राहुल मोहरा, कौन होगा विपक्ष का चेहरा?

राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद सभी दल समर्थन दे रहे हैं. हर कोई अपनी ढपली अपना राग भी अलाप रहे हैं। हर दल का अपना स्वार्थ है लेकिन विपक्ष में एकता के नाम पर केवल दिखावा है।

राहुल मोहरा, कौन होगा विपक्ष का चेहरा?

राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद लगभग सभी दल उनका समर्थन किया है। ये दल  बीजेपी को कोसते नजर आ रहे है। जिस कांग्रेस को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल अछूत मानते थे, अब उसी कांग्रेस के समर्थन में उतर आये हैं। इसी तरह, कुछ समय डंके की चोट पर 2024 में लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकी ममता बनर्जी, अब कांग्रेस के खेमे में जाती नजर आ रही है।

इसके साथ ही अखिलेश यादव भी राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने पर लोकतंत्र का रोना रोया। लगभग देश की सभी पार्टियां राहुल के समर्थन में उतरी, उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी अपना बयान जारी किया। पर वे कांग्रेस के समर्थन के बजाय उसे कोसती नजर आई।

बहरहाल, पहले उन लोगों के बारे में बात करना जरुरी है जो कभी राहुल गांधी या कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाह रहे थे। लेकिन, अब वे दल राहुल के समर्थन में काला कपड़ा पहनकर संसद चले जा रहे हैं। जिसमें टीएमसी के नेता भी शामिल है। टीएमसी नेताओं की बात करना पहले इस लिए जरुरी हो गया है कि क्योंकि राहुल गांधी के बाद टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी सबसे पहले  लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी।

इस संबंध मैंने अपनी पिछली वीडियो में इस संबंध में विस्तार से जानकारी दी है। ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जो अपने अहम के आगे वे पीएम मोदी की ही नहीं अनदेखी नहीं की है, बल्कि, वे कांग्रेस और उसके नेताओं से भी पंगा ले चुकी।

एक बार जब ममता बनर्जी दिल्ली की किसी मीटिंग में पहुंची थी तब उनसे पूछा गया था कि क्या  वे सोनिया गांधी से मिलेंगी। इस पर ममता बनर्जी ने बड़ा ही तीखा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि सोनिया गांधी से मिलना क्या जरुरी है,क्या संविधान में ऐसा कुछ लिखा है कि उनसे जरूर मिलें। पर आज टीएमसी नेताओं का कांग्रेस का समर्थन करना मज़बूरी है, या रणनीति। यह बड़ा अहम सवाल हो गया है।

जिस तरह से, ममता बनर्जी ने इस दौरान माहौल बनाया है। उससे हर तरफ संदेह और आशंका घेरे हुए है। ऐसे में अभी तक ममता ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना पत्ता नहीं खोला है। राहुल कांड के बाद ममता ने अभी तक साफ नहीं किया है कि वे अकेले चुनाव लड़ेंगी की कांग्रेस के साथ। पर वे राहुल गांधी का समर्थन कर रही है। माना जा रहा है कि यह असमंजस अभी बरक़रार रहेगा। जब तक राहुल गांधी पर कोर्ट कोई फैसला नहीं सुना देता।

ममता बनर्जी की तरह ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी पीएम का सपना अन्ना हजारे के आंदोलन से देख रहे हैं। उस समय से लेकर दो लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, मगर केजरीवाल के हाथ में कोई कामयाबी नहीं लगी। बताया जा रहा है आम आदमी पार्टी 11 राज्यों में 11 भाषाओं में पीएम मोदी के खिलाफ पोस्टर वार के जरिये चुनावी अभियान की शुरुआत करेगी। इसकी शुरुआत 30 मार्च से होनी है। अब यहां केजरीवाल भी राहुल का समर्थन कर रहे हैं लेकिन अकेले 11 राज्यों में पीएम मोदी के खिलाफ अभियान की शुरुआत कर दी है।इस पोस्टर में भी मोदी हटाओ,देश बचाओ लिखा है।

गौरतलब है पिछले दिनों दिल्ली में एक पोस्टर जारी किया गया था। इस पोस्टर में लिखा था “मोदी हटाओ, देश बचाओ”. इसके बाद इस पोस्टर के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 100 एफआईआर दर्ज किया था। यह कार्रवाई इसलिए की गई थी कि,पोस्टर को जारी करने वाले व्यक्ति और मुद्रक का नाम इस पर नहीं था। अब केजरीवाल राहुल के समर्थन में लोकतंत्र बचाने में लगे हैं। लेकिन, क्या केजरीवाल इतनी आसानी से अपनी महत्वाकांक्षा की आहुति दे देंगे, जब उनके पास विपक्ष का चेहरा बनने के लिए एक सुनहरा मौक़ा है।

