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कोरोना काल: भारत में लाकडाउन समस्या का समाधान नहीं

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कोरोना की वजह से 24 मार्च 2020 में लगे लाकडाउन से शहर से लेकर गांव अचानक सहम गया। अब तक महामारी की पहली लहर के कहर से अभी उबरे नहीं थे कि दूसरी ने धावा बोल दिया। दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता फिर से बढ़ा दी है। निवेश बैंक अपने कारोबार वृद्धि की संभावनाओं को कम करके आंक रहे हैं। दूसरी लहर ऐसे समय में आई है जब अर्थव्यवस्था पिछले साल महामारी के प्रसार को रोकने के लिए की गई लाकडाउन के असर से उबर रही थी। अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार के फरवरी में लगाए जाने वाले कयास पर विराम न लगे,यह एक बड़ी चुनौती फिर से खड़ी हो गई है। सर्वे एजेंसी मूडीज़ ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा,“ कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर ने पटरी पर तेजी से लौटती भारत की अर्थव्यवस्था के अनुमानों पर संकट खड़ा कर दिया है।

महामारी को रोकने के लिए तालाबंदी से आर्थिक गतिविधियों पर गहरा असर पड़ेगा। आरबीआई की मार्च में आई ‘कंज्यूमर कॉफिंडेंस’ सर्वे रिपोर्ट मुताबिक,“फरवरी के मुकाबले अप्रैल में देश में खुदरा बिक्री और मनोरंजन गतिविधियां 25 फीसदी तक कम हो गई हैं”। शॉपिंग सेंटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक कोरोना से पहले मासिक 15,000 करोड़ रुपए का कारोबार महामारी की दूसरी लहर में स्थानीय स्तर की आंशिक तालाबंदी से ही करीब 50 प्रतिशत गिर गया है। केंद्र सरकार ने 2020 में महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए 27 लाख करोड़ रुपए के ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज़ में विनिर्माण और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए 1.57 हजार करोड़ रुपए के उत्पादन आधारित प्रोत्साहन स्कीम की घोषणा की जिसमें सबसे अधिक 57,042 करोड़ रुपए ऑटोमोबाइल और इसके पुर्जा के उद्योग के लिए हैं।

कोरोना की पहली लहर के असर से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कारोबारियों को दिए गए उत्पादन प्रोत्साहन पैकेज़ का दूसरी लहर में फिर से तालाबंदी के हालात में कारगर होना मुश्किल होगा। प्रोत्साहन का पुरस्कार पुरुषार्थ करने पर ही मिलेगा। जैसे कोरोना की जंग से हमारी जान बचाने को हमारे कर्मयोद्धा डाक्टर,नर्स,लैब तकनीशियन और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के कर्मयोग से स्वास्थ्य सेवाएं अनवरत घुमती घड़ी की सुईयों की तर्ज पर जारी हैं वैसे ही जहान के लिए अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर बनाए रखने को औद्योगिक उत्पादन से आखिर उपभोक्ता तक 24 घंटे पहुंच बने रहना जरुरी है मौजूदा आर्थिक हालात में पूर्ण तालाबंदी तार्किक नहीं है।

2020 में देशभर में 25 मार्च से 31 मई के दौरान चार चरणों की 68 दिन की पूर्ण तालाबंदी से अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा था। असंख्य कारोबार की तालाबंदी से बेरोजगार हुए लाखों लोग अभी तक अर्थव्यस्था की मुख्यधारा में नहीं लौट पाए हैं। नवम्बर 2020 से फरवरी 2021 दौरान आंशिक रुप से संभली अर्थव्यवस्था को पूर्ण तालाबंदी की पुनावर्ति से संभलने का वक्त नहीं मिल पाएगा। देशभर के ज्यादातर राज्यों में रात 9 बजे के बाद की तालाबंदी ने होटल,रेस्तरां,क्लब,सिनेमा जैसे कारोबारों को फिर से जकड़ दिया है, इसे और बढ़ा देना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। एक बड़ी वजह यह भी कि पूर्ण तालाबंदी से केंद्र व राज्य सरकारें फिलहाल हिचक रही हैं। सप्ताहांत की तालाबंदी भी पुख्ता हल नहीं है,जैसे शनिवार और रविवार की तालाबंदी में अटके लोगों की भीड़ सोमवार को बाहर निकलेगी जिससे संक्रमण की संभावना भी बढ़ेगी।

खुद तय कर ले कि लंबी तालाबंदी मंजूर है या स्वंय अनुशासित होकर कोरोना फतेह करना है। बचाव के लिए केंद्र सरकार ने एक मई से 18 वर्ष व इससे अधिक आयु वर्ग के टीकाकरण का फैसला कर बहुत बड़े वर्ग को कोरोना सुरक्षा कवच की एक बड़ी पहल की है। इधर राज्य सरकारों को जहां टैस्ट और टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ा इसमें तेजी लानी होगी वहीं स्वास्थ्य तंत्र का विस्तार स्कूल,कॉलेज,यूनिवर्सिटीज परिसरों मे करना चाहिए। इंडस्ट्रियल आक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति घटाकर इसे जीवन रक्षक आक्सीजन की ओर केंद्रित करना होगा। छोटे उद्यमी व बड़ी कंपनियां अपने स्तर पर जहां सेनेटाइजे़शन,मॉस्क,देह दूरी आदि नियमों का सख्ती से पालन करें वहीं श्रमिकों और कर्मचारियों के उपचार और टीकाकरण से उनके स्वास्थ्य के प्रति सजगता का माहौल भी बहाल करना होगा।

 

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