Maharashtra CM: दस वर्षों में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने फडनवीस, पिछले एक दशक में क्या हुआ?

2014 विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 2019 में वह सिर्फ 72 घंटे के लिए मुख्यमंत्री रहे| अब वे तीसरी बार शपथ लेने जा रहे हैं|

Maharashtra CM: दस वर्षों में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने फडनवीस, पिछले एक दशक में क्या हुआ?

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 10 दिन बाद राज्य के मुख्यमंत्री पद की पहेली सुलझ गई है|विधान भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित भाजपा विधायक दल की बैठक में चंद्रकांत पाटिल और सुधीर मुनगंटीवार ने देवेंद्र फडनवीस के नाम का प्रस्ताव रखा। इसे उपस्थित विधायकों ने मंजूरी दे दी और पुष्टि की कि फडनवीस तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। नतीजों के बाद भाजपा की ओर से लगातार सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर फडनवीस को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था| आख़िरकार उनके नाम की घोषणा कर दी गई|

“मैं समंदर हूं, लौट के आऊंगा”: 2019 में, जब मुख्यमंत्री पद को लेकर सेना-भाजपा गठबंधन टूट गया, तो नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम हुआ और सुबह अजीत पवार के साथ देवेंद्र फड़नवीस ने शपथ ली। लेकिन उन्हें महज 72 घंटे में इस्तीफा देना पड़ा और वह सबसे कम समय के लिए मुख्यमंत्री बने, लेकिन उस वक्त विपक्ष के नेता के तौर पर अपने भाषण में उन्होंने शायरी के जरिए दोबारा आने का इशारा किया था|

“मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे घर पर मत बनाना। फडनवीस ने कहा था कि मैं नाविक हूं, वापस आऊंगा| इसके बाद भी उन्होंने कहा था कि वह अभिमन्यु ही थे जिन्होंने विरोधियों द्वारा रचित चक्रव्यूह को भेद दिया था|  अब जब यह तय हो गया है कि देवेन्द्र फडनवीस एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे तो अब सत्ता गठन में बड़ी चुनौती सहयोगी दलों के बीच सत्ता की हिस्सेदारी और सही मात्रा में हिस्सेदारी की है।

विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद अपने भाषण में देवेन्द्र फडनवीस ने इस ‘समझौते’ का जिक्र करते हुए कहा, ”हम उन सभी चीजों को पूरा नहीं कर सकते जो सबके मन में हैं, लेकिन हम राजनीति में एक बड़ा लक्ष्य लेकर आये हैं| सिर्फ पोस्ट के लिए नहीं| इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में कुछ चीजें हमारे मन के मुताबिक चलेंगी, कुछ चीजें हमारे मन के खिलाफ होंगी| फिर भी हम सभी व्यापक भलाई के लिए मिलकर काम करेंगे”, उन्होंने संकेत दिया।

मुख्यमंत्री पद की पहली शपथ…: 2014 में देवेन्द्र फडनवीस भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष थे। जब कहीं कोई चर्चा नहीं थी तब भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए 44 साल के देवेन्द्र फडनवीस के नाम की घोषणा कर सबको चौंका दिया| उस चुनाव में भाजपा को राज्य में अब तक की सबसे ज्यादा 122 सीटें मिलीं| इस चुनाव में पार्टी ने उस आंकड़े को पार कर लिया और अपने दम पर 132 सीटें जीतीं और इन सबके केंद्र में थे देवेन्द्र फडनवीस !

पहले मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडनवीस के कार्यकाल के दौरान, भाजपा ने राज्य में सबसे अधिक सीटें जीतीं। पहली बार शिवसेना के दूसरे नंबर पर आने से गठबंधन में बड़ा भाई कौन? इस पर चर्चा शुरू हो गई थी| लेकिन व्यापक विचार विमर्श के बाद देवेन्द्र फडनवीस की पहल के बाद राज्य में गठबंधन सरकार आयी जिसमें शिवसेना भी शामिल थी।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में देवेन्द्र फडनवीस का सबसे अनुकूल पहलू उनकी साफ सुथरी और विश्वसनीय छवि थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेन्द्र फडनवीस ने अपनी काबिलियत साबित की। इस बीच उनके नेतृत्व में हुए मेक इन इंडिया समिट में महाराष्ट्र सरकार ने 2603 एएमयू पर हस्ताक्षर किए| इन ठेकों की कुल कीमत करीब 8 लाख करोड़ रुपये थी| इसी तरह 2018 में ‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र’ प्रोग्राम के जरिए महाराष्ट्र में करीब 12 लाख करोड़ का निवेश आया|

मराठा आरक्षण मुद्दा और फडनवीस का नेतृत्व: इस बीच मराठा आरक्षण का मुद्दा भी गरमा रहा है, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे को भी सफलतापूर्वक संभाला| मराठा आरक्षण के लिए कई मार्च निकाले जा रहे थे| देखा गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा आत्महत्या जैसा कदम उठाया जा रहा था| उस समय कहा जाता है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी देवेंद्र फडनवीस को हटाने के बारे में सोच रहा था| हालांकि, मराठा प्रदर्शनकारियों के साथ सफल चर्चा कराने में देवेंद्र फडनवीस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मराठा समुदाय को तब एसईबीसी श्रेणी में भी आरक्षण दिया गया था। समय के साथ इसे निलंबित कर दिया गया। भाजपा लगातार इस बात की आलोचना करती रही है कि विपक्षी दलों की सरकार फडनवीस सरकार द्वारा मिले आरक्षण को कायम नहीं रख सकी| 