यही वजह है कि केजरीवाल जी आठ यानी गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों की पिछले 19 तारीख को बैठक बुलाई थी जो नहीं हो पाई। सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी और केजरीवाल स्वार्थ की तिरंजलि देखकर विपक्ष के साथ आएंगे यह कहना मुश्किल है ? ये दोनों नेता दो रास्तों पर चल रहे हैं।

अगर सीधी बात कही जाए तो राहुल गांधी कोई मुद्दा नहीं है। यह सभी नेता जानते हैं कि राहुल गांधी को उनकी गलती की ही सजा मिली है और यह सरकार ने नहीं बल्कि कोर्ट का फैसला है। यही वजह है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं, लेकिन मामले को भटकाने के लिए अडानी का मुद्दा लाकर खड़ा कर दिया गया है।

याद रहे राहुल के समर्थन में खड़े होने वाले दल बार बार लोकतंत्र की बात कर रहे हैं,लेकिन कोर्ट के निर्णय पर कोई बात करने से कतरा रहे हैं। यह बात केजरीवाल, ममता बनर्जी भी जानती है या यूं कहा जा सकता है कि पूरा विपक्ष जानता है कि हकीकत क्या है? ममता बनर्जी अकेले मोर्चा निकाल रही है। ऐसा क्यों ? यह सिर्फ विपक्षी दलों का छलावा खुद के लिए ही नहीं बल्कि  राहुल गांधी के लिए भी गुमराह करने वाला है। लोकतंत्र की बात करने अकेले क्यों राजनीति कर रहे हैं?

सवाल यह कि जब विपक्ष राहुल का समर्थन कर रहा है तो अपनी डफली अपना राग  क्यों अलापा जा रहा है। क्या राहुल गांधी की सदस्यता जाने पर सभी विपक्षी घड़ियाली आंसू बहा रहे है। अगर सही मायने में ये दल राहुल गांधी के समर्थन में हैं तो अपना स्वार्थ क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? कहने का मतलब साफ है हर दल अपना नफ़ा नुकसान देख रहा है। कहा जा सकता है कि  ममता, केजरीवाल, केसीआर, अखिलेश सब अपने बने बनाये रणनीति पर चल रहे हैं। यह भी साफ़ है कि अगर विपक्षी एकता बन भी जाती है तो पीएम चेहरा पर रार छिड़नी तय।

तो दोस्तों ये वे नेता है जो शेर की तरह अपने शिकार के लिए नज़रे गड़ाए हुए, कुछ ऐसे भी नेता हैं जो महत्वाकांक्षी तो लेकिन जनाधार और समर्थन से दो चार हो रहे हैं। बिहार में मुख़्यमंत्री नीतीश कुमार है तो उत्तर प्रदेश में मायावती जो अपने वजूद के लिए लड़ते हुए देखे जा रहे हैं।   मायावती ने तो राहुल गाँधी की सदस्यता रद्द होने पर कांग्रेस को लताड़ लगाई।

उन्होंने ट्वीट किया है कि कांग्रेस को यह जरूर सोचना चाहिए कि 1975 में जो कुछ हुआ वह क्या सही था। जो अब राहुल गांधी के साथ हुआ वह कितना सही है ? मायावती इस मामले में कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा करती दिखाई दे रही है। मायावती राहुल का न तो समर्थन किया है और  न विरोध किया ? लेकिन, आपातकाल को याद कर कांग्रेस को एक तरह से नसीहत ही दी।
उसी तरह नीतीश कुमार भी राहुल कांड पर चुप्पी साध कर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जो कुछ दिन पहले विपक्ष को एकजुट करने चले थे अब एकांतवास में है। नीतीश कुमार के बारे में  फिलहाल कई तरह की बातें कही जा रही है। कहा जा रहा है कि  नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं। बातें दें कि नीतीश दो दिन पहले ही बीजेपी के नेता संजय मयूख के घर गए थे। जो बिहार बीजेपी का जाना माना चेहरा है।संजय मयूख को अमित शाह का करीबी माना जाता है। इसके बाद से कई तरह की अटकलें लगनी शुरू हो गई है।

बहरहाल, राजनीति की पिच खिलाड़ी कई हैं, लेकिन अभी वर्तमान समय में  पीएम मोदी के सामने कौन नेता बॉलिंग करेगा यह देखना बड़ा दिलचस्प है। सभी नेताओं की अपनी महत्वकाक्षां, मज़बूरी और भविष्य है। ये नेता सही मौके की तलाश में हैं, लेकिन क्या ये नेता  जनता की नब्ज को समझ रहे हैं। क्या ये नेता जनता के मुद्दे  उठा कर सड़क पर उतर रहे हैं ? विपक्ष जनता से उस नेता के खिलाफ जाने को कह रहा है जो कई दशकों के बाद उनमें अपना चेहरा देख रही है। तो क्या विपक्ष पीएम मोदी के खिलाफ कोई चेहरा ढूढ पाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा?


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