राउत के डेथ वारंट पर भुजबल का पलटवार

राउत के डेथ वारंट पर भुजबल का पलटवार

"The country's economy will not be strong without industrialists" - Sanjay Raut

शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे की पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके राज्यसभा सांसद संजय राउत रोजाना बीजेपी की आलोचना करते रहते हैं। संजय राउत की ताजा भविष्यवाणी है कि शिंदे-फडणवीस सरकार का डेथ वारंट जारी हो चुका है, यह सरकार 15 से 20 दिनों में गिर जाएगी। सिर्फ तारीख का ऐलान होना बाकी है। ठाकरे ने भी इसी तरह के दावे पुष्टि की है। लेकिन एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने इन दोनों के दावे का खंडन किया है।

संजय राउत का यह बयान शायद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रख कर दिया गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट का शिवसेना विवाद पर फैसला कभी भी आ सकता है। ऐसे में इस बात की भी आशंका है कि कोर्ट सीएम एकनाथ शिंदे समेत उनके समर्थक 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दे। पर ऐसा लगता नहीं अगर सीएम एकनाथ शिंदे की विधायिकी रद्द कर दी जाती है तो उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है, क्यूंकी सरकार के पास नंबर्स फिर भी हैं। वह अगले छह महीने में उप चुनाव लड़ कर फिर से चुने जा सकते हैं।

बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी। इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई थी. शिंदे ने शिवसेना के बागी विधायकों के साथ बीजेपी के समर्थन में सरकार बनाई। इसके बाद से उद्धव ठाकरे गुट के कई नेता शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं। वहीं लंबी उठापटक के बाद शिवसेना के नाम और पार्टी के सिंबल पर हक को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच तनातनी चल रही थी। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का नाम और शिवसेना का प्रतीक तीर कमान सौंप दिया था। जिसके बाद से ही विपक्ष की तरफ से शिंदे फड़नवीस को टारगेट किया जा रहा है।

वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने परिवार के साथ अपने गांव सतारा के लिए रवाना हो गए हैं। फिलहाल तो यह तीन दिनों का दौरा है। लेकिन बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री के इस दौरे की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। कहा जा है कि वो राज्य के राजनीतिक माहौल से खिन्न हैं। क्यूंकी एकनाथ शिंदे बिना रुके और थके काम करने वाली शख्सियत हैं। ऐसे में उन्हें छुट्टी लेने और रिलैक्स होने का मन कर रहा है, यह अपने आप में एक खबर है। वहीं कभी छुट्टी ना लेने वाले मुख्यमंत्री को अगर गांव जाने का दिल करे तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो होगी ही।

वहीं एनसीपी पार्टी के नेता शरद पवार ने महाविकास अघाड़ी पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। माविआ को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त है। इसलिए उद्धव ठाकरे को शायद दृढ़ विश्वास है कि ये तीनों भाजपा को आसानी से हरा सकते हैं। लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि पवार के भरोसे भाजपा के खिलाफ वज्रमूठ करने वाले ठाकरे जब पीछे मुड़कर देखेंगे तो पता चलेगा कि उनके पीछे बैठे लोग अचानक गायब हो गए हैं।

एनसीपी प्रमुख शरद पवार और छगन भुजबल के हालिया बयानों पर नजर डालें तो आप इस बात के कायल हो जाएंगे। महाविकास अघाड़ी की एक और जोरदार बैठक कल रविवार को पचोरा में हुई. खेड़, मालेगांव, छत्रपति संभाजी नगर, नागपुर और अब पचोरा। मुंबई में भी एक मई को वज्रमूठ सभा है। माविआ हर सभा में वज्रमूठ उठाने और बैठक में भाजपा को अपनी ताकत दिखाते है वहीं सभा खत्म होने के बाद तीनों की आपस में ही एक दूसरे के विरोध में वज्रमूठ उठाने की तस्वीर सामने आती है। बैठक के दूसरे दिन माविया समर्थक शरद पवार के बयान ने ठाकरे के दिमाग को झकझोर कर रख दिया।

पवार ने कहा है कि 2024 में साथ मिलकर लड़ने की इच्छा है, लेकिन केवल इच्छा ही काफी नहीं है. आप कैसे बता सकते हैं कि आप लड़ेंगे या नहीं? हालांकि सीट बंटवारे की चर्चा अभी शुरू नहीं हुई है। केवल पवार ही जानते हैं कि दुनिया में परिवर्तन ही स्थिरभाव है। आज है, कल होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह बात पवार जैसा संत ही कह सकता है।

