिकारियों, बिल्डरों, आर्किटेक्ट्स, अकाउंटेंट्स और निर्माण लॉबी का एक सुसंगठीत गठजोड़ बताया है। रिश्वत की दरें कमीशन सर्टिफिकेट, ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट और विकास संबंधी मंजूरियों के लिए तय थीं। नालासोपारा में 60 एकड़ आरक्षित भूमि पर बनी 41 अवैध इमारतें भी इसी रैकेट से जुड़ी थीं। ये इमारतें सीवेज प्लांट और अपशिष्ट डिपो के लिए आरक्षित जमीन पर बनाई गईं और 2006-07 में 1000-1200 रुपये प्रति वर्ग फुट में बेची गईं, जो 2022-23 तक बढ़कर 3000-4000 रुपये हो गईं।

जुलाई 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन इमारतों को गिराने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। अंततः 20 फरवरी 2025 को वसई-विरार नगर निगम ने इन्हें ध्वस्त कर दिया, जिससे करीब 2500 परिवार विस्थापित हो गए। ईडी का कहना है कि यह घोटाला न सिर्फ नगर निगम स्तर पर भ्रष्टाचार को उजागर करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग नेटवर्क से भी जुड़ा हुआ है, जिसकी जांच अभी जारी है।

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