ऐसा लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक सभी दल अपने पैरों को तकलीफ देने का प्लान बना लिया है। कुछ दिन पहले राहुल गांधी कन्याकुमारी से लेकर जम्मू कश्मीर तक पदयात्रा निकाल कर सिर्फ वाहवाही लूटी थी। आज भी राहुल गांधी विदेशों में अपने भारत जोड़ो यात्रा की कहानी सुनाकर विदेशियों से ताली बजवा रहे हैं। लेकिन, इस यात्रा की अभी तक कोई सफलता देखने को नहीं मिली है।
अब,राहुल के ही नक्शेकदम पर चलते हुए असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार में पदयात्रा निकालने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि ओवैसी इस पदयात्रा से तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा सकते हैं। बता दें कि बिहार के नेताओं में पदयात्रा का खूब क्रेज देखा जा रहा। नीतीश कुमार की समाधान यात्रा खत्म हो चुकी है तो राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा अभी भी जारी हैं। इसके बाद इस लाइन में उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह भी पदयात्रा से निकाल रहे हैं। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा दो भी बिहार से होकर गुजरेगी।
दरअसल, असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सीमांचल से18-19 को सीमांचल अधिकार पदयात्रा निकालने का प्लान बनाया है। ओवैसी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में अपनी यात्रा को ले जाएंगे। कहा जा रहा है कि ओवैसी सीमांचल में 2020 जैसे नतीजे को 2024 के लोकसभा चुनाव में दोहराने की कोशिश में है। गौरतलब है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी के पांच उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।जिसमें से चार विधायक आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए थे।
अब एक बार फिर, ओवैसी को सीमांचल में अपनी जमीन बचाये रखने की चुनौती है। कहा जा रहा है कि हर स्तर पर पिछडे हुए सीमांचल में ओवैसी अपनी जीत देख रहे हैं। क्योंकि, ओवैसी ने बिहार में जितने भी सीटें जीती थी वे सभी सीमांचल इलाके से आती हैं। माना जा रहा है कि एक बार फिर ओवैसी मुस्लिम बहुल इलाकों को टारगेट कर लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की मुश्किलें बढाने वाले हैं।
कहा जा रहा है कि ओवैसी के लिए सीमांचल इलाका एक तरह से प्रयोगशाला है। यह इलाका असम और वेस्ट बंगाल से लगा हुआ है। जिसकी वजह से यहां 40 से 70 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है। हालांकि उन्हें 2015 में कोई सफलता नहीं मिली थी। लेकिन इसके बाद से ओवैसी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में अपना जनाधार बढ़ाया है। जानकारों का कहना है कि ओवैसी 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी रणनीति बना रहे हैं। जिसके जरिये महागठबंधन को बड़ा झटका दे सकते हैं।
बताया जा रहा है कि जिस तरह से ओवैसी ने सीमांचल में अपनी पैठ बनाई है, उससे महागठबंधन के नेताओं को पसीना आना तय है। क्योंकि,सीमांचल में इस गठबंधन का वोट बैंक मुस्लिम ही है। इससे साफ है कि सीमांचल में दोनों चुनावों में महागठबंधन और ओवैसी की पार्टी में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती हैं। बिहार में कुल मुस्लिमों की आबादी 16 फीसदी है। जो 47 विधानसभा सीटों पर अहम भूमिका निभाते रहे हैं। बता दें कि बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं। जबकि विधानसभा की दो सौ तिरालीस सीटें हैं। वहीं, सीमांचल में लोकसभा की चार सीटें आती है और विधानसभा की 24 सीटें हैं।
माना जा रहा है कि सीमांचल में ओवैसी के आने से महागठबंधन का समीकरण गड़बड़ा सकता है। क्योंकि, नीतीश कुमार द्वारा बीजेपी का साथ छोड़ने पर पार्टी बिहार में पूरी तरह से अपने दम पर खड़ा होने की तैयारी कर रही है। पिछले दिनों अमित शाह ने सीमांचल के पूर्णिमा में रैली की थी, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि अब पार्टी किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार को साथ नहीं लाएगी। बता दें कि बीजेपी के नेता शाहनवाज हुसैन किशनगंज सीट से सांसद रह चुके हैं। जो वर्तमान में सक्रिय हैं। माना जा रहा है कि ओवैसी के सीमांचल में एक्टिव होने पर बीजेपी भी नजर लगाए हुए हैं।
राजनीति समीकरण देखें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी के उतरने से बीजेपी को फ़ायदा मिला था। बीजेपी सबसे ज्यादा आठ सीटें जीती थी। हाल ही में गोपालगंज और कुढ़नी में हुए विधानसभा उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया था। इन सीटों पर ओवैसी मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर करने में कामयाब हो गए थे जिसे बीजेपी को जीत मिली थी।
गोपालगंज में ओवैसी के उम्मीदवार को 12 हजार से ज्यादा वोट मिला था। वहीं बीजेपी ने आरजेडी के उम्मीदवार को 17 सौ वोटों से हराया था। तेजस्वी यादव ने भी माना था कि गोपालगंज उपचुनाव ओवैसी की वजह से हारे हैं। इससे साफ है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अगर ओवैसी मुस्लिमों को अपनी ओर करने में कामयाब होते हैं तो बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है। क्योंकि, सीमांचल में आरजेडी मुस्लिम और यादव वोटरों को साधती रही है। यहां बड़े पैमाने पर पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग की भी अच्छी आबादी है।
बीजेपी के आने से हिन्दू और मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण होना तय हैं। क्योंकि, बीजेपी अब नीतीश कुमार से अलग होने के बाद से खुलकर हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है। कुछ दिन पहले ही अमित शाह ने पूर्णिमा की रैली में नीतीश कुमार पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाया था। ओवैसी भी तेजस्वी और नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं। जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
वहीं, महागठबंधन को उपेंद्र कुशवाहा, आरसीपी सिंह और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी चुनौतियां मिल रही हैं। उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से अलग होकर लव कुश यात्रा निकाल रहे है। बुधवार को ही कुशवाहा ने नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा से अपनी लवकुश यात्रा की शुरुआत किये।
आरसीपी सिंह बिहार बदलो यात्रा के जरिये लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वहीं, प्रशांत किशोर भी बिहार के लोगों को जागरूक करने के नाम पर जनसुराज यात्रा निकाल रहे हैं और नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोल रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि पदयात्राओं के जरिये किसकी राजनीति चमकती है। हालांकि, राहुल यात्रा निकालकर कुछ नहीं कर पाए.अब ओवैसी क्या करेंगे यह देखना अभी बाकी है।
ये भी पढ़ें