भारत को जयचंदों से ज्यादा खतरा!

विपक्ष का मोदी सरकार पर निशाना

भारत को जयचंदों से ज्यादा खतरा!

एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है कुत्ते की दुम चाहे कितनी भी नली में डाल लो फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है। चीन में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। भारतीय क्षेत्र पर आक्रमण करने की यह उनकी पुरानी चाल है। दूसरे देशों की जमीन पर कब्जा करने का चीन का तरीका अब भी बना हुआ है। 1962 में उन्होंने इसी तरह भारत के एक टुकड़े को निगल लिया था। चीनी सैनिकों ने फिर से वहीं हरकत करते हुए अरुणाचल प्रदेश के तवांग में अपना असली चेहरा दिखाया है। भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच झड़प की यह घटना सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। लेकिन इस बार भी हमारे जवानों ने उन्हें लाठियों से पीटा। पिछली बार गलवान घाटी में घुसपैठ के दौरान चीनी सैनिकों को भारतीय जवानों ने ढेर कर दिया था। लेकिन लगता है कि चीन ने इससे कोई सबक नहीं सीखा है। मृत्यु के बिना विजय नहीं होती। इस बार भी चीनी सैनिकों को भारतीय जवानों ने जमकर पीटा। गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद चीन के खिलाफ भारत की शिकायतें सामने आईं। उसके बाद भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए चीन को जवाब दिया। फिर भी चीन सुधरने का नाम नहीं लेता है।  

यहां भारत में जब चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प होती है तो मोदी सरकार के विरोधियों का जोश बढ़ जाता है। महा विकास आघाडी सरकार के नेता मोदी सरकार पर हमलावर नजर आ रहे हैं। वे सभी चीन के खिलाफ अपनाएं गए क्रूरता पर सवाल ना करते हुए? मोदी सरकार पर ही निशाना कस रहे है। वहीं मोदी सरकार की नाकामी के चलते चीन कैसे घुसपैठ कर रहा है, यह सवाल उठाते हुए विपक्ष के दिमाग में यह बात नहीं आती कि हम अपने ही जवानों के प्रदर्शन पर सवाल उठा रहे हैं? जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में हिंदू पंडितों की हत्या की जाती है, तो यही विरोधी यह ढोंग करने के लिए आगे आते हैं कि सरकार हिंदू पंडितों को बचाने में विफल रही है।  

भारतीय सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर इन घुसपैठियों को रोकने और खदेड़ने में लगे हैं। उनसे लड़ते-लड़ते हमारे जवान भी घायल हो रहे हैं। गलवान की झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। तो ऐसे समय में हमें भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाना चाहिए या अपनी राजनीति के छत्तों को जला देना चाहिए? भारत सरकार ने भी गलवान घाटी में हुई झड़पों में मरने वालों की संख्या की घोषणा की। लेकिन उससे भी विपक्ष को यह आरोप लगाने में मजा आता है कि हमारी सरकार कैसे विफल हो रही है। यह सेना और उसके जवानों के प्रति एक तरह का अविश्वास है। हमने चीनी सैनिकों को भी एक झटका दिया।’ चीन ने कभी अपने ही मृत सैनिकों के आंकड़े जारी नहीं किए। बाद में पता चला कि यह संख्या 40 के आसपास थी। वहीं विपक्ष की राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि उन्हें सेना और नेताओं के बीच फर्क नजर ही नहीं आ रहा है।  

महा विकास आघाडी के के नेता सिर्फ राजनीति के लिए भाजपा सरकार की आलोचना करते नजर आ रहे हैं। जैसे पाक ने आक्रमण किया, आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को मार डाला। इसलिए वे दिखाना चाहते हैं कि हमारी सरकार कितनी अप्रभावी है, यह कहकर कि हमारी सरकार असहाय है और आतंकवाद के खिलाफ कुछ भी करने में असमर्थ है। वास्तव में कश्मीरी पंडितों पर हमले कायरतापूर्ण हैं और आवश्यक प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन हर कश्मीरी पंडित की सुरक्षा संभव नहीं है। लेकिन विपक्षी दल इसका राजनीतिकरण कर खुश है। जब यह सब हो रहा था तो कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं भी आ रही थीं मानो हम सत्ता में होते तो ये सारी समस्याएं चुटकियों में हल हो जातीं। वह अपने ठंडे केबिन में बैठकर संपादकीय लिखते थे, इस तरह की तल्ख टिप्पणी करते थे जैसे चीन जिस इलाके को निशाना बना रहा है, वह हमारे पैरों के नीचे से गुजरा हो।  

