रामचरित मानस को लेकर छिड़े विवाद के बीच मायावती ने अखिलेश यादव को घेरा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सपा मुखिया ओबीसी और दलितों को शूद्र कहकर उनका अपमान कर रहे हैं। जबकि डॉक्टर भीम राव आंबेडकर ने अपने संविधान में दलितों और पिछड़ों को ओबीसी और एससी, एसटी कहा है। उन्होंने कहा कि एक तरह से सपा संविधान की अवहेलना कर रही है। मायावती ने एक ट्वीट कर लखनऊ गेस्ट हाउस घटना को याद किया है।इतना ही मायावती ने अखिलेश यादव को नसीहत भी दी है।
दूसरी तरफ शुक्रवार को लखनऊ में सपा कार्यालय के सामने कुछ लोगों ने मौन धरना दिया। उनका आरोप है कि सपा ने रामचरित मानस की चौपाइयों की गलत व्याख्या कर लोगों को बांट रही है। सिख समुदाय से आने वाले इन लोगों ने अपने हाथ में रामचरित मानस की पुस्तक ले रखे थे। इसके अलावा सपा में सवर्णों के किनारे लगाए जाने से यह समुदाय खासा नाराज आ रहा है। देखा जाए तो अखिलेश यादव रामचरित मानस पर बुरी से घिर गए हैं। तो देखना होगा आने वाले समय में सपा मुखिया इस संकट से कैसे उबरते हैं।
रामचरितमानस पर उठे विवाद का अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में फ़ायदा उठाने की जुगत में थे। लेकिन अब मायावती के हमले के बाद माना जा रहा है कि इस मामले में मायावती अखिलेश यादव को वाक ओवर देने के मूड नहीं हैं। उन्होंने जिस तरह से अखिलेश यादव को घेरा है। उससे जान पड़ता है कि आने वाले समय में मायावती अखिलेश यादव के खिलाफ और मुखर हो सकती हैं। मायावती समझ चुकी हैं कि अखिलेश यादव शूद्र को मुद्दा बनाकर पिछड़ी जातियों और दलितों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि मायावती अब इस मामले पर अपना मुंह खोला है। मायावती का दलित और पिछड़ा वर्ग वोट बैंक है।
लेकिन, अखिलेश यादव द्वारा उठाये गए मुद्दे से साफ़ है की वे इस मुद्दों को लोकसभा के चुनाव में भुनाने सकते हैं। जिससे मायावती को बड़ा झटका लग सकता था। जिसको भांपते हुए मायावती ने इस मुद्दे को लपक लिया है और संविधान का हवाला देकर अखिलेश यादव को कोसा भी। मायावती जानती हैं कि इतने भर से यह मुद्दा खत्म नहीं होने वाला। इसलिए 2 जून 1995 में लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस में उनके ऊपर हुए हमले का जिक्र कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। मायावती ने अपने ट्वीट में कहा है कि अखिलेश यादव इस घटना को याद कर लें उसके बाद ही कुछ बोले।
वैसे यह घटना भारत की राजनीति में सबसे बड़ा कलंक मानी जाती है। और इसकी कहानी भी बहुत लंबी है। हम उसे संक्षेप में बताते हैं। यह घटना दिन में शुरू थी, लेकिन सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस जो कांड किया वह इतिहास में दर्ज है। इस घटना पर पुस्तक भी लिखी जा चुकी है। यह घटना उस समय की है जब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था। इस घटना में बीजेपी भी एक किरदार है। लेकिन बीजेपी इसमें खलनायक की भूमिका के बजाय हीरो की भूमिका में रही।
संयोग देखिये कि जब यह घटना हुई थी तब भी बीजेपी को रोकने का मकसद था। इसके बाद मायावती और मुलायम सिंह यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए एक बार फिर एक मंच पर दिखाई दिए थे। आज जब मायावती गेस्ट हाउस कांड का जिक्र कर रही हैं। लेकिन उन्होंने 2019 इस घटना का जिक्र नहीं क्या जब मुलायम सिंह और मायावती अगल बगल बैठे थे। क्या इस सवाल का जवाब मायावती देंगी। मायावती इसका जवाब नहीं देगी। क्योंकि राजनीति में कोई लंबे समय तक दुश्मन नहीं रह सकता।
तो दोस्तों अब बात करते हैं गेस्ट हाउस घटना की कि उस दिन क्या हुआ था। तो 1993 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए सपा और बसपा ने गठबंधन किया था। उस समय उत्तर प्रदेश की कुल सीट 422 थी। क्योंकि उस समय यूपी से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था। सपा 256 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि मायावती की पार्टी 164 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इस चुनाव में यही दोनों पार्टी जीती। सपा 109 सीट जीती थी। वहीं बसपा सरसठ सीट जीती थी। इसके बाद बसपा के सहयोग से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला। 2 जून 1995 को बसपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया। जिससे मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में आ गई।
बसपा के इस रवैये से सपा कार्यकर्ता नाराज हो गए और हालत बिगड़ गए। सपा कार्यकर्ता लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए। जहां मायावती कमरा नंबर एक में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थी। उसी समय सपा कार्यकर्ता कमरा नंबर एक पर हमला बोल दिए। एक किताब में दावा किया गया है कि सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती को मारा और उनके कपडे भी फाड़ डाले थे। कहा जाता है कि सपा कार्यकर्ता इतने उन्मादी थे कि गेस्ट हाउस में मिलने वाले बसपा विधायकों को मारते थे। और उनसे जबरदस्ती एक सादे कागज़ पर हस्ताक्षर कराते थे। उस समय बीजेपी के नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती को बचाया था। जिनको बाद में सपा कार्यकर्ता ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ब्रह्मदत्त द्विवेदी इस दौरान बड़ी बहादुरी दिखाई थी। इस घटना के बाद से मायावती ब्रह्मदत्त द्विवेदी को भाई कहने लगी थी। बताया जाता है कि द्विवेदी संघ से जुड़े हुए थे और उन्हें लठियां चलना आता था। उस दौरान सपा कार्यकर्ताओं से सीधे भिड़ गए थे।
बाद में मायावती ने ब्रह्मदत्त द्विवेदी की पत्नी के लिए वोट भी मांगा था। कहा जाता है कि मायावती पूरे प्रदेश में बीजेपी का विरोध करती रही। लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के खिलाफ कभी भी अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। 2007 बसपा ने अपना उम्मीदवार उतारा था। जबकि ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या 1997 में की गई थी। जब वे एक तिलक समारोह में शामिल होने गए थे।
वहीं, रामचरितमानस विवाद के बाद जिस तरह से सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सवर्णों को किनारा किये जाने से वे बेचैन है।राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 64 चेहरों में 11 यादव ,आठ मुस्लिम ,5 कुर्मी, सात दलित ,चार ब्राह्मण और 16 अतिपिछड़ी जातियों से आने वालों को शामिल किया गया है। ठाकुर और ब्राह्मण समाज से किसी भी नेता को राष्ट्रीय महासचिव नहीं बनाया गया है। इससे पहले इस समुदाय के लोगों का प्रतिनित्व था। लेकिन इस बार सवर्णो को किनारा किये जाने से यह वर्ग नाराज है। बहरहाल देखना होगा कि रामचरित मानस की लड़ाई कहां तक पहुंचती है।वैसे भी यूपी में मायावती की जमीन खिसक चुकी है और उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। तो देखना होगा कि यूपी में लोकसभा चुनाव में क्या समीकरण बनता है।