World Happiness Report 2025: भारत से खुश यूक्रेन और फिलिस्तीन, खुश रहने का राज कहीं ‘ युद्ध’ तो नहीं?

रिपोर्ट को तैयार करने का तरीका भी कम दिलचस्प है। इसे तैयार करने के लिए किसी देश की आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था, नागरिक अधिकार जैसी ठोस चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया जाता।

World Happiness Report 2025: भारत से खुश यूक्रेन और फिलिस्तीन, खुश रहने का राज कहीं ‘ युद्ध’ तो नहीं?

World Happiness Report 2025: Ukraine and Palestine are happier than India, is the secret of happiness 'war'?

भारत में लोग नासमझ हैं! हां, आपने सही पढ़ा। हम भारतीय बेवजह अपनी ज़िंदगी में अर्थव्यवस्था, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, सबको लेकर सवाल चिंतित रहते हैं और यही गलती हमसे हर साल करवाई जाती है, तभी तो संयुक्त राष्ट्र की “World Happiness Report 2025” हमें यह बताने आती है कि हम दुनिया के सबसे ‘ दुखी’देशों में से एक हैं। वहीं आप यूक्रेन और फिलिस्तीन को देखिए युद्धस्थिती में अटके हुए है, अगर किसी और देश की सहायता से ब्रेड मिले तो ‘खुश’– शत्रु राष्ट्र के हमलों से बचकर एक और दिन जीने मिल जाए तो खुश।

दरअसल World Happiness Report के अनुसार, गाजा पट्टी, यूक्रेन, ईरान, वेनेजुएला, पाकिस्तान और यहां तक कि फिलिस्तीन के लोग हमसे ज्यादा खुशहाल हैं। जी हां, वही गाजा जहां हर दिन बम गिर रहे हैं, वही यूक्रेन जो युद्ध की आग में झुलस रहा है, वही वेनेजुएला जहां महंगाई इतनी है कि रोटी खरीदने के लिए सूटकेस भरकर नोट ले जाने पड़ते हैं, वही पाकिस्तान जो अपने कर्ज़ की किश्तें भरने के लिए IMF की चौखट पर हर महीने मत्था टेकता है—ये सभी देश भारत से ज्यादा खुश बताए जा रहे हैं। अब बताइए, इससे ज्यादा “खुश” होने वाली बात और क्या हो सकती है?

दरअसल, हम भारतीय खुशी के सही मायने ही नहीं समझते। हमारे लिए खुशी परिवार के साथ बैठकर चाय पीना है, त्योहारों की धूमधाम है, पड़ोसियों के साथ गपशप है, क्रिकेट में भारत की जीत है, और यहां तक कि आलू-प्याज के दामों पर बहस करने में भी हमें आनंद आता है। लेकिन नहीं, रिपोर्ट कहती है कि हमें तो सिर्फ वही खुशियां मान्य हैं, जो पश्चिमी देशों की परिभाषा में फिट बैठती हैं।

अब जरा देखिए कि दुनिया के “खुशहाल” देशों में क्या हो रहा है। वेनेजुएला में अगर आपको एक किलो चावल खरीदना हो, तो आपको उतने पैसे देने होंगे जितने में भारत में एक पूरा महीना का राशन आ जाए। लेकिन वहां के लोग फिर भी खुश बताए जा रहे हैं। शायद इसलिए कि उनके पास अब गिनने के लिए नोट ज्यादा हैं और खाने के लिए कुछ नहीं। पाकिस्तान की हालत देख लीजिए—महंगाई आसमान छू रही है, बिजली-पानी की किल्लत है, सरकारें अस्थिर हैं, आतंकवादी सड़कों पर घूम रहे हैं—फिर भी रिपोर्ट कहती है कि वहां के लोग हमसे ज्यादा खुश हैं। आखिर ऐसा कौन सा राज़ है, जो हमें समझ नहीं आ रहा?