पार्टी के भीतर से चुनौती?: इस बीच, पार्टी के भीतर से ही अन्य वरिष्ठ नेताओं द्वारा देवेंद्र फडनवीस को चुनौती दिए जाने की बात सामने आई है। इसमें सबसे बड़ा नाम एकनाथ खडसे का था| राज्य में एक महत्वपूर्ण ओबीसी नेता और वरिष्ठ भाजपा नेता के रूप में, एकनाथ खडसे का पार्टी के भीतर काफी प्रभाव था। लेकिन 2016 में जमीन हेराफेरी के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा| विनोद तावड़े भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में बताए जा रहे थे|

महाराष्ट्र में नंबर एक नेता!: मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के अंत तक देवेंद्र फडनवीस महाराष्ट्र में भाजपा के नंबर एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में जाने जाते थे। चुनाव के बाद ऐसी छवि बनी कि देवेन्द्र फडनवीस फिर से मुख्यमंत्री हैं। वहीं, 2019 के विधानसभा चुनाव में एकनाथ खडसे, विनोद तावड़े और चंद्रशेखर बावनकुले को भी टिकट नहीं दिया गया था। अंततः, विनोद तावड़े को केंद्रीय पार्टी प्रणाली में समाहित कर लिया गया, जबकि चंद्रशेखर बावनकुले को 2021 में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।

देवेन्द्र फडनवीस के करियर में एक और अहम मोड़!: इस बीच, देवेन्द्र फड़नवीस के राजनीतिक करियर में एक और अहम मोड़ 2019 में आया। सेना-भाजपा गठबंधन ने 161 सीटें जीतीं, लेकिन फिर भी सरकार स्थापित नहीं हो सकी| मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों के बीच विवाद के चलते गठबंधन टूट गया और माविया का जन्म हुआ। अपने दम पर 105 विधायक जीतने के बाद भी ऐसे संकेत मिल रहे थे कि भाजपा को सत्ता से बाहर रहना पड़ेगा|

इसके बाद के महीने में, महाराष्ट्र में कई नाटकीय घटनाएं हुईं। सुबह-सुबह अजित पवार के साथ देवेन्द्र फडनवीस का शपथ ग्रहण उन घटनाओं का चरम बिंदु था। अजित पवार के चार दिन के भीतर ही इस्तीफा देने के बाद अल्पमत में आये देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। राज्य में माविआ की सरकार आ गयी। लेकिन जैसे ही कोरोना वायरस कम हुआ तो राजनीतिक घटनाओं ने फिर से तेजी पकड़ ली| एकनाथ शिंदे बगावत कर 40 विधायक अपने साथ ले आए| उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई और शिंदे के नेतृत्व में राज्य में फिर से गठबंधन सरकार आई। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबका ध्यान देवेन्द्र फडनवीस पर था|

उपमुख्यमंत्री को झटका!: कहा जा रहा था कि नई सरकार में देवेंद्र फडनवीस मुख्यमंत्री होंगे|  लेकिन समय के साथ चक्र पलटा और देवेन्द्र फडनवीस उपमुख्यमंत्री के तौर पर सरकार में शामिल होने के लिए तैयार हो गये। लेकिन उसी वक्त पर्दे के पीछे से गतिविधियां चल रही थीं|  2023 में एनसीपी में फूट पड़ गई और अजित पवार भी उपमुख्यमंत्री के तौर पर गठबंधन में शामिल हो गए|

लोकसभा चुनाव में झटका: लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य में सिर्फ 9 सीटें मिलीं| इससे देवेन्द्र फडनवीस के नेतृत्व पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया।नतीजे के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद फडनवीस ने भी उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी संगठन में काम करने की इच्छा जताई थी| हालांकि कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया|

हालांकि, पिछले छह महीने में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर देवेंद्र फडनवीस ने पूरे महाराष्ट्र पर कब्जा कर लिया है| फडनवीस ने राज्य भर में लगभग 75 अभियान बैठकें कीं। सभी 36 जिलों का दौरा किया गया| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़कर उन्होंने आपस में समन्वय बनाकर संघ की मदद भी की। सीट आवंटन और उम्मीदवारी आवंटन के मुद्दों को महायुति के माध्यम से सुलझाया गया। लेकिन अब हिसाब-किताब और मंत्री पद के बंटवारे का मुद्दा फडनवीस के लिए अहम रहने वाला है|

हालांकि अजित पवार पहले ही अपने समर्थन का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि शिंदे गुट ने फडनवीस से खास विभागों की मांग की है| इस पृष्ठभूमि में, यह अनुमान लगाया गया है कि देवेंद्र फडनवीस के लिए तीन प्रमुख दलों के बीच खातों के आवंटन में समन्वय बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।

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