पिछले तीन चार दिनों से देश में वक़्फ का मुद्दा गर्म है। भाजपा ने अल्पमत की सरकार होने के बावजूद भी जिस विश्वास के साथ अपने सहयोगी दलों और मुस्लिम समाज को साथ लेकर वक्फ संशोधन को पारित कराया वो भी सरहानीय था। देखा जाए तो इस बिल में जो प्रावधान शामिल किए गए है, वो रेसिप्रोकल न होकर भविष्य के लिए लागू होंगे, साथ ही वक़्फ़ बोर्ड के धन पर नियंत्रण होगा, संपत्ति को कब्जाने पर नियंत्रण होगा। हालांकि सरकार की संपत्ति छोड़कर…वक़्फ़ द्वारा हड़प की गई अन्य संपत्ति को वापस दिलवाने का इसमें कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही एक तरफ देखा जाए तो राष्ट्रीयत्व मत अनुसार…भारत में वक़्फ़ व्यवस्था ही गैरजरूरी, और राष्ट्रघातकी है। लेकीन भाजपा ने सहयोगी दलों को मनाने के लिए, और मुल्लाओं द्वारा समाज को अस्थिर करने की योजनाओं को पस्त करने के लिए सीमित लेकीन कारगर रास्ता चुना। इसीलिए भाजपा के थिंक टैंक की सराहना करनी होगी, जिसने वही युद्ध लड़ने की सलाह दी जो जीता जा सके।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड, तबलीग़ी जमात जैसे बड़े-बड़े मुस्लिम संगठन मुसलमानों को प्रभावित कर रास्ते पर उतार कर एक आंदोलन छेड़ना चाहते थे। लेकीन यहां मुसलमानों को यह बात समझ आ गई थी, की अगर वक़्फ़ बोर्ड सुचारु रूप से नियंत्रित होगा, तो इसका फायदा गरीब, बेवा, तलाकशुदा, बेसहारा मुसलमानों को होगा। 12 हजार करोड़ सालाना आय जुटाने की शक्ती वक़्फ बोर्ड में है, ऐसे में मुसलमानों को हर बात के लिए नेताओं के सामने झोली फैलाकर जो भिक मांगनी पड़ती है, उसकी जरूरत नहीं रहेगी। इस बात को समझने के बात तो कई शहरों में मोदी सरकार के निर्णय का स्वागत भी हुआ और समर्थन भी…
दूसरी तरफ विपक्ष इस परिस्थिती को देखकर और भी भयभीत हुआ था, मुसलमानो का समर्थन न मिलने से विपक्षीयों की सांसे अटकी थी। अगर पार्ल्यामेंट में हुआ तो ठीक वरना रस्ते पर बिल रोकेंगे, और दुनियाभर की नजरें अपनी तरफ खीचेंगे यही कांग्रेस की प्लानिंग भी थी, जो की भाजपा की सही स्ट्रैटेजी से पस्त हुई। मुसलमानों को देखकर हाय-हुक, हाय-हुक, हाय-हाय, करनेवाले राहुल गांधी भी इस बिल पर चर्चा के दौरान कुछ नहीं बोले, उलटे बीच डिबेट से भाग खड़े हुए…उन्होंने केवल एक ट्वीट कर अपना विरोध जताया और बिल के विरोध में मतदान किया। इंदिरा गांधी जैसी नाक होकर भी प्रियंका गांधी ने चर्चा में अपनी नाक कहीं नहीं घुसेडी। पूरा का पूरा विपक्ष इन दो दिनों में केवल विरोध जताने के लिए विरोध कर रहा था। अब जिस किसी ने गांधियों को चुप-चाप बैठकर दर्शक बने रहने की सुचना की थी वो होशियार था। सराहना तो उसकी भी होनी चाहिए। क्योंकि राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा इस बिल पर जितना मुंह खोलते उतना ही गैर-मुस्लिम विरोध की दल-दल में धसते जाते। क्योंकि वक़्फ़ बिल का सबसे बड़ा विक्टीम गैर-मुस्लिम है जिसकी जमीनें छीनी गई है। इसीलिए अगर गैर-मुसलमानों में रेलेवंस बनाए रखना है–-खासकर हिंदू,सिख और ख्रिश्चन समाज में तो शांत रहने में ही समझदारी भी थी।
