“इंदिरा गांधी और कोर्ट के टकराव के चलते लगा आपातकाल”, उसकी डरावनी यादें!

भारत में आपातकाल असल में देश के अंदर की तनाव की वजह से नहीं किंतु कांग्रेस पार्टी की नेता इंदिरा गांधी पर कोर्ट के तनाव के चलते लगाया गया। यह वही दौर था, जब भारत के नागरिकों के मूलभूत अधिकार उनसे छीन लिए गए।

“इंदिरा गांधी और कोर्ट के टकराव के चलते लगा आपातकाल”, उसकी डरावनी यादें!

"Emergency imposed due to clash between Indira Gandhi and Court", her horrifying memories!

12 जून 1975 जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस जगमोहन लाल ने इंदिरा गांधी को रायबरेली की चुनाव प्रक्रिया में धांधली करने में दोषी करार देते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया| इसी के साथ ६ वर्षों तक इंदिरा गांधी को किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। जिससे वो राज्यसभा में भी शामिल नहीं हो पाती|इसके बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटने के सिवा सिर्फ आपातकाल लगाने का रास्ता दिखाई देने लगा। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की ।

बता दें कि भारत में आपातकाल असल में देश के अंदर की तनाव की वजह से नहीं किंतु कांग्रेस पार्टी की नेता इंदिरा गांधी पर कोर्ट के तनाव के चलते लगाया गया। यह वही दौर था, जब भारत के नागरिकों के मूलभूत अधिकार उनसे छीन लिए गए। गुस्साई जनता सत्याग्रह, आंदोलन, और मोर्चो के साथ सड़क पर उतरी । MISA कायदे का दुर्व्यहार करते हुए

विपक्ष के सभी बड़े नेतओं को जेल में ठूस दिया गया, जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह, लाल कृष्ण अडवाणी, अरुण जेटली, गायत्री देवी जैसे बड़े नाम शामिल थे।

बढ़ते जनाक्रोश से घबराई सरकार ने आम आंदोलनकारियों को भेड बकरी कि तरह जेलों में भर दिया गया। देश से 1,40,000 से अधिक लोगों को MISA के तहत बिना कोर्ट ट्रायल के बंधक बना कर रख दिया गया। मुख्य रूप से इनमें इंदिरा गांधी के विरोधी, लेखक, पत्रकार, वकील और नेता शामिल थे। इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति द्वेष भाव को पूरा करने के लिए कई कार्यकर्ताओं, प्रचारकों और अधिकारियों को जेलों में भर दिया गया।

जेलों में उनके साथ अमानुषता, क्रूरता दिखाई गई। कइयों को बर्फ के सिल्ली पर रखकर मारा करते, कइयों को टायरों में भरकर पिटाई की जाती थी। अपने एक निजी इंटरव्यू में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने आपातकाल के अनुभवों का जिक्र किया है, जिसमें वे बताते है की उन्हें उनके पिता के अंतिम संस्कार के लिए तक जाने नहीं दिया गया। वास्तविकता से अपराधी कितना भी जघन्य हो उसे अपने परिजनों के अंतिम संस्कार में शामिल होने का अधिकार कोर्ट भी देती है।

सत्ता के नशे में चूर इंदिरा गांधी की सरकार ने राजनाथ सिंह का यह अधिकार भी उनसे छीन लिया। जिस किसी ने इंदिरा गांधी को चुनौती दी उसे जेल में भर दिया गया। उसे शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। यातनाएं इतनी भयंकर थी कि बड़ी संख्या में जो लोग नहीं सह पाए वे मर गए।

सीलमपुर गांव के नरेश शर्मा ने बताया कि आपातकाल के समय उनकी उम्र करीब 14 वर्ष की थी| वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। उनका स्कूल हिंदू शिक्षा समिति द्वारा संचालित था उन स्कूलों को बंद करा दिया गया, जो हिन्दू शिक्षा समिति द्वारा संचालित थे। जिसके खिलाफ नरेश शर्मा ने सत्याग्रह करके विरोध किया था| फिर गिरफ्तार करके हमें शाहदरा की बच्चा जेल में रखा गया| बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया| उन्होंने आगे बताया उनकी आँखों के सामने ही दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महामंत्री हेमंत बिश्नोई को नाक से नमक का पानी चढ़ाया गया। भयंकर यातनाएं दी गई।

पूरन लाल गंगवार जी ने अपने आपातकाल का अनुभव साझा करते हुए माध्यमों को बताया की, आपातकाल के उस भीषण दौर को वे आज भी भुला नहीं पाए है, जनवरी 1976 में उन्हें भारत सुरक्षा नियम की धारा 36/43 तहत गिरफ्तार करते हुए मुकदमा दर्ज किया गया। जिसके बाद पीलीभीत कोतवाली में लगातार 6 घंटे तक उनकी पिटाई की गई। जिसके बाद वे 8 महीने तक जेल में रहे। कई प्रदर्शनकारियों ने बताया है कि यह यातनाऐं आजादी के लड़ाई समय अंग्रेज हुकूमत देती थी वैसी या उससे बढ़कर उन्हें आपातकाल के दौरान सहनी पड़ी।

मौजूदा सरकार पर कांग्रेस जब संविधान बदलने के आरोप लगाती है तब कांग्रेस को आपातकल के दौरान इंदिरा गांधी ने विपक्ष को जेल में डालकर संविधान को किस प्रकार तोड़ा था यह याद दिलाना लाजमी बन जाता है। संसद खाली होने के बावजूद आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी 42वी अमेंडमेंट ले आयी, जिसे संविधान की मूल आत्मा मानी गई उस प्रस्तावना में बदलाव लाकर संविधान का स्वरूप बदल दिया गया।

दरसल इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी इन दो शब्दों को संविधान में घुसाया, जिसके परिणाम आज भी हम देशभर में होते देख सकते है। असल में जो सेक्युलर शब्द का अर्थ पंथनिरपेक्ष हो सकता है, परन्तु अपनी कुनीतियों को बढ़ावा देने हेतु इसे धर्मनिरपेक्ष लिखा गया। इसी 42वें अमेंडमेंट से राष्ट्रपति के पद को केवल कैबिनट के सलाह पर हस्ताक्षर करने वाले रबर स्टैम्प बना कर रख दिया।

इसी दौर में पत्रकारों को मीडिया सेंसरशिप के नाम पर उनके कलम पर लगाम लगवाने और इंदिरा गांधी के हाथ में देना बाध्य किया गया। इसी के साथ इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर कब्ज़ा कर लिया। इस सामाजिक सेवा का उपयोग इंदिरा गांधी के प्रोपोगेंडे को फ़ैलाने और इंदिरा गांधी के बताये नरेटिव समाज में स्थापित करने में किया गया।

इसी के साथ जनसंख्या को कम करने के लिए एक नई पॉलिसी के तहत लोगों की जबरन नसबंदी करना शुरू कर दिया। जिसकी कमान इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र संजय गांधी को सौंपी थी। इसी परिप्रेक्ष्य में एक दिन उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा जबरन 6000 नसबंदी के मामले सामने आये। आधिकारिक आंकड़ों की माने तो 60 लाख पुरषों कि जबरन नसबंदी करवाई गयी। यह ऑपरेशन ठीक से नहीं हुए थे,जिस कारण कई पुरषों की मौत हुई। यह समाज के लोगों के दिल और दिमाग को आहत करने वाली घटना साबित हुई।

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