इस रिपोर्ट को तैयार करने का तरीका भी कम दिलचस्प है। इसे तैयार करने के लिए किसी देश की आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था, नागरिक अधिकार जैसी ठोस चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया जाता। नहीं साहब, यहां तो बस लोगों से पूछ लिया जाता है, “आप अपनी ज़िंदगी को 0 से 10 तक कितने नंबर देंगे?” अब ज़रा सोचिए, अगर गाजा के किसी नागरिक से पूछा जाए कि “भाई, तुम्हारी ज़िंदगी कैसी चल रही है?”, तो वह कहेगा, “यार, बमबारी तो हो रही है, लेकिन चलो 6 नंबर दे देते हैं” और उधर भारत में एक IT इंजीनियर, जो सुबह से ऑफिस में कोडिंग कर रहा है और शाम को ट्रैफिक में फंसा पड़ा है, अगर वह गुस्से में “5” बोल दे, तो लीजिए! गाजा भारत से ज्यादा खुशहाल घोषित कर दिया जाता है!.

अब एक और मजेदार बात —इस रिपोर्ट में “भ्रष्टाचार” एक प्रमुख फैक्टर होता है, लेकिन यह भ्रष्टाचार की वास्तविक स्थिति पर आधारित नहीं होती, बल्कि “धारणा” (Perception) पर निर्भर करती है। यानी, अगर किसी देश के लोग अपनी सरकार से इतने डरे हुए हैं कि वे कहें, “अरे हमारे यहां तो कोई भ्रष्टाचार नहीं है,” तो वह देश खुशहाल माना जाता है। लेकिन भारत में लोग बेझिझक सरकार की आलोचना कर सकते हैं, मीडिया में घोटालों पर बहस हो सकती है, जनता सवाल उठा सकती है—बस यही हमारी गलती है की हम अपनी समस्याओं पर खुलकर चर्चा करते हैं, इसलिए हम  “दुखी” है। दूसरें देशों से सीखिए जहां समस्याओं को टालकर ‘ख़ुशी’ इज़हार की जाती है।

अब इस रिपोर्ट का एक और पक्ष देखिए—अगर पश्चिमी देशों के विचारों से मेल खाने वाली नीतियां किसी देश में लागू हों, तो वह ज्यादा खुशहाल माना जाता है। यही कारण है कि अमेरिका, कनाडा, स्कैंडिनेवियाई देश हमेशा टॉप पर रहते हैं, भले ही वहां मानसिक तनाव, अकेलापन, अवसाद और आत्महत्याओं की दर कितनी ही ऊंची हो। इन देशों में लोगों की हंसी तो शायद साल में दो बार ही निकलती होगी, लेकिन रिपोर्ट में वे नंबर वन हैं।

अगर आपको असली खुशी का अंदाजा लगाना है, तो IPSOS ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स देखिए। यह रिपोर्ट कम से कम वास्तविक जीवन के हालातों को ध्यान में रखती है, और इसमें भारत की रैंकिंग कहीं बेहतर रहती है। लेकिन चूंकि यह रिपोर्ट पश्चिमी मीडिया के एजेंडे को सूट नहीं करती, इसलिए इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती।

कुल मिलाकर, विश्व खुशी रिपोर्ट को पढ़कर हमें दुखी होने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसे हास्य व्यंग्य की तरह पढ़ना चाहिए। अगर यह रिपोर्ट सच होती, तो दुनिया में सबसे ज्यादा खुशहाल लोग शायद वे होते, जिनके घरों में राशन नहीं है, सिर पर छत नहीं है, लेकिन फिर भी वे मुस्कुराने की एक्टिंग कर रहे हैं। तो अगली बार जब कोई आपसे पूछे कि आप कितने खुश हैं, तो 10 में से 15 नंबर दीजिए—क्या पता, अगले साल भारत भी टॉप 10 में आ जाए!

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