यह सब तोह फिर भी ठीक था, लेकीन दिग्गी राजा सदन की चर्चा में सेल्फ गोल कर गए। जब सुधांशु त्रिवेदी सदन में विपक्ष के मुसलमानों पर बरसाए जाने वाले ढोंगी प्रेम पर अपनी बात रख रहे थे, तो उन्होंने कहा भाजपा हमेशा से राष्ट्रवादी मुसलमानों का सम्मान करते आयी है। भाजपा वीर अब्दुल हामिद, एपीजे कलाम जैसे लोगों का सम्मान करते आयी है, जबकि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली इंडि गठबंधन के नेता यासीन मालिक, याकूब मेनन और इशरत जहान जैसे लोगो का समर्थन करते है। साथ ही सुधांशु त्रिवेदी ने यह भी कहा की 26 /11 को rss की साजिश कहने वाले और झाकिर नायक को शांति का सौदागर कहने वाले तो सदन में बैठे है। इसमें सुधांशु त्रिवेदी ने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकीन चोर की दाढ़ी में तिनका निकल ही आया।
जिस ने अज़ीज़ बर्नी की किताब 26/11 की अनावरण किया था, वो खड़ा हो गया। और यही वो आदमी था जिसने झाकिर नाइक से गले मिलते कहा था, की झाकिर नाइक तो शांति का सन्देश देता है, सांप्रदायिकता के खिलाफ काम करता हैं, इसलिए उसका संदेश देश के हर कोने तक जाना चाहिए। दिग्गी चाचा को इस बात से इतनी मिर्ची लगी की वो खड़े होकर इसे ख़ारिज करने की नाकाम कोशिश करने लगे। जब तक दिग्विजय सिंग को पता चलाता की उन्होंने उड़ता तीर ले लिया है, तब तक समय निकल चूका था।
राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ जैसी राष्ट्रप्रेमी, व्यक्तिनिर्माण का महत्वपूर्ण काम करने वाली संघटना पर दिग्गी राजा और उनके पंटरों ने काफी कीचड़ उछाला है। केवल दिग्गी राजा ही नहीं हर कोंग्रेसी नेता की इतिहास की करतूतों खंगालकर देखोगे तो ऐसा ही काला चेहरा सामने आएगा। आज भले वो नेता चाहे पार्टी बदलकर गए हो लेकीन उनका हिंदू विरोध का इतिहास पीछा नहीं छोड़ने वाला है। हालांकि इस बार दिग्विजय सिंग़ विषय को डाइवर्ट कर गुजरात दंगों पर ले गए हो, लेकीन जनता इतनी भुलक्क़ड नहीं की हिंदू आतंकवाद को सिद्ध करने के लिए लगाए गए इतने बड़े आरोप भूल जाएगी।
कई बार जानकार और विश्लेषक बातों बातों में इस बात का जिक्र करते है की, 26/11 का पाकिस्तान द्वारा किया गया हमला दो लक्ष्य को हासिल करने के लिए था, एक की भारत में अंधाधुंद रक्तपात कर भारतीयों को डराया जाए, दहशत का माहौल बनाया जाए। और दूसरा इस हमले के जरिए भारत में एक ऐसा नरेटिव बनाया जाए की हिंदू आतंकवादी है, जो अपने ही देश में लोगों पर हमले करते है। इसीलिए कसाब के हाथ में कलावा और हिंदू नाम से भी आयडी कार्ड भी दिया गया था। अगर कसाब जिंदा न पकड़ा जाता तो आज 26/11 के हमलों का दोष हिंदूओं के ऊपर मढ़ा चुका होता…..और ऐसा करने में अज़ीज़ बर्नी किताब 26/11 RSS की साजिश ने बड़ा रोल होता, जो की हिंदुओ की खुशकिस्मती थी की ऐसा नहीं हुआ। लेकीन हमलों में मास्टरमाइंड का किरदार निभाने वाले तहव्वुर राणा को जैसे ही भारत लाया जाएगा वैसे ही इसकी परते भी खुलने लगेंगी। बड़े बड़े नाम सामने आएंगे उनकी पूछताछ, जांच, पड़ताल सब होगा, इन बड़े नामों में हिंदू संगठन को बदनाम करने और झाकिर नाइक को हीरो बनाने के चलते जांच विभाग की वक्र दृष्टी दिग्विजय सिंग पर पड़ना तो लाजमी है। ऐसे में दिग्विजय सिंग की सदन में ही इन आरोपों को खारिज करने की बौखलाहट इस बात का मानो सबूत थी की उन्होंने ऐसा किया था।
राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की तरह दिग्विजय सिंग अगर मौनम सर्वार्थ साधनम का मंत्र पढ़कर सदन में आते तो उड़ता तीर लेकर अपनी किरकिरी न करवाते। अब जिनके ध्यान में नहीं था, वो भी ढूंढेंगे की दिग्विजय सिंग ने 26/11 rss की साजिश इस पुस्तक का अनावरण किया था। आपको क्या लगता है…कमेंट सेक्शन में जरूर बताइये। ..वीडिओ अच्छी लगी हो तो लाइक कीजिए …और न्यूज डंका हिंदी को सब्स्क्राइब कीजिए।
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