-प्रशांत कारुलकर
मालदीव ने चीन के साथ एक “सैन्य सहायता” समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे भारत के साथ चल रहे रिश्तों में तनाव बढ़ गया है। यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब कुछ दिन पहले ही भारत की तकनीकी टीम मालदीव थी, जिसे राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़ु द्वारा हटाए गए सैनिकों को वापस लाने का काम सौंपा गया था।
रक्षा मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, मालदीव के रक्षा मंत्री और चीन के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने “चीन द्वारा मालदीव गणराज्य को निःशुल्क सैन्य सहायता प्रदान करने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने” पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इस समझौते को क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए। भारत पारंपरिक रूप से मालदीव को अपने मित्र देश के रूप में देखता रहा है और उसने 2018 में आंतरिक राजनीतिक संकट के दौरान देश में सैनिकों को तैनात किया था। हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हुआ है।
इस समझौते पर भारत की अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि यह घटनाक्रम द्वीप राष्ट्र और भारत के बीच रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।
हाल ही में मालदीव द्वारा चीन के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था में एक नया मोड़ आ गया है। चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत के लिए इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना एक प्रमुख प्राथमिकता है।
आइए देखें कि भारत इस चुनौती का सामना कैसे कर सकता है:
सहयोगी देशों के साथ मजबूत संबंध: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की मजबूत उपस्थिति पारंपरिक रूप से रही है। भारत को अपने मित्र देशों – श्रीलंका, सेशेल्स, मॉरीशस और फ्रांस जैसे देशों के साथ अपने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करना चाहिए। साथ ही अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्वाड (QUAD) देशों के साथ भी συνεργασία (synergia – सहयोग) बढ़ाकर सामरिक मोर्चे पर मजबूती लानी चाहिए।
समुद्री सुरक्षा पर ध्यान देना: भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी समुद्री निगरानी और गश्त बढ़ानी चाहिए। इसके लिए अत्याधुनिक जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों को तैनात करने की आवश्यकता है। तटरक्षक बल को भी मजबूत बनाना जरूरी है ताकि किसी भी तरह की समुद्री लूट या आतंकवाद का मुकाबला किया जा सके।
आर्थिक कूटनीति: चीन अक्सर गरीब देशों को ऋण देकर उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है। भारत को अपने पड़ोसी देशों को बुनियादी ढांचा विकास और आर्थिक सहायता प्रदान कर सहायता करनी चाहिए। यह न केवल भारत के साथ उनके संबंधों को मजबूत करेगा बल्कि चीन के ऋण जाल से भी बचाएगा।
क्षेत्रीय मंचों को सक्रिय करना: हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से भारत को समुद्री सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। इससे क्षेत्र के देशों के बीच आपसी विश्वास मजबूत होगा और चीन को एकतरफा प्रभाव जमाने का मौका नहीं मिलेगा।
कूटनीतिक वार्ता: भारत को मालदीव सहित अन्य देशों के साथ खुली और स्पष्ट कूटनीतिक वार्ता करनी चाहिए। चीन के साथ इस समझौते से होने वाली चिंताओं को दूर करना चाहिए और भारत के साथ मजबूत रक्षा सहयोग के लाभों को रेखांकित करना चाहिए।
चीन-मालदीव समझौता भारत के लिए एक चुनौती जरूर है, लेकिन यह भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका को और मजबूत बनाने का एक अवसर भी है। मजबूत सहयोग, आधुनिक तकनीक और कूटनीतिक सूझबूझ के माध्यम से भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में सफल हो सकता है।
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