पवार की दूरदृष्टि शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे को चक्कर में डाल रही है। छगन भुजबल ने पवार पर हमला बोला है। 16 विधायक अयोग्य हुए तो सरकार कैसे गिरेगी, बहुत जल्द मुख्यमंत्री बदलेगा। शिंदे-फडणवीस सरकार के पास 165 विधायक हैं, अगर 16 विधायक भी चले जाएं तो सरकार नहीं गिरेगी। यह भुजबल का बताया गणित है। जो इन्हें पता है यह बात यदि उद्धव ठाकरे और राउत नहीं जानते तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि इन दोनों ने ही बीजेपी के खिलाफ नफरत की पट्टी आंखों पर बांध रखी है। इसलिए यदि इन्हें समझता भी है तो भी समझना नहीं चाहते।

माविया की साल 2019 के चुनाव के बाद अचानक अस्तित्व में आई। उसी तरह साल 2024 के चुनाव से पहले यह अचानक भंग भी हो सकती है। क्योंकि माविआ में आपस में ही मतभेद जारी है। शायद माविया के नेताओं को अब विश्वास नहीं रहा कि मविया के जरिए दोबारा सत्ता हासिल की जा सकती है। हालांकि उद्धव ठाकरे की सच्ची इच्छा है कि महाविकास अघाड़ी जीवित रहे। लेकिन अजित पवार को माविया को छोड़कर बाहर आने के लिए संजय राउत ने जोर लगाया है। उनके भतीजों ने राज्य में घोटाले किए हैं, यह उनके ताजे बयान में कहा गया है। यहाँ जिस भतीजे की चर्चा की गई वह है शरद पवार के भतीजी अजित पवार।

बता दें कि अजित पवार के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों के बीच उनके हर एक बयान पर सभी की नजरें हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की है। उनका कहना है कि बीजेपी को साल 2014 और 2019 में केवल पीएम मोदी की वजह से ही जीत मिली थी। वहीं पुणे के पिंपरी चिंचवाड़ में मराठी अखबार सकाल के कार्यक्रम में कहा कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा है। अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से जो मुमकिन नहीं हुआ वो नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया। पवार ने आगे कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन अब उनके (मोदी) बाद कौन का सवाल जब आता है तो कोई दूसरा नाम नजर नहीं आ रहा है।

वहीं जिस ईवीएम को लेकर विपक्षी दल अक्सर सवाल खड़े करते रहे हैं, ऐसे में अजीत पवार ने कहा है कि उन्हें ईवीएम में कोई खराबी नहीं लगती। अजीत पवार ने कहा कि मुझे व्यक्तिगत रूप से ईवीएम पर पूरा भरोसा है। अगर ईवीएम खराब होती तो छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें नहीं होतीं। हमारे यहां ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। पीएम मोदी को लेकर पवार ने कहा था कि पीएम मोदी के नाम पर बीजेपी 2014 में सत्ता में आई और इसके बाद कई दूर-दराज के इलाकों में पहुंच गई। सत्ता में आने के बाद उनके खिलाफ कई बयान दिए गए लेकिन इससे पीएम मोदी और लोकप्रिय हो गए और उनके नेतृत्व में बीजेपी ने विभिन्न राज्यों में जीत हासिल की और 2019 में भी उन्होंने सत्ता हासिल की।” इन सभी बयानों के बाद विपक्ष को भारी झटका लगा था। हालांकि अजित पवार स्वयं सामने आकर बीजेपी में शामिल होने की अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा था कि वो हमेशा एनसीपी में ही रहेंगे।

नाना पटोले भी अजित पवार को कोसते नजर आ रहे हैं। इधर दादा ने मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताई तो नाना ने याद दिलाया कि मुख्यमंत्री बनने के लिए 145 विधायक लगते हैं। ये तीनों पार्टियां एक-दूसरे का विरोध करने के बाद भी इस आशावाद के कारण एकजुट हैं कि साथ रहेंगे तो सत्ता हासिल करेंगे। कसबा की जीत से उनका आशा और मजबूत हुई है। लेकिन राजनीति के समीकरण और नियम भी बदल रहे हैं। शिवसेना बिना किसी की तवज्जो के टूट गई, फिर से वही स्थिति पैदा हो सकती है।

बारामती सांसद और पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने दो भूकंपों की भविष्यवाणी की है, जिनमें से एक भूकंप उनकी ही अपनी पार्टी में हो सकता है। पवार ने प्रतिक्रिया दी है कि अगर किसी की रणनीति हिंसा की राजनीति करने की है तो उसे करने दीजिए, इस संबंध में हम अपनी भूमिका लें, यह कहना उचित नहीं है कि वह भूमिका आज क्या होगी। पवार की जिंदगी बिखर गई थी। पवार ही हैं जो आज अपनी पार्टी के बंटवारे को लेकर इतना कड़ा रुख अपना रहे हैं. क्योंकि जो हो रहा है वह उनके नियंत्रण से बाहर है। डेथ वारंट निकला है, लेकिन यह किसका है? शिंदे-फडणवीस सरकार का डेथ वारंट फिलहाल अभी नहीं निकला है भुजबल ने ऐसा इशारा कर दिया है।

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