शरद पवार के फैसले पर MVA का क्या होगा ? 

शरद पवार के फैसले पर MVA का क्या होगा ? 
शरद पवार की फितरत कोई नहीं समझ पाया है। शायद बीजेपी उनके गूढ़ रहस्य को कुछ समझती है, इसीलिए बीजेपी शरद पवार से टक्कर लेती रही है। वर्तमान में महाराष्ट्र में बीजेपी और शिंदे गुट वाली शिवसेना की सरकार इसका उदाहरण है। एक बार फिर शरद पवार की राजनीति चर्चा में है। उनकी फ़ितरजबाज राजनीति पर असदुद्दीन ओवैसी ने निशाना साधा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शरद पवार ने ऐसा क्या किया है जिसकी वजह से वे चर्चा में है।

दरअसल, शरद पवार की पार्टी के नागालैंड के  विधायकों ने नेफ्यू रियो सरकार को समर्थन दिया है। इसमें बीजेपी भी शामिल है। इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि इसका महाराष्ट्र के महाविकास अघाड़ी सरकार पर क्या फर्क पड़ेगा। क्या इस बात की जानकारी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे को थी। अगर दोनों पार्टियों को इस बात की जानकारी थी तो महाविकास अघाड़ी के नेताओं की क्या प्रतिक्रिया है। इस संबंध में उद्धव ठाकरे गुट के नेता भास्कर जाधव ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि नागालैंड की राजनीति की हमें जानकारी नहीं है। इसलिए इस बारे में में कुछ नहीं कह सकता।

वहीं, नागालैंड की सरकार में पार्टी के विधायकों के शामिल होने पर एनसीपी के राष्ट्रीय
महासचिव नरेंद्र वर्मा ने कहा है कि पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें विधायकों ने नागालैंड सरकार में शामिल होने की बात कही थी। बावजूद इसके यह फैसला किया गया कि आखिरी निर्णय शरद पवार ही करेंगे। हालांकि, शरद पवार ने विधायकों से बातचीत के बाद नेफ्यू रियो सरकार को समर्थन देने की मंजूरी दे दी। पिछले दिनों जब देवेंद्र फडणवीस ने यह खुलासा किया था कि 2019 में अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री का शपथ लिया था उसमें शरद पवार की अनुमति थी।

लेकिन पहले तो शरद पवार ने इस बात को झूठा और मनगढ़ंत बताया,लेकिन बाद में पुणे में यह कहकर सबको चौंका दिया था कि अजित पवार के साथ सरकार बनाने की वजह से ही महाराष्ट्र  से राष्ट्रपति शासन हटा। उन्होंने एक तरह से इस बात को स्वीकार किया कि एनसीपी और बीजेपी की सरकार बनाने की कवायद के बाद ही महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटा। लेकिन बाद में शरद पवार ने पाला क्यों बदला यह अभी रहस्य है। यानी एक बार फिर शरद पवार ना ना कर बैठे प्यार जैसा हाल करते हैं।

वैसे शरद पवार की यह फितरत बाजी पहली बार नहीं हैं इससे पहले भी कांग्रेस बीजेपी के साथ कई खेल खेल चुके हैं। लेकिन शरद पवार की फ़ितरजबाजी बरकरार है। अब यही फितरजबाजी  उन्होंने नागालैंड में चली है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब शरद पवार के इस निर्णय पर कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट क्या करेगा। क्या इसका विरोध करेगा? क्या एनसीपी के इस कदम से महाविकास अघाड़ी में दरार आएगी। क्योंकि, वर्तमान में कांग्रेस और उद्धव गुट बीजेपी का विरोध कर रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों पार्टियां  अपना अलग अलग स्टैंड बनाये हुए हैं। भले तीनों पार्टियां साथ आने की कसम खा रही हैं, लेकिन सबका अपना अपना स्वार्थ है।

जैसे, अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उद्धव ठाकरे से मिले थे। जो कांग्रेस के साथ जाने से हमेशा आनाकानी करते रहे हैं। वहीं, एनसीपी नेता शरद पवार  विपक्षी एकता के लिए हमेशा कांग्रेस की जरूरत बताते रहे हैं। वैसे कांग्रेस भी केजरीवाल को इग्नोर करती रही है। बताया जाता है कि केजरीवाल ने गुजरात चुनाव के दौरान सोनिया गांधी से बात कर यह इच्छा जताई थी कि कुछ सीटों पर साथ लड़ा जाए ,लेकिन कांग्रेस ने केजरीवाल के साथ आने से इंकार कर दिया था।

इतना ही नहीं, खबर यह भी है कि शराब घोटाले में सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस द्वारा इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने पर केजरीवाल नाखुश हैं। कहा जा रहा है कि केजरीवाल चाहते थे कि कांग्रेस पर इस मामले में आप के समर्थन में बयान जारी करे। लेकिन माना जा रहा है कि ईडी द्वारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ के दौरान आप भी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।

यानी केजरीवाल अपने ऊपर संकट आने पर साथ चाहते हैं, लेकिन दूसरे के संकट में अवसर की तलाश में रहते हैं। तो कहा जा सकता है कि राजनीति में विचारधारा से किसी को कोई लेना देना नहीं है। सत्ता सुख सर्वोपरि है। बता दें कि नागालैंड में एनसीपी के सात विधायक सत्ता में शामिल हुए हैं।

दूसरी ओर, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के विधायक ने भी नागालैंड की नई सरकार को समर्थन दिया है। विधायक के इस निर्णय पर जेडीयू ने नागालैंड की इकाई को भंग कर दिया। जेडीयू द्वारा इस बारे में कहा गया है कि जेडीयू विधायक ने बिना विचार विमर्श किये ही बीजेपी समर्थित सरकार को समर्थन दिया। विधायक के इस मनमाने फैसले की वजह राज्य समिति को भंग किया जाता है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या जेडीयू का शीर्ष का सही कदम है ? क्या इस कदम से पार्टी नागालैंड में उभर पाएगी ? हम यह नहीं कह रहे हैं कि शरद पवार ने सही कदम उठाया या गलत निर्णय दिए। लेकिन, उन्होंने राज्य के विधायकों के भावनाओं की कद्र की। सबसे बड़ी बात यह है कि एनसीपी के इस कदम से राज्य में पैर जमाने में मदद मिलेगी।

हालांकि, शरद पवार के इस कदम की असदुद्दीन ओवैसी ने आलोचना की है। उन्होंने तंज कसने वाले अंदाज में कहा कि एनसीपी ने नवाब मलिक को जेल भेजने वालों का समर्थन किया है।उन्होंने कहा कि अगर शरद शादाब होते तो उन्हें बीजेपी की बी टीम कहा जाता। मैंने कभी भी बीजेपी का समर्थन नहीं किया, न ही कभी करूंगा।

उन्होंने यह भी कहा कि एनसीपी ने पहली या दूसरी बार बीजेपी का समर्थन नहीं किया और न यह आखिरी हो सकता है। ऐसे में देखना होगा कि शरद पवार और नीतीश कुमार के फैसले से क्या नई राजनीति करवट लेगी। क्या भविष्य में भी शरद पवार ऐसे बीजेपी समर्थित सरकार को समर्थन देते रहेंगे।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि शरद पवार जब नागालैंड में बीजेपी समर्थित सरकार को समर्थन दिया तो 2019 महाराष्ट्र में  बीजेपी की सरकार बनाकर क्यों गिरा दिए? संजय राउत ने ऐसा कौन सा पाठ पढ़ाया कि शरद पवार महाविकास अघाड़ी बनाने को तैयार हो गए ?

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