अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे उद्धव ठाकरे को सोमवार को बड़ा झटका लगा है। उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी नेता सुभाष देसाई के बेटे भूषण देसाई शिवसेना यानी शिंदे गुट में शामिल हो गए। माना जा रहा है कि ठाकरे गुट को चालीस विधायक अलगाव के बाद यह सबसे बड़ा धक्का है। क्योंकि, सुभाष देसाई उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी नेताओं में है। वे लगभग पांच दशक से ठाकरे परिवार से जुड़े हुए हैं। पिछली महाविकास अघाड़ी सरकार में वे उद्योग मंत्री थे।
इससे पहले भी वे कई और पदों पर रह चुके हैं। इस जोड़तोड़ के बाद आरोप प्रत्यारोप का भी दौर शुरू हो गया है। भूषण देसाई के शिंदे गुट में जाते ही आदित्य ठाकरे ने उन पर बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भूषण देसाई पर भ्रष्टाचार का आरोप है और केस भी दर्ज है। इसलिए वे जांच से बचने शिंदे गुट के साथ गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर आदित्य ठाकरे को भूषण देसाई अभी ही भ्रष्टाचारी क्यों दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले उन्होंने इस मामले को क्यों नहीं उठाया ?
आदित्य ठाकरे को बताना चाहिए कि जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने क्यों नहीं इस मुद्दे को उठाया। आज इस मुद्दे को उठाने का क्या मतलब है। क्या यह दोगली राजनीति नहीं है। जब भ्रष्टाचार करने वाला उनके साथ रहता है तो वह साफ़ सुथरा और भ्रष्टाचरी नहीं रहता है। जैसे ही उनकी पार्टी से निकलकर दूसरे पार्टी में जाता है तो वह अछूत और भ्रष्टाचारी हो जाता है। क्या दोगली मानसिकता का प्रतीक नहीं है। यह तो वही बात हो गई चित भी मेरी और पट्ट भी मेरी।
ठाकरे गुट की यही अकड़ पार्टी को डुबो डाली। हम पहले भी कहे हैं कि ठाकरे परिवार अहंकार से बाहर नहीं आया है। यही वजह है कि पार्टी से लेकर पद तक सबकुछ छीन गया। बावजूद इसके ठाकरे परिवार हकीकत को नहीं पहचान पाया। ऐसे में यह देखना होगा कि सुभाष देसाई कब तक ठाकरे परिवार के प्रति अपनी वफादारी निभाते हैं। क्योंकि, उद्धव गुट के नेता लगातार शिंदे गुट के विधायकों को गद्दार कहते आ रहे हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या सुभाष देसाई भी अपने बेटे को गद्दार कहते हैं ? या जब उनके सामने शिंदे गुट को गद्दार कहा जाएगा तो यह सोचकर चुप हो जाएंगे कि मै ठाकरे परिवार का वफादार हूँ और रहूंगा ? मै यह अपमान सह लूंगा ?
हालांकि सुभाष देसाई ने, अपने बेटे के शिंदे गुट के साथ जाने का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि शिंदे गुट की शिवसेना में जाने से पहले भूषण राजनीति में सक्रिय नहीं थे। अगर अब वे शिंदे गुट की शिवसेना के साथ राजनीति में उतरे हैं तो मेरी शुभकामनायें है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सुभाष देसाई को अपने बेटे के फैसले के बारे में जानकारी नहीं थी। अगर जानकारी थी तो उन्होंने अपने वफादार पार्टी के साथ जोड़ने की जुगत क्यों नहीं की। क्या सुभाष देसाई भी मानते हैं कि अब ठाकरे गुट में भविष्य नहीं है? उद्धव ठाकरे गुट डूबती हुई नाव है ?
गौरतलब है कि भूषण देसाई ने सीएम एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए और शिंदे गुट की तारीफ़ भी की। इतना ही नहीं उन्होंने शिंदे गुट की शिवसेना और उद्धव गुट की शिवसेना में फर्क भी बताया। उन्होंने कहा कि मै मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के कार्य से प्रभावित हूं। वे महाराष्ट्र के विकास के लिए काम कर रहे हैं। शिंदे सरकार कोई भी निर्णय तत्काल और तेजी से लेती है।
इतना ही नहीं, उन्होंने बाला साहेब ठाकरे के विचारों को अनमोल बताते हुए कहा कि बाला साहेब ठाकरे की असली विचारों वाली शिवसेना शिंदे गुट है और बाला साहेब ठाकरे मेरे लिए भगवान हैं। उन्होंने कहा कि दोनों गुटों में जमीन आसमान का अंतर है। शिंदे गुट की सबसे अच्छी बात यह है कि वे महाराष्ट्र के विकास को तेजी से गति देने का काम कर रहे है। यही सबसे बड़ा फर्क है।
इसके, अलावा यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि ईडी से बचने के लिए भूषण देसाई ने शिंदे गुट का दामन थामा है। बता दें कि एमआईडीसी जमीन घोटाले में भूषण देसाई आरोपी है।हालांकि, भूषण देसाई ने इस अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा कि वे किसी के दबाव में शिंदे गुट में शामिल नहीं हुए हैं। मालूम हो कि एमआईडीसी जमीन घोटाले में सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं।
दूसरी बात यह हैं कि जिस तरह ठाकरे गुट अभी साफ़ पाक बनने की कोशिश कर रहा है। वह केवल दिखावटी है। इससे पहले भी सुषमा अंधारे जो एनसीपी की नेता थी और उन्होंने बाला साहेब ठाकरे से लेकर आदित्य ठाकरे तक के खिलाफ विवादित टिप्पणी कर चुकी है। लेकिन आज वही ठाकरे परिवार सुषमा अंधारे को सिर माथे पर बैठाया हुआ है। जब बीजेपी और शिंदे गुट के खिलाफ बोलती हैं तो तालियां बजती हैं। कहने का मतलब यह कि किसी पर कीचड़ उछालने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसके ऊपर तो कीचड़ नहीं है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह कि भूषण के शिंदे गुट में शामिल होने से क्या फ़ायदा हो सकता है। तो कहा जा रहा है कि इससे पहले भूषण राजनीति में सक्रिय नहीं थे। उनका कोई जनाधार भी नहीं है। लेकिन शिंदे गुट को भूषण के आ जाने से मनोवैज्ञानिक तौर पर लाभ मिलेगा। शिंदे गुट यह दावा कर सकता है कि अब उद्धव गुट में कुछ भी नहीं बचा है और सब यह मान रहे हैं कि हम ही असली शिवसेना है।
एक तरह से कहा जा सकता है कि शिंदे गुट ने ठाकरे गुट पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना लिया है। वहीं, माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भूषण देसाई को चुनाव में उतारा जा सकता है। हालांकि, उनके पिता सुभाष देसाई विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले ही इंकार कर चुके हैं। ऐसे में देखना होगा कि शिंदे गुट का दाव ठाकरे गुट पर कितना भारी पड़ता है और ठाकरे गुट इस दाव से कैसे निपटेगा।
ये भी पढ़ें