अगर आपको याद होगा तो इस साल की शुरुआत में 1 जनवरी को चीन द्वारा गलवान घाटी में अपना झंडा फहराने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। जिसमें गलवान घाटी में चीनी सैनिक अपने देश का झंडा फहराते नजर आए। उसके बाद बिना किसी वेरिफिकेशन के भारत जोड़ो कहने वाले राहुल गांधी ने अपने ट्विटर अकाउंट से यह फोटो शेयर करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा। हालांकि मूल रूप से चीन ने वह झंडा भारतीय क्षेत्र में नहीं फहराया था। तब रक्षा मंत्रालय ने लद्दाख की गलवान घाटी में तिरंगा फहराने की तस्वीरें जारी कीं और ऐसे कायर नेताओं को तमाचा जड़ दिया। गलवान घाटी में जहां चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। वहीं भारतीय सैनिकों ने चीन के 42 चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया। उसी गलवान घाटी के बारे में झूठी खबरें फैलाकर अपने ही सैनिकों का मनोबल गिराने का यह उपक्रम निंदनीय है। वास्तव में इस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अगर राहुल गांधी भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं या उनके कार्यकर्ता ऐसा सपना देखते हैं तो देश के बारे में टिप्पणी करते हुए आम आदमी पर, जवानों पर, देश की एकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए।  

एक तरफ महाविकास अघाड़ी सरकार बीजेपी पर आरोप लगा रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस और चीन के बीच संबंधों की जांच की। उनसे चंदा कैसे लिया? 2005 और 2006 में अमित शाह ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि कैसे राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से 1 करोड़ 35 लाख रुपये का फंड मिला। यह कांग्रेस की ही साख पर सवालिया निशान है। तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे चीन की कठोर आलोचना करेंगे?  

 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन ने भारत की हजारों हेक्टेयर जमीन हड़प ली। चीन के प्रति नेहरू के प्रेम के कारण भारत को संयुक्त राष्ट्र की स्थायी समिति की सदस्यता तक नहीं मिली। गलवान घाटी में जब भारतीय सेना चीनी सेना से भिड़ रही थी, तब किसी ने चीनी दूतावास में लंच का आयोजन किया था। चीन के अरुणाचल पर दावा करने के बाद कांग्रेस ने वहां चल रहे निर्माण कार्य को क्यों रोका?, चीनी सरकार ने अरुणाचल में कांग्रेस के मुख्यमंत्री को वीजा देने से इनकार क्यों किया, कांग्रेस ने इस पर क्या किया? इसपर गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर कड़ी आलोचना की। जब तक मोदी सरकार है, कोई एक इंच भी जगह नहीं घेर सकता है, अमित शाह ने अरुणाचल के तवांग में भारतीय सेना द्वारा दिखाए गए साहस की प्रशंसा की। भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश कर रहे चीनी घुसपैठियों को भारतीय सेना ने करारी शिकस्त दी है।   

कुल मिलाकर इन तमाम मामलों में महा विकास आघाडी नेताओं की भूमिका कभी भी चीन विरोधी नजर नहीं आई। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की आलोचना करने के बजाय, वे भारत सरकार पर सवाल उठाते दिख रहे हैं। लेकिन आप भूल जाते हैं कि आप अपने सैनिकों पर अविश्वास करते हैं। आपको इस देश विरोधी कार्रवाई में सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए। लेकिन इसके लिए दो चीजें जरूरी हैं, धार्मिक गौरव और राष्ट्रीय गौरव, जो विपक्षी दलों में नहीं है।  

 एक तरफ जहां महा विकास आाघाड़ी के नेताओं ने मोदी सरकार की आलोचना की वहीं जर्मनी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की। कहा जाता है कि दुनिया में भारत के अलावा कोई दूसरा देश नहीं है, जो चीन को टक्कर दे सके। अमेरिका ने भारत की तारीफ करते हुए यह भी माना कि भारत ने चीन के मुद्दे को सही तरीके से हैंडल किया है। हालांकि विरोधियों का मुंह बंद नहीं होगा। ओवैसी और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने मांग की है कि विपक्षी नेताओं को उस जगह पर जाने दिया जाए जहां पर झड़प हुई है और उन्हें इलाके का निरीक्षण करने दिया जाए। विरोधियों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि वे किसी पर्यटन स्थल पर नहीं जाएंगे, लेकिन यह सीमावर्ती क्षेत्र है, संवेदनशील है। लेकिन अब जनता को विपक्ष की इस नीति का पता चल गया है। 

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