क्या सिंह देव के बाद गहलोत और पायलट को साध पाएगी कांग्रेस? 

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया है।  इसी तर्ज पर कांग्रेस राजस्थान में भी गुटबाजी को रोकने की कोशिश करेगी। लेकिन, क्या सचिन पायलट मान जाएंगे? क्योंकि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते है ,उपमुख्यमंत्री नहीं।

क्या सिंह देव के बाद गहलोत और पायलट को साध पाएगी कांग्रेस? 

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पांच माह पहले टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया है। टीएस सिंहदेव कांग्रेस के कद्द्वार नेता हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस ने सत्ता मिलने के साढ़े चार साल बाद यह कदम क्यों उठाया। क्या इससे पार्टी में जारी अंतःकलह रुक जाएगी। बताया जा रहा है कि इसी तर्ज पर कांग्रेस राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले यहां की गुटबाजी को रोकने की कोशिश करेगी। लेकिन, क्या सचिन पायलट मान जाएंगे? क्योंकि सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके है। अब वे मुख्यमंत्री बनना चाहते है। टीएस सिंहदेव को शुरुआत में ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन बाद में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के केवल पांच माह ही बचे हैं। लेकिन, इससे पहले ही कांग्रेस ने टीएस सिंह देव को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी में एकजुटा का संदेश देने की कोशिश की है। टीएस सिंहदेव कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। छतीसगढ़ के सरगुजा संभाग में उनकी अच्छी पकड़ है। यहां 14 विधानसभा सीटें हैं। ऐसे में सवाल यह है कि केवल कांग्रेस ने अंतर्कलह रोकने के लिए यह कदम नहीं उठाया है या बात कुछ और है।कांग्रेस ने टीएस सिंह देव को साढ़े चार साल तक लटकाये रखा। मगर अचानक विधानसभा चुनाव के पांच माह पहले ही उन्हें टीएस सिंह देव की क्यों याद आई। बताया जाता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में ढाई ढाई साल का फार्मूला तय किया था। जिसमें ढाई साल भूपेश बघेल सत्ता संभालेंगे और उनके बाद ढाई साल टीएस सिंह देव मुख्यमंत्री रहेंगे। लेकिन सत्ता मिलने के बाद भूपेश बघेल ने सीएम की कुर्सी से इंकार कर दिया। जिसके बाद टीएस सिंह देव ने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से छत्तीसगढ़  कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर थी।

कहा जा रहा है कि पिछले दिनों सरगुजा संभाग में कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमें टीएस सिंह देव ने कांग्रेस हाईकमान के रुख पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि कई राजनीति दलों ने मुझे संपर्क किया था, जिसमें बीजेपी भी शामिल है। लेकिन उनके प्रस्ताव को नहीं माना. इस दौरान उन्होंने खुले मंच से यह भी कहा था कि छतीसगढ़ में ढाई ढाई साल मुख्यमंत्री बनाये जाने की बात हुई थी। जो सिर्फ बताया जा रहा है कि टीएस सिंह ने इस दौरान यह भी कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में इस संभाग की सभी सीटें जीतने पर संशय जताया था।

दरअसल, सोशल मीडिया उनका एक बयान वायरल हुआ था जिसमें टीएस सिंह देव यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि 2018 में कांग्रेस सरगुजा संभाग में 14 में से 14 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार संशय लग रहा है। इतना ही नहीं सिंह देव ने आगामी विधानसभा चुनाव भी लड़ने से इंकार किया था। माना जा रहा है कि सिंह देव के इस बयान को देखकर ही कांग्रेस ने सिंह देव को आनफान में डिप्टी सीएम बनाया। सवाल यह भी बनता है कि आखिर कांग्रेस पार्टी में बगावत होने क्यों देती है। क्या जो गांधी परिवार के सामने हाजिरी लगाता उसे ही मौक़ा मिलता है,  क्या ईमानदारी से पार्टी में काम करने वालों की कांग्रेस में उचित सम्मान नहीं मिलता है। एक क्या सही बात है। सिंह देव तीन बार से विधायक है। कर्नाटक का संदर्भ इसका उदाहरण, जिस तरह से डीके शिवकुमार की अनदेखी कर सिद्धारमैया को सत्ता की कमान सौंपी गई। यह अपने आप में चौकाने वाला है। शिवकुमार मुख्यमंत्री की इच्छा जाहिर कर चुके थे। लेकिन कांग्रेस ने समीकरण और आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया।

अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ही तरह राजस्थान की गुटबाजी को सुलझाने में लगी हुई है। लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा यह कहना मुश्किल है। क्योंकि दोनों राज्यों में परिस्थियाँ  अलग अलग थी। कर्नाटक में शिवकुमार और छत्तीसगढ़ में सिंह देव को मना लिया गया ,और उन्हें डिप्टी सीएम का पद दे दिया गया। जो इससे पहले उपमुख्यमंत्री नहीं थे। केवल मंत्री पद संभाले थे। अब अगर सचिन पायलट की बात करें तो राजस्थान की परिस्थिति दोनों राज्यों से अलग। यहां सचिन पायलट मुख्यमंत्री  बनाये जाने की मांग कर रहे है। इतना ही नहीं उन्होंने  गहलोत और उनकी सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोल चुके। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उन्हें समझा बुझाकर दोबारा डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है। हालांकि इस पर पायलट राजी नहीं होंगे।

वहीं यह भी कहा जा रहा है कि पायलट को राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस वर्किंग कमेटी का मेंबर बनाया जा सकता है या यह ऑफर पायलट को दिया जा रहा है। इसके साथ ही उन्हें विधानसभा चुनाव कमेटी का अध्यक्ष भी बनाने पर चर्चा चल रही है। साथ ही एक अन्य विकल्प के तौर पर उन्हें प्रदेशाध्यक्ष और उनके किसी करीबी को डिप्टी सीएम बनाया जाने पर भी बात हो रही है। लेकिन गहलोत के समर्थक इसका विरोध कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इस फार्मूले को लागू करने के लिए कैबिनेट में फेरबदल करना होगा।

एक संभावना भी जताई जा रही है,जिसमें पायलट को राजस्थान का सीएम फेस बनाकर चुनाव में उतरा जाए। हालांकि,  मात्र ये सिर्फ चर्चाएं लेकिन इस पर अभी कुछ तय नहीं किया गया है। सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या पायलट इन विकल्पों पर राजी हो जाएंगे। अगर उन्हें सीएम फेस नहीं बनाया जाता है तो साफ है कि इस बार का भी विधानसभा चुनाव गहलोत के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अब राजस्थान पर सभी की निगाहें लगी हुई है। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि कांग्रेस राजस्थान में गहलोत और पायलट में कैसे सुलह कराती है।

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