मैं हमेशा लोगों की दुनिया में रहता हूं। अच्छे और बुरे लोगों से मिलता रहता हूं। उनमें कुछ 24 कैरेट सोने जैसे लोग मिल जाते हैं, उनको स्वयं से लगातार जोड़ता रहता हूं। हाल ही में मैं राजनीति से जुड़े हुए एक व्यक्ति के संपर्क में आया। पहली ही मुलाकात में मेरे मन में उनके प्रति थोड़ी जिज्ञासा पैदा हुई, क्योंकि उनका व्यवहार, तौर तरीके और सोचने का तरीका बिल्कुल अलग था। आज मैं उन्हीं के बारे में लिख रहा हूं, हमारे मित्र डॉ. अभिषेक वर्मा के बारे में।
हम चौबीसों घंटे काम करने वाले लोग हैं, इसलिए लोगों से मुलाकात भी काम के सिलसिले में ही होती है। डॉ. अभिषेक से भी मुलाकात ऐसे ही हुई थी। मेरे मित्र, ज्योतिष शास्त्र के गहरे जानकार संदीप नेने गुरुजी ने उन्हें मेरा नाम सुझाया था। वे एक महत्वपूर्ण काम के सिलसिले में मुझसे मिले। पहली मुलाकात से ही हमारे बीच खुलकर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया।
डॉ. अभिषेक की पॉलिटिकल विरासत बहुत बड़ी और पुरानी है। उनके पिता श्रीकांत वर्मा कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, 12 साल तक सांसद रहे और कांग्रेस के महासचिव के रूप में भी उन्होंने काम किया था। उन्होंने एक बार वीर सावरकर और उनके त्याग व बलिदान की प्रशंसा में एक लेख लिखा। इस लेख के परिणामस्वरूप 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें तलब किया और कांग्रेस पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। उनके पिता श्रीकांत वर्मा जी प्रसिद्ध कवि और लेखक भी थे। उनकी माता वीणा वर्मा भी कांग्रेस की नेता थीं। वह 18 साल तक सांसद रहीं और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं। मुझे इस बात पर आश्चर्य होता है कि डॉ. अभिषेक ने अपने करियर की शुरुआत राजनीति में न करके कॉर्पोरेट जगत से कैसे की? उनकी पत्नी अंका वर्मा पूर्व मिस यूनिवर्स रोमानिया रह चुकी हैं और वर्तमान में भारत में सक्रिय समाजसेवी हैं, साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय उद्योगों से भी जुड़ी हुई हैं।
हालांकि पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की है, लेकिन उनका परिवार और स्वयं डॉ. अभिषेक कट्टर सनातनी हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को मानने वाले हैं। राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी नृत्य गोपाल दास महाराज ने उन्हें ‘सनातन योद्धा’ की उपाधि दी है। डॉ. अभिषेक मथुरा स्थित दीनदयाल उपाध्याय गौशाला इंस्टिट्यूट और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अनेक संगठनों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं, जिनके माध्यम से वे हिंदुत्व और सनातन धर्म के प्रसार का कार्य न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी कर रहे हैं। उनकी दृढ़ धारणा है कि सनातन धर्म का प्रसार दुनिया भर में होना चाहिए।
सनातन और न्याय के पक्ष में खड़े होने की इसी प्रवृत्ति का परिणाम था कि 2012 में उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के एक मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ गवाही देने के लिए आगे आकर सिखों के पक्ष में गवाह बनने का साहसिक निर्णय लिया। टाइटलर पर आरोप था कि उन्होंने दिल्ली में कई सिखों की हत्या करने वाली भीड़ का नेतृत्व किया था। इस कदम के बाद 2012 में, जब कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती थी कि वे टाइटलर के खिलाफ गवाही दें, उसके इशारे पर बदले की भावना से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके खिलाफ अनेक झूठे मामले लादे गए। वे वर्षों तक अदालतों में लड़ते रहे, हिरासत भी झेलनी पड़ी, लेकिन अंततः करीब दस साल की कानूनी लड़ाई के बाद वे इन सभी मामलों से बाइज्जत बरी हुए और सच सामने आ गया।
कॉर्पोरेट जगत में डॉ. अभिषेक वर्मा की पहचान अरबपति उद्योगपति के रूप में है। लंबे समय तक उनका संबंध रक्षा उद्योग से रहा है। वर्ष 1997 में उन्हें मात्र 29 वर्ष की उम्र में देश के सबसे युवा अरबपति के रूप में पहचान मिली और नवंबर 1997 के अंक में वे इंडिया टुडे पत्रिका के कवर पेज पर छपे। उनकी कई नामचीन कंपनियों में निवेश है। हालांकि, उनका झुकाव समाज सेवा और राजनीति की ओर था। 30 जनवरी 2025 को उन्होंने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना पार्टी प्रमुख एकनाथ शिंदे की उपस्थिति में शिवसेना में प्रवेश किया। पार्टी ने उन्हें रालोआ (NDA) के मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक के महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया है।
राष्ट्रीय स्तर पर शिवसेना पार्टी का विस्तार करना, साथ ही रालोआ के साथ समन्वय बनाए रखने की जिम्मेदारी उन पर है। वह अब राष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से दिल्ली में, पार्टी का काम देख रहे हैं। शिवसेना प्रमुख बाळासाहेब ठाकरे की कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा और एकनाथ शिंदे के विकास कार्यों से प्रेरित होकर उन्होंने शिवसेना में प्रवेश किया। उनके पिता श्रीकांत वर्मा जी कवि और लेखक होने के नाते बाळासाहेब ठाकरे के काफी निकट थे। जब भी वे मुंबई आते, तो अक्सर अपने पुत्र अभिषेक को साथ लेकर बाळासाहेब से मुलाकात करने जाया करते थे। इन्हीं सत्संगों और मुलाकातों के दौरान बचपन से ही डॉ. अभिषेक के मन में हिंदुत्व के प्रति गहरा आकर्षण और सम्मान पैदा हुआ और आगे चलकर यही प्रेरणा उन्हें शिवसेना से जुड़ने की दिशा में ले गई।
किसी भी क्षेत्र में सफलता चाहिए तो उसके लिए प्रबंधन कौशल आवश्यक होता है। इसके बिना कहीं भी सफलता संभव नहीं है। डॉ. अभिषेक में इसकी बिल्कुल कमी नहीं है। पहले लक्ष्य निर्धारित करना, रोडमैप बनाना और उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ना, यही उनके काम करने का तरीका है। राजनीति में इस तरह काम करने वालों की कमी है। लेकिन जिन्होंने इस कार्यप्रणाली को अपनाया है, उन्होंने बड़ी छलांग लगाई है, इसके उदाहरण हैं। हमारे इस मित्र के लिए राजनीतिक प्रवेश भले ही नया हो, लेकिन राजनीति का क्षेत्र नया नहीं है। उन्होंने राजनीति को बचपन से देखा है। इसलिए राजनीति की बारीकियों से वे वाकिफ हैं। लोगों को जोड़ने की उनकी क्षमता भी अद्भुत है। एक बार मिला हुआ व्यक्ति उन्हें याद रहता है। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि वे दोस्तों के लिए भरोसेमंद और सच्चे साथी हैं, और जो उनके प्रतिपक्ष में खड़ा हो जाए, उसके लिए बेहद कठोर और अडिग प्रतिद्वंद्वी साबित होते हैं। उनके पास लोगों को आकर्षित करने वाला एक जबरदस्त चुंबक है। डॉ. अभिषेक की स्मरण शक्ति मानो कंप्यूटर जैसी है, जो बिजली की गति से सूचनाओं को पकड़ लेती है। वे दशकों पुरानी बातें तक याद रखते हैं, यहां तक कि चालीस वर्ष पहले जिन लोगों से मिले, वे उस समय कौन से कपड़े पहने हुए थे, यह भी उन्हें साफ याद रहता है। किसी क्षेत्र में उतरने के बाद उसमें मजबूती से आगे बढ़ने की उनकी क्षमता है। इसलिए मुझे उनके राजनीति में सफल होने में कोई संदेह नहीं है।
अभी तो उन्होंने बस शुरुआत की है। राजनीति में कई लोग पैसा कमाने के लिए आते हैं, वहीं से उनका पतन शुरू हो जाता है। डॉ. अभिषेक ने पहले उद्योग क्षेत्र में सफलता हासिल की, अरबों नहीं खरबों कमाया!! इसलिए अब उन्हें केवल देश और समाज के लिए कुछ ठोस करना है। आने वाले समय में अगर राष्ट्रीय स्तर पर उनका नाम सुनने को मिले तो ज्यादा आश्चर्य मत करना। हमारे जैसे पक्के दोस्तों का मजबूत साथ और ढेर सारी शुभकामनाएं उनके साथ होंगी